नशे में उलझता पंजाब का भविष्य

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अनिल अनूप

65 किलो वर्ग में विश्व चैम्पियन हरियाणा के पहलवान बजरंग पुनिया ने जालंधर में मीडिया से बातचीत करते हुए कहा है कि पंजाब में बढ़ रहे नशे और ड्रग्स के कारण यहां के युवा खेलों में पिछड़ रहे हैं. एक अंग्रेजी समाचार में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार पंजाब में अब 9 से 15 वर्ष की आयु के बच्चे व किशोर भी नशे के आदी हो रहे हैं. ऐसे में नीति आयोग की रिपोर्ट कह रही है कि पंजाब स्वास्थ्य के मामले में देश में पांचवें स्थान पर है. तकनीकी दृष्टि से सरकार का दावा ठीक हो सकता है लेकिन धरातल स्तर पर तस्वीर कुछ और ही है. पिछले दिनों एक मीडिया संस्थान द्वारा पंजाब के 21 जिलों में किए स्टिंग के आधार पर राज्य में चल रहे अवैध नशा छुड़ाओ केंद्रों की जो तस्वीर सामने आई उससे स्पष्ट होता है कि नशामुक्ति के नाम पर कैसे लोगों को लूटा जा रहा है. प्रकाशित रिपोर्ट अनुसार पंजाब में चिट्टा, शराब, चरस आदि नशे ने जैसे-जैसे पैर पसारे इसके साइड इफेक्ट भी सामने आने लगे हैं.  पहले लोगों को नशे में धकेला गया और अब नशा छुड़ाने के नाम पर मोटी कमाई की जा रही है. ये अवैध केंद्र, फिजियोथेरेपी, नेचुरोपैथी, एक्यूप्रेशर सेंटर, रिहेबलिटेशन सेंटर का लाइसेंस लेकर ड्रग डी-एडिक्शन सेंटर का काम कर रहे हैं. कई जगह धर्म की आड़ में भी नशा मुक्ति केंद्र चल रहे हैं. इनमें इलाज का तरीका बड़ा वहशियाना है. इलाज के नाम पर बेल्ट, डंडों से पीटा जाता है. पूरा-पूरा दिन घुटनों के बल फर्श पर चलाया जाता है और भूखा रखा जाता है. तर्क यह दिया जाता है कि इससे इनका ध्यान नशे की तरफ नहीं जाएगा. सेंटर दावा करते हैं कि छह महीने में मरीज को नशे की लत से मुक्त करवा देंगे, पर ऐसा हो नहीं रहा. शहर की तुलना में ग्रामीण इलाकों में ड्रग डी-एडिक्शन सेंटर्स में ज्यादा गड़बडिय़ां पाई गईं. यहां मरीजों से 60 से 90 हजार रुपए तक लिए जा रहें हैं और परिजनों को तीन से चार माह तक मिलने नहीं देते. सूबे में यह अवैध कारोबार सालाना 175 करोड़ तक का हो गया है. गोरखधंधे का आलम यह है कि कई सेंटर्स लाईसेंस रिन्यू न होने का बहाना बनाकर मरीजों को हिमाचल प्रदेश, हरियाणा और जम्मू तक भेज रहे हैं. स्टेट मेंटल हेल्थ अथॉरिटी के नियमों के अनुसार डी-एडिक्शन सेंटर में नशा मुक्ति केंद्रों पर एमओ डाक्टर, साइकेट्रिस्ट काउंसलर प्रोजेक्ट मैनेजर, नर्स, वार्ड ब्वॉय, चौकीदार, डाइट प्लानर और फिजियोथेरेपी टीचर होने चाहिएं. इन केंद्रों पर ऐसा नहीं दिखा. 200 से ज्यादा सेंटर ऐसे पाए गए, जहां काउंसलर ही डॉक्टर और अकाउंटेंट की भूूमिका में हैं। नर्स और वॉर्ड ब्वॉय भी नहीं है. योगा टीचर व फिजियोथेरेपिस्ट सिर्फ कागजों में थे.

पंजाब में राजस्व बनाने के लिए शराब के ठेकों की गिनती जहां हर वर्ष बढ़ती जा रही है वहीं अंग्रेजी व देसी शराब की बोतलों को बेचने का लक्ष्य भी बढ़ रहा है. इसके साथ-साथ अवैध ढंग से चलाई जा रही शराब की भट्ठियां और चिट्टा, गांजा व अफीम, चरस अलग से बिकती है. पंजाब में खेल मैदान व खेल स्टेडियम अधिकतर दयनीय हालत में हैं. खेल संगठनों में सत्ता से संरक्षण प्राप्त लोग मठाधीशों की तरह बैठे हैं. खिलाड़ी का हित व भविष्य असुरिक्षत होने तथा बढ़ती बेरोजगारी के कारण युवा जब दबाव झेलने में अपने को असमर्थ पाता है तो उसकी इस कमजोर स्थिति का लाभ पहले नशा बेचने वाले उठाते हैं फिर नशा छुड़ाने के नाम पर प्रभावित युवाओं के परिवारों को लूटते हैं. नशा केंद्रों में अमानवीय व्यवहार किया जाता है, यह बात तो अब जगजाहिर हो चुकी है.

प्रश्न यह है कि प्रदेश में अवैध नशा केंद्र क्या बिना किसी राजनीतिक संरक्षण के चल सकते हैं, शायद नहीं? सैकड़ों की संख्या में चल रहे अवैध नशा केंद्रों का कारोबार भी करोड़ों रुपए का है. इससे ही समझा जा सकता है कि नशा छुड़ाने के नाम पर नशेड़ी के परिवार को लूटा जा रहा है और लूट के इस मामले में स्थानीय प्र्रशासन व सत्ताधारियों का साथ लेने के लिए बंदर बांट भी होती होगी. वरना क्या कारण है कि इतने बड़े स्तर पर प्रदेश में वर्षों से अवैध नशा केंद्र चलते रहे हैं और प्रशासन व सरकार को पता ही नहीं चला.

पंजाब का आने वाला कल तो आज के युवाओं पर ही निर्भर है. अगर आज का युवा ही शारीरिक व मानसिक रूप से कमजोर हो गया तो फिर पंजाब का भविष्य भी धूमिल ही होगा. पंजाब के सेहत मंत्री बलबीर सिंह सिद्धू ने कहा है कि अवैध नशा केंद्रों को रोकने के लिए अब सख्त नियम बनाये जाएंगे. नियम तो बन जाएंगे, पहले भी थे लेकिन समस्या तो नियमों को सख्ती से लागू कराने की है. पंजाब के उज्जवल भविष्य के लिए समाज व सरकार को मिलकर नशे तथा अवैध नशा छुड़ाओ केंद्रों के विरुद्ध अभियान चलाने की आवश्यकता है, तभी प्रदेश का भविष्य धूमिल होने से बचाया जा सकता है.

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