समाज तोड़ो राजनीति की उपज हैं राज ठाकरे

 सिद्धार्थ शंकर गौतम

महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के सर्वेसर्वा राज ठाकरे ने एक बार फिर मराठी माणूस की अस्मिता के सवाल पर बिहारियों पर जमकर निशाना साधा है| दरअसल ११ अगस्त को मुंबई के आज़ाद मैदान पर हुई कट्टरपंथियों की सभा और उसके बाद भड़के दंगों के बीच समुदाय विशेष के दो लोगों ने अमर जवान ज्योति स्मारक को जमकर नुकसान पहुँचाया था| हाल ही में खबर मिली कि उनमें से एक आरोपी बिहार में अपने रिश्तेदारों के यहाँ छुपा हुआ है| जानकारी पाते ही मुंबई पुलिस का एक दल बिहार जाकर उस आरोपी को पकड़ लाया किन्तु बिहार के मुख्य सचिव ने त्वरित चिट्ठी लिख कर महाराष्ट्र सरकार से इस मामले में जवाब तलब कर लिया| देखा जाए तो मुंबई पुलिस को संघीय व्यवस्था के अनुसार बिहार पुलिस को आरोपी की गिरफ्तारी के विशेष में पूर्व सूचना देनी चाहिए थी किन्तु राज ठाकरे के मुंबई हिंसा के बाद निकले मोर्चे से मुंबई पुलिस पर दबाव था और यही दबाव मुंबई पुलिस से नियमों का उल्लंघन करवा गया| खैर, बिहार के मुख्य सचिव ने नियमों के तहत ही महाराष्ट्र सरकार से जवाब तलब किया था किन्तु यहीं राज ठाकरे भड़क गए और उन्होंने महाराष्ट्र के साम्प्रादायिक सद्भाव को बिगाड़ने का दोषी बिहारियों को ठहरा दिया| जब बयानबाजी बढ़ी तो ज़ाहिर हैं इसमें सभी राजनीतिक दलों के बयानवीर शामिल हो गए और फिर ऐसे-ऐसे बयान सामने आने लगे जो लोकतांत्रिक मूल्यों के विरुद्ध हैं| कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने तो राज सहित पूरे ठाकरे परिवार को ही बिहारी भगोड़ा घोषित कर दिया तो जदयू प्रवक्ता शिवानन्द तिवारी ने राज पर देशद्रोह का मुकदमा चलाने की सिफारिश कर डाली| वहीं एनडीए संयोजक शरद यादव ने भी राज की बिहारियों के प्रति की गई अशोभनीय टिप्पड़ी को अपमानजनक कहा है| खैर इस मुद्दे पर पूर्व में भी बयानबाजियां होती रही हैं और नेताओं ने अपनी राजनीतिक रोटियाँ सेंकी हैं किन्तु सवाल यह उठता है कि क्या देश का कानून और व्यवस्था इतनी लचर हो चुकी है कि वह राज ठाकरे के ज़हर उगलते बयानों के आधार पर उनके विरुद्ध आपराधिक प्रकरण भी दर्ज नहीं कर सकती? संविधान कहता है कि देश का नागरिक देश के किसी भी भाग पर निवास कर सकता है और अपनी आजीविका चला सकता है| ऐसे में क्या राज ठाकरे का मुंबई को मराठी लोगों की जागीर बताना व बिहारियों को कब्जाधारी बताते हुए उनपर अत्याचार करना संविधान सम्मत है? कदापि नहीं| यह तो सरासर संवैधानिक संस्था को चुनौती है| तब राज ठाकरे का यूँ बार-बार जहर उगलना सरकारों को क्यों नहीं दिख रहा? क्या सरकारें भी राज ठाकरे की राजनीति का हिस्सा बन गई है? क्या उन्हें भी मराठी-बिहारी माणूस मुद्दे से राजनीतिक लाभ होता है? राज ठाकरे को परदे के पीछे से हिम्मत देती आ रही कांग्रेस क्या भाजपा-शिवसेना को बैकफुट पर नहीं रखना चाहती? अब तक के घटनाक्रम को देखते हुए तो यही प्रतीत होता है|

 

राज ठाकरे मुंबई को भले ही मराठी अस्मिता से कथित चश्मे से देखें किन्तु यह भी उतना ही सच है कि मुंबई को अंतर्राष्ट्रीय पटल पर पहचान दिलाने में बाहरी प्रदेशों के लोगों का भी योगदान है और यदि इस तथ्य को राज अस्वीकृत करते हैं या जानबूझ कर नकारते हैं तो वे विशुद्ध रूप से राजनीति ही कर रहे हैं| न तो उन्हें मराठी-महाराष्ट्र से सरोकार है; न ही बिहारियों से| उन्होंने शिवसेना की तर्ज़ पर मुद्दों को अतिरेक बनाना सीख लिया है जिसमें वे कामयाब हो रहे हैं और कानून व्यवस्था फेल| फिर दोष राज का भी नहीं है, दोष है सदियों से चली आ रही वैमनस्य राजनीति का जिसने देश को बाँट दिया है| उत्तरप्रदेश में मायावती दलितों की राजनीति करती हैं, मुलायम सिंह यादव मुस्लिम-यादव समीकरण से बंधे हैं, नीतीश कुमार ने दलितों में से महादलित खोज लिए हैं| फिर ये तो क्षेत्रीय क्षत्रप हैं, देश की सबसे पुरानी पार्टी ब्राम्हणों की राजनीति करती है तो राष्ट्रवादी पार्टी को बनियों की पार्टी कहा जाता है| कहीं न कहीं सामाजिक वैमनस्यता को बढ़ावा देने में इन पार्टियों व इनसे जुड़े नेताओं का ही हाथ है, फिर अकेले राज ठाकरे को दोषी क्यों ठहराया जा रहा है? राज भी तो वही कर रहे हैं जो उन्होंने अपने वरिष्ठों की राजनीति को देख-समझ कर सीखा है| मैं यक़ीनन राज ठाकरे की बांटो और राज करो की राजनीति का समर्थक नहीं हूँ किन्तु यदि राज ठाकरे पर चौतरफा हमला हो रहा है तो उन जुबानी हमलावर नेताओं से भी यह प्रश्न पूछा जाना चाहिए कि आपने अब तक जो किया वह क्या था? खैर नेताओं की राजनीतिक कलाबाजियां न हो तो समाप्त होगीं और न ही राज जैसों का विषवमन कम होगा| लिहाजा हमें ही देश को तोड़ने पर आमादा नेताओं से निपटना होगा और उसका तरीका क्या होना चाहिए यह शायद बतलाने की आवश्यकता नहीं है| फिलहाल तो राज ठाकरे जो कर रहे हैं वह कानूनन गलत है जिसकी उन्हें सजा मिलना चाहिए|

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सिद्धार्थ शंकर गौतम
ललितपुर(उत्तरप्रदेश) में जन्‍मे सिद्धार्थजी ने स्कूली शिक्षा जामनगर (गुजरात) से प्राप्त की, ज़िन्दगी क्या है इसे पुणे (महाराष्ट्र) में जाना और जीना इंदौर/उज्जैन (मध्यप्रदेश) में सीखा। पढ़ाई-लिखाई से उन्‍हें छुटकारा मिला तो घुमक्कड़ी जीवन व्यतीत कर भारत को करीब से देखा। वर्तमान में उनका केन्‍द्र भोपाल (मध्यप्रदेश) है। पेशे से पत्रकार हैं, सो अपने आसपास जो भी घटित महसूसते हैं उसे कागज़ की कतरनों पर लेखन के माध्यम से उड़ेल देते हैं। राजनीति पसंदीदा विषय है किन्तु जब समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का भान होता है तो सामाजिक विषयों पर भी जमकर लिखते हैं। वर्तमान में दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर, हरिभूमि, पत्रिका, नवभारत, राज एक्सप्रेस, प्रदेश टुडे, राष्ट्रीय सहारा, जनसंदेश टाइम्स, डेली न्यूज़ एक्टिविस्ट, सन्मार्ग, दैनिक दबंग दुनिया, स्वदेश, आचरण (सभी समाचार पत्र), हमसमवेत, एक्सप्रेस न्यूज़ (हिंदी भाषी न्यूज़ एजेंसी) सहित कई वेबसाइटों के लिए लेखन कार्य कर रहे हैं और आज भी उन्‍हें अपनी लेखनी में धार का इंतज़ार है।

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