मेरे मानस के राम : अध्याय 18

अध्याय 18

सीता जी और रावण का संवाद

उस अशोक वाटिका में हनुमान जी ने एक ऊंचे उठे हुए गोलाकार भवन को देखा। यह भवन अत्यंत निर्मल था और ऊंचाई में आकाश से बातें करता था। उस भवन को देखते हुए हनुमान जी ने मैले वस्त्रों से युक्त रक्षसियों से घिरी हुई, उपवास करने से अत्यंत दुर्बल ,अत्यंत दु:खी , बार-बार लंबी सांस लेती हुई , शुक्ल पक्ष के आरंभ में द्वितीया की क्षीण चंद्र रेखा के समान एक निर्मल स्त्री को देखा। कुछ समय में ही उन्होंने यह अनुमान लगा लिया कि यह धर्म को जानने वाले, किए हुए उपकार को मानने वाले और लोक प्रसिद्ध श्री राम की प्राणप्रिया पत्नी सीता जी हैं।

गात पर मैले वसन, किए बहुत उपवास ।
दुर्बल काया हो गई , रुक रुक लेती सांस।।

ताड़ लिया हनुमान ने, यही है सीता मात।
सूख गया वियोग में , जिसका सारा गात।।

महाकष्टों को भोगती, सीता बड़ी महान।
इस आशा में जी रही , आएंगे पति राम।।

सीता जी को देखकर , प्रसन्न हुए हनुमान।
सही लक्ष्य पर आ गया, सही रहा अनुमान।।

प्रातः काल की भोर में, आ पहुंच लंकेश।
प्रणय निवेदन कर रहा, सीता से लंकेश।।

बन जा मेरी भार्या , छोड़ राम का नेह।
वियोग में तू सुखा रही ,अपनी कंचन देह?

साथ मेरे आनन्द कर, मनचाहा सुख भोग।
छोड़ राम की लालसा, और व्यर्थ का शोक।।

रावण की इस प्रकार की बातों को सुनकर सीता जी ने उसे स्पष्ट कर दिया कि जैसे ब्रह्मप्राप्ति रूपी पापिष्ठ जन द्वारा चाहने योग्य नहीं होती है, रावण वैसे ही मैं भी तेरे चाहने योग्य नहीं हूं अर्थात जैसे पापी पुरुष सिद्धि प्राप्त नहीं कर सकता, उसी प्रकार तू भी मुझे प्राप्त नहीं कर सकता। तुझे यह पता होना चाहिए कि मैं उत्तम कुल में उत्पन्न हुई हूं और उसके पश्चात मेरा विवाह भी एक पवित्र कुल में हुआ है। उन दोनों कुलों की प्रतिष्ठा को मैं कलंकित नहीं कर सकती। मैं पतिव्रता हूं। अतः मुझसे तू इस निंदित कर्म की आशा मत कर। परिणाम चाहे जो हो , पर मैं कभी तेरी पत्नी नहीं बन सकती।

सीता जी कहने लगीं , तू नीच बड़ा लंकेश।
नहीं पा सकता तू मुझे, करता व्यर्थ उपदेश।।

दे मिला मुझे राम से , जो चाहे कल्याण।
एक दिन तेरे देखना , नहीं बचेंगे प्राण।।

लोकनाथ श्री राम की, सुनेगा जब हुंकार।
लंकेश नहीं बच पाएगा, मिटेगा कुल परिवार।।

ज्ञान तेरा सब व्यर्थ है, मार रहा क्यों डींग ?
आचरण तेरा शून्य है, और दुर्बल तेरी नींव।।

डॉ राकेश कुमार आर्य

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राकेश कुमार आर्य
उगता भारत’ साप्ताहिक / दैनिक समाचारपत्र के संपादक; बी.ए. ,एलएल.बी. तक की शिक्षा, पेशे से अधिवक्ता। राकेश आर्य जी कई वर्षों से देश के विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में स्वतंत्र लेखन कर रहे हैं। अब तक चालीस से अधिक पुस्तकों का लेखन कर चुके हैं। वर्तमान में ' 'राष्ट्रीय प्रेस महासंघ ' के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं । उत्कृष्ट लेखन के लिए राजस्थान के राज्यपाल श्री कल्याण सिंह जी सहित कई संस्थाओं द्वारा सम्मानित किए जा चुके हैं । सामाजिक रूप से सक्रिय राकेश जी अखिल भारत हिन्दू महासभा के वरिष्ठ राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और अखिल भारतीय मानवाधिकार निगरानी समिति के राष्ट्रीय सलाहकार भी हैं। ग्रेटर नोएडा , जनपद गौतमबुध नगर दादरी, उ.प्र. के निवासी हैं।

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