सिंपल लिविंग एंड हाई थिंकिंग : चौधरी चरण सिंह

धरतीपुत्र चौधरी चरण सिंह की जयंती 23 दिसंबर, 1902 पर विशेष

अमरदीप सिंह

सादगी, ईमानदारी, प्रतिबद्धता, अनुशासन के पर्याय समझे जाने वाले चौधरी चरण सिंह की सोच, सांसों और धड़कन में हमेशा – हमेशा खेत-खलिहान और धरतीपुत्र ही रचे और बसे रहे। काश्तकारों के मसीहा चौधरी चरण सिंह अगर आज हमारे बीच होते तो 118 बरस के होते I सिंपल लिविंग और हाई थिंकिंग को साक्षात् अपने जीवन में उतारने वाले चौधरी साहब आज भी किसानों के दिलों में राज करते हैं I उन्होंने अपने जीवन में किसी भी पद को सुशोभित किया हो, लेकिन उनकी जीवनशैली ठेठ ग्रामीण ही रही। मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री होते हुए भी अपनी संस्कृति और संस्कार से कतई नहीं डिगे। अपने बंगले में एक कालीन बिछाकर बैठते और छोटी-सी मेज पर रखकर सरकारी कामकाज को अंतिम रूप देते। किसानों के मसीहा कहे जाने वाले चौधरी साहब का जन्म 23 दिसंबर,1902 को हापुड़ के नूरपुर गाँव में हुआ I इनके पिता श्री मीर सिंह एक गरीब काश्तकार थे I माली हालत पतली होने से प्रारंभिक शिक्षा से लेकर उच्च तालीम तक सारा खर्च इनके ताऊ लखपति सिंह ने उठाया I कहने का अभिप्रायः यह है, चौधरी साहब मुँह में चाँदी का चम्मच लेकर पैदा नहीं हुए। इसीलिए वह नेहरू से लेकर इंदिरा गाँधी तक बार-बार टकराते रहे, क्योंकि वह ग्रामीण परिवेश की जमीनी हकीकत से पूरी तरह वाक़िफ़ थे। 1959 में नेहरू के खेती के सहकारी प्रस्ताव के साथ-साथ खाद्यान्न के सरकारी व्यापार के प्रस्ताव को भी  नामंजूर करते हुए उन्होंने यूपी के कांग्रेस मंत्रिमंडल से यह कहते हुए अंततः इस्तीफा दे दिया था कि ये दोनों योजनाएं हमारे प्रजातांत्रिक जीवन की विरोधी हैं। वह राजस्व एवं परिवहन मंत्री थे। चौधरी साहब ने अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के नागपुर के सालाना अधिवेशन में पीएम नेहरू की एक न चलने दी और ये प्रस्ताव पारित नहीं हो सके। दरअसल चौधरी साहब अपनी बात हमेशा आंकड़ों के संग बहुत ही बेबाकी से कहते थे, नतीजन उनके सामने किसी की बोलने की हिम्मत नहीं होती थी। नागपुर कॉंग्रेस के इस ऐतिहासिक अधिवेशन में नेहरू के विरोध के चलते चौधरी साहब का व्यक्तित्व ऐसा निखरा कि वह किसानों के मसीहा कहलाने लगे।

महर्षि दयानन्द सरस्वती के विचारों का चौधरी साहब पर गहरा असर पड़ा। आर्य समाजी होने के नाते उन्होंने अपनी सोच में जाति या धर्म को कभी नहीं आने दिया। उन्होंने अपनी दो बेटियों का अंतरजातीय विवाह किया। यह ही क्यों, गाज़ियाबाद में वकालत करते समय उनका रसोइया भी हरिजन था I वह जातिवादी बेड़ियों को तोड़ना चाहते थे ताकि भारतीय समाज जाति प्रथा से मुक्त हो जाए। चौधरी साहब कहा करते थे, मुझे जाट बिरादरी में पैदा होने का गौरव है, लेकिन यह मेरी इच्छा से नहीं हुआ। उन्होंने सरकारी नौकरियों के साक्षात्कार में हिन्दू उम्मीदवारों से जाति न पूछे जाने का प्रस्ताव भी सरकार के सामने रखा था I हिन्दुओं में ऊंच-नीच के भेदभाव को कम करने के लिए उन्होंने नेहरू को एक पत्र भी लिखा था।

चौधरी साहब का सम्पूर्ण जीवन जनकल्याण के लिए ही समर्पित रहा I राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और समाजवादी चिंतक राममनोहर लोहिया का भी उनके जीवन पर गहरा असर पड़ा। कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में पूर्ण स्वराज का प्रस्ताव पारित होने के बाद वह राजनीति में सक्रिय हो गए। 1930 में जब महात्मा गाँधी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन का आह्वान किया तो वह भी उसमें कूद पड़े। उन्होंने गाज़ियाबाद में हिंडन नदी के किनारे नमक बनाया तो उन्हें आन्दोलन के लिए पहली बार 6 महीने की जेल हुई I जेल में ही उन्होंने अपनी दो प्रमुख किताबों- मंडी बिल और कर्जा कानून लिखीं I जेल जाने का सिलसिला यहीं तक ही नहीं थमा I कांग्रेस से जुड़ाव के चलते वह पंडित गोविन्द वल्लभ पंत के संपर्क में भी आए। स्वाधीनता आंदोलन में भाग लेने के कारण उन्हें 1940 में डेढ़ वर्ष का कारावास हुआ। 1942 में अंग्रेज भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय योगदान के चलते उन्हें दो वर्ष की फिर सजा हुई। 1942 में ही युवा चरण सिंह ने भूमिगत होकर गुप्त क्रांतिकारी संगठन भी तैयार किया। उसी समय मेरठ प्रशासन ने चरण सिंह को देखते ही गोली मारने का आदेश भी जारी किया था, लेकिन वह बिना घबराए अपना काम करते रहे I एक तरफ पुलिस चरण सिंह की टोह लेती थी, वहीं दूसरी तरफ वह जनता के बीच सभाएं करके निकल जाया करते थे। पकड़े जाने पर जेल में ही चौधरी साहब की लिखी गई पुस्तक-शिष्टाचार भारतीय संस्कृति और समाज के शिष्टाचारी नियमों का एक बहुमूल्य दस्तावेज है।

चौधरी चरण सिंह किसानों के लिए पैदा हुए। उन्ही के लिए जिए। अंत तक उन्ही के लिए समर्पित रहे। भूमि उपयोग बिल से लेकर जमींदारी उन्मूलन अधिनियम का श्रेय चौधरी साहब को ही जाता है I खासकर यूपी के काश्तकारों के लिए जमींदारी उन्मूलन  वरदान साबित हुआ। व्यापारियों की मनमानी लूट से किसानों को बचाने के लिए उन्होंने कृषि उत्पादन मार्केटिंग बिल का यूपी विधान सभा में प्रस्ताव रखा। इस कानून को बाद में सभी राज्यों ने भी लागू किया I खेती की बदहाली और सरकारों की किसान विरोधी नीतियों को देखते हुए उन्होंने किसान संतानों को सरकारी नौकरियों में 50% आरक्षण देने की पुरजोर वकालत की I उन्होंने 1949 में मंडी बिल भी पारित कराया। लगनशीलता और लोकप्रियता के चलते 1936 से लेकर 1974 तक छपरौली विधान सभा से लगातार चुने जाते रहे। वह पंडित गोविन्द वल्लभ पंत, सम्पूर्णानन्द, सुचेता कृपलानी के मंत्रिमंडलों में विभिन्न मंत्री पदों को सुशोभित किया। वह 1967 और 1969 में दो बार यूपी के सीएम रहे। 1977 में पहली बार वह बागपत लोकसभा क्षेत्र से चुने गए। जनता पार्टी की सरकार में वरिष्ठ उप प्रधानमंत्री, वित्त मंत्री, गृहमंत्री बनाए गए। 1979 में इंदिरा कांग्रेस के समर्थन से देश के पांचवे प्रधानमंत्री बने। नतीजो की चिंता किए बिना किसानों के लिए हमेशा अपनी बात पूरी ईमानदारी और बेबाकी से कहने वाले चरण सिंह ने पूरे सियासी सफर में 11 बार कुर्सी ठुकराई। यह चौधरी साहब का ही बूता था, उन्होंने पंचवर्षीय योजना में  33% गांवों को बजट में व्यवस्था कराईI अपने सिद्धांतों और मर्यादित व्यवहार की वजह से ही उन्हें राजनीति के चौधरी साहब कहा जाता है I

देश में मौजूदा किसानों का आंदोलन चौधरी साहब का भावपूर्ण स्मरण करा रहा है। यदि मोदी सरकार सच में काश्तकारों की हितैषी है तो उनके दर्द को संजीदगी से सुने। तीनों कृषि सुधार कानूनों में कहीं झोल है तो समाधान के लिए केंद्र सरकार इन आंदोलनकारियों को आश्वस्त करे। यदि संसद का सत्र भी बुलाना पड़े तो बुलाए। इसके अलावा मोदी सरकार को चौधरी साहब के धरतीपुत्रों के प्रति समर्पण, संकल्प और सेवाभाव को देखते हुए भारत रत्‍न सम्मान से नवाजे। सच यह है, मोदी सरकार को देश के इस सर्वोच्च सम्मान का ऐलान बिना समय गंवाए कर देना चाहिए। यह ही, भारत के इस अनमोल कोहिनूर को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

(लेखक निजी विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग में सीनियर फैकल्टी हैं )

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