……फिर सामने आया बालिका संरक्षण गृह का “पाप”

0
166

  संजय सक्सेना
       उत्तर प्रदेश की औद्योगिक नगरी कानपुर के राजकीय बाल गृह (बालिका) मंे करीब 59 नाबालिग लड़कियांे में कोरोना पाॅजिटिव सहित अन्य खतरनाक बीमारियां के लक्षण मिलने की खबर ने सबको चैंका कर रख दिया। इन 59  बच्चियांे में 57 कोरोना पाॅजिटिव और एक-एक एचआईवी और हेपिटाइटिस सी संक्रमित थी, लेकिन हद तो तब हो गई जब जांच के दौरान ही यह पता चला कि यह बच्चियां खतरनाक बीमारी से ही नहीं जूझ रही थीं, बल्कि इसमें से सात बच्चियां अनैतिक रूप से गर्भवती भी थीं। इस खबर का खुलासा होते ही एक तरफ योगी सरकार को सांप सूंघ गया हो वहीं दूसरी तरफ विपक्ष मानवीय संवेदनाओं को तांक पर रखकर सियासत करने लगा। छोटी-छोटी बच्चियों के साथ ऐसा महापाप हुआ था, इसकी जितनी भी निंदा की जाए कम है। बच्चियों के साथ इस तरह के घिनौने कृत्यों को वहां (बालिका संरक्षण गृह में) अंजाम दिया जा रहा था, जहां के बारे में आम धारणा यही है कि यहां(बालिका संरक्षण गृह में) अनाथ-बेसहारा बच्चियों को सबकी निगाहों से बचा कर सुरक्षा और संरक्षण देने का काम किया जाता है। कानपुर के राजकीय बाल गृह (बालिका) मंे यह घिनौना खेल कब से चल रहा होगा, कोई नहीं जानता। इसकी जांच होनी चाहिए और ऊपर से नीचे तक कोई ऐसा शख्स बचना नही चाहिए जिसके तार इस कांड से जुड़े हों। इन बच्चियों को हवश का शिकार बनाने वालों का पता लगाकर उनको तो सलाखों के पीछे पहुंचाना ही चाहिए, इसके साथ-साथ ‘दूध का दूध-पानी का पानी’ करते हुए उन लोगों पर भी शिकंजा कसना चाहिए जो इस जघन्य अपराध को छिपाए बैठे थे। 
    बहरहाल, शुरूआती जांच में कानपुर प्रशासन की ओर से चैंकाने वाला खुलासा हुआ है। यहां रह रहीं 171 में से सात गर्भवती और 57 कोरोना संक्रमित निकली हैं। अहम बात है कि इनमें से एक को छोड़कर बाकी की उम्र 18 साल से कम है। सूत्र बताते हैं गर्भवती सात किशोरियों में से पांच को घर वालों ने ठुकरा दिया था तो दो ने घर जाने से ही इंकार कर दिया था, ऐसे में सभी को बालिका गृह भेज दिया गया था। 
उक्त पूरे प्रकरण से राजकीय बाल गृह (बालिका) ने यह कहते हुए पल्ला झाड़ लिया है कि उसके वहां जब यह बच्चियां आईं थी तो वह पहले से गृभवती थीं। इनकी मेडिकल रिपोर्ट मौजूद है। मगर इतने भर से बात बनती नहीं दिख रही है। न ही राजकीय बाल गृह (बालिका) अपने कर्तव्य से मुंह मोड़ सकता है। सातों गर्भवती संवासिनियों के मामले में इन्हें बहला-फुसलाकर भगा ले जाने, रेप, छेड़छाड़ और पाक्सो एक्ट की धाराओं में एफआईआर दर्ज हो गई है। 
    बात सियासत की कि जाए तो बताया जाता है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी उक्त घटना को लेकर काफी गुस्से में हैं। हो सकता है जल्द ही कानपुर के कुछ अधिकारियों पर इसकी गाज गिर जाए। विपक्ष भी इस घटना को लेकर मुखर है। सपा प्रमुख अखिलेश यादव का इस संबंध में कहना था,‘कानपुर के सरकारी बाल संरक्षण गृह से आई खबर से उप्र में आक्रोश फैल गया है। कुछ नाबालिग लड़कियों के गर्भवती होने का गंभीर खुलासा हुआ है। इनमें 57 कोरोना से व एक एड्स से भी ग्रसित पाई गयी है, इनका तत्काल इलाज हो. सरकार शारीरिक शोषण करने वालों के खलिाफ तुरंत जाँच बैठाए। वहीं बसपा प्रमुख ने ट्विट करके कहा है कि आजमगढ़ में दलित बेटी के साथ अन्याय के मामले में जब सरकार ने सख्त कार्रवाई की थी. तो यह देर आए दुरूस्त आए लगा था. लेकिन सर्वसमाज की बहन-बेटियों के साथ लगातार होने वाली अप्रिय घटनाओं से स्पष्ट है कि आजमगढ़ की कार्रवाई केवल एक अपवाद थी, सरकार की नीति का हिस्सा नहीं है। मायावती ने योगी सरकार से मांग करते हुए लिखा है,‘बीएसपी की मांग है कि यूपी सरकार कानपुर बालिका संरक्षण गृह के घटना की लीपापोती न करे बल्कि इसको गंभीरता से ले।’मायावती ने कहा कि इसकी उच्च-स्तरीय निष्पक्ष जांच कराकर दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करे। 
 कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने कानपुर की घटना की तुलना मुजफ्फपुर घटना से की है। उन्होंने सोशल मीडिया में पोस्ट किया है कि देवरिया से भी ऐसा मामला सामने आ चुका हैं। उन्होंने कहा कि जांच के नाम पर सब कुछ दबा दिया जाता है। भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी ने कानपुर के राजकीय बालिका गृह में 57 लड़कियों के कोरोना पाजिटिव और उनमें से 7 गर्भवती मिलने की निंदा की हैं। भाकपा राज्य सचिव डा. गिरीश ने कहा है कि यह मुजफ्फपुर संवासिनी गृह कांड की पुनरावृत्ति है। वहीं सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी ने तंज कसते हुए कहा,‘बेटी पढ़ाओं बेटी बचाओं‘ की बात करने वालों की सरकार में राजकीय बालिका गृह तक बालिका गृहों की जांच हो। उधर, प्रदेश राज महिला आयोग की अध्यक्ष विमला बाथम ने संरक्षण गृह में कोरोना संक्रमण फेलने और गर्भवती किशोरियों के मामले में जिलाधिकारी से विस्तृत रिपोर्ट तलब की है। उन्होेंने पूछा है कि संरक्षण गृह में कोरोना संक्रमण न फेले, इसकी क्या व्यवस्था की गई थी। एनएचआरसी ने मुख्य सचिव और डीजीपी को नोटिस दियाः राष्ट्रीय मानवधिकार (एनएचआरसी) ने कानपुर के राजकीय बालिका संरक्षण गृह से संबंधित मामले पर प्रदेश के मुख्य सचिव और डीजीपी को नोटिस जारी किया है। दोनों से चार हफ्ते मंे जवाब मांगा गया है। आयोग के अनुसार यदि मीडिया की रिपोट्र्स सही है, तो प्रथम दृष्ट्या यह माना जा सकता है कि अधिकारी पीड़ित लड़कियों को सुरक्षा प्रदान करने में विफल रहे हैं। 
लब्बोलुआब यह है इस तरह का कृत्य पहली बार सामने नहीं आया है। दरअसल, प्रदेश के अधिकतर बाल संरक्षण गृह बदहाली के शिकार है, जहां आने वाली लड़कियों के साथ अमानवीय व्यवहार किया जाता है। ये संरक्षण गृह किसी यातना गृह से कम नहीं होते, जहां उनका शोषण आम बात है। मुजफ्फपुर के बहुचर्चित कांड के बाद यूपी के देवरिया में भी किशोरियों के शोषण का मामला सामने आया था। अब कानपुर प्रकरण के बहाने एक बार फिर संरक्षण गृहों की दुर्दशा उजागर कर दी है। कानपुर जिला प्रशासन का यह दावा सही हो सकता हैं गर्भवती किशोरियों इसी हालत में संरक्षण गृह लाई गई थीें। संरक्षण गृह में उनके साथ कोई अनुचित व्यवहार नहीं हुआ। सवाल यह है कि जब इन किशोरियों को संरक्षण गृह में दाखिल करते समय मेडिकल परीक्षण हुआ था और  परीक्षण में उनके गर्भवती होने की जानकारी दर्ज की गई थी तो फिर क्या किशोरियों को गर्भावस्था के समय दी जाने वाली जरूरी चिकित्सीय सहायता मुहैया कराई गई थी। बेहतर होता कि कुछ भी छिपाने के बजाय कानपुर जिला प्रशासन पारदर्शिता के साथ इन तमाम सवालों के जवाब दे। यदि किसी स्तर पर कोई चूक हुई तो उसकी जिम्मेदारी निर्धारित करके दोषी व्यक्तियों के खिलाफ कार्रवाई की जाए। इसके अलावा शासन-प्रशासन पहले देवरिया, और अब कानपुर की घटनाओं से सबक लेकर शासन सभी संरक्षण गृहों के हालात पर नजर डाले और वहां के माहौल को ठीक करने के उपाय करे। क्योंकि किसी राजकीय संरक्षण गृह में बालिकाओं के साथ शारीरिक-शोषण से बड़ी क्रूरता कुछ और नहीं हो सकती। बाल संरक्षण गृहों में किशोर-किशोरियों को ऐसा मौहाल दिया जाना चाहिए ताकि वे अपने किसी अनुचित आचरण के अपराध बोध से मुक्त होकर सही दिशा में आगे बढ़ सकेें। 

Previous articleमोदी शासन और सोनिया परिवार
Next articleपरमाणु परीक्षण की जगह गूंजेगी कुम्हारों के चाक की ध्वनि
संजय सक्‍सेना
मूल रूप से उत्तर प्रदेश के लखनऊ निवासी संजय कुमार सक्सेना ने पत्रकारिता में परास्नातक की डिग्री हासिल करने के बाद मिशन के रूप में पत्रकारिता की शुरूआत 1990 में लखनऊ से ही प्रकाशित हिन्दी समाचार पत्र 'नवजीवन' से की।यह सफर आगे बढ़ा तो 'दैनिक जागरण' बरेली और मुरादाबाद में बतौर उप-संपादक/रिपोर्टर अगले पड़ाव पर पहुंचा। इसके पश्चात एक बार फिर लेखक को अपनी जन्मस्थली लखनऊ से प्रकाशित समाचार पत्र 'स्वतंत्र चेतना' और 'राष्ट्रीय स्वरूप' में काम करने का मौका मिला। इस दौरान विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं जैसे दैनिक 'आज' 'पंजाब केसरी' 'मिलाप' 'सहारा समय' ' इंडिया न्यूज''नई सदी' 'प्रवक्ता' आदि में समय-समय पर राजनीतिक लेखों के अलावा क्राइम रिपोर्ट पर आधारित पत्रिकाओं 'सत्यकथा ' 'मनोहर कहानियां' 'महानगर कहानियां' में भी स्वतंत्र लेखन का कार्य करता रहा तो ई न्यूज पोर्टल 'प्रभासाक्षी' से जुड़ने का अवसर भी मिला।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here