समाजवादी संकल्प-सोच – कल, आज और कल

अरविन्द विद्रोही

डॉ राम मनोहर लोहिया वंचितों की आवाज के रूप में सदैव स्मरण किये जाते रहेंगे तथा उनके विचार व संघर्ष हमेशा लोगो को राह दिखाते रहेंगे। क्रान्तिकारियो के बौद्धिक नेता भगत सिंह को अपना नेता मानने वाले डॉ लोहिया ने अपना सम्पुर्न्य जीवन सत्ता के बेलगाम शोषक चरित्र के खिलाफ लड़ने व सत्ताधीशों की नींद हराम करने में बिताया। चाहे वो गुलामी की बेडिओं में भारत माता को जकड़े ब्रितानिया हुकूमत की गोरो की सरकार रही हो या १९४७ के बाद आजाद भारत की अंग्रेज व अंग्रेजी परस्त गुलाम मानसिकता में जकड़ी कांग्रेस की जवाहर लाल नेहरु की सरकार रही हो , डॉ लोहिया ने मन से , वचन से और कर्म से इनको कटघरे में खड़ा किया।

भारत की राजनीति में समाजवाद की अवधारणा युवा वर्ग और क्रान्तिकारियो को निरंतर प्रभावित करती रही है। क्रान्तिकारियो के संगठन हिंदुस्तान समाजवादी प्रजातंत्र संघ की तरफ से १९२९ में लाहौर कांग्रेस में घोषणा पत्र का वितरण किया गया। यह घोषणा पत्र भगत सिंह , सुखदेव व अन्य साथियो से विचार- विमर्श के बाद भगवती चरण वोहरा ने बनाया था , इसका वितरण दुर्गा भाभी के नेतृत्व में क्रान्तिकारियो ने किया था। इस घोषणा पत्र में लिखा गया —- भारत साम्राज्यवाद के जुवे के नीचे पिस रहा है। इसमें करोडो लोग आज अज्ञानता और गरीबी के शिकार हो रहे है। भारत की बहुत बड़ी जनसँख्या जो मजदूरों और किसानों की है , उनको विदेशी दबाव एवं आर्थिक लूट ने पस्त कर दिया है। भारत के मेहनत कश वर्ग की हालत आज बहुत गंभीर है। उसके सामने दोहरा खतरा है , विदेशी पूंजीवाद का एक तरफ से और भारतीय पूंजीवाद के धोखे भरे हमले का दूसरी तरफ से। भारतीय पूंजीवाद विदेशी पूंजी के साथ हर रोज बहुत से गठजोड़ कर रहा है। कुछ राजनीति नेताओ का डोमिनियन यानि की प्रभुता सम्पन्य का दर्ज़ा स्वीकार करना भी हवा के इसी रुख को स्पष्ट करता है। ……..भारतीय पूंजीपति भारतीय लोगो को धोखा देकर विदेशी पूंजीपतियो से विश्वाश घात की कीमत के रूप में सरकार से कुछ हिस्सा प्राप्त करना चाहता है। इसी कारण से मेहनत कश की तमाम आशाएं अब सिर्फ समाजवाद पर टिकी है और सिर्फ यही पूर्ण स्वराज्य और सब भेद-भाव ख़त्म करने में सहायक साबित हो सकता है। देश का भविष्य नौजवानों के सहारे है। वही धरती के बेटे है। उनकी दुःख सहने की तत्परता , उनकी बेख़ौफ़ बहादुरी और लहराती क़ुरबानी दर्शाती है कि भारत का भविष्य उनके हाथ में सुरक्षित है। एक अनुभूति-मय घडी में देश बंधु दास ने कहा था , –नौजवान भारत माता कि शान एवँ आशाएं है। आन्दोलन के पीछे इनकी प्रेरणा है , उनकी कुरबानिया है और उनकी जीत है। आजादी की राह पर मशाले लेकर चलने वाले ये ही है , मुक्ति की राह पर ये तीर्थ यात्री है। आज इस घोषणा पत्र के जारी होने के लगभग ८२ वर्षो के अन्तराल और ब्रितानिया हुकूमत से आजादी के ६३ वर्षों बाद भी सरकारों का चरित्र लेश मात्र भी नहीं बदला है। आजाद भारत में डॉ लोहिया ने एक सत्याग्रही के रूप में मारेंगे नहीं पर मानेंगे नहीं का उदघोष किया। यह नारा, यह सिधान्त भारत की ब्रितानिया दासता से मुक्ति के बाद पुरे देश में जन अधिकारों के लिए संघर्ष का सत्ता के अत्याचार-शोषण-अन्याय के खिलाफ आवाज बुलंद करने का , सत्ता के कानो में जनता की आवाज पहुचने का एक निर्भीक दर्शन बन गया है। अन्याय करना और अन्याय सहना दोनों काम को डॉ लोहिया अनैतिक मानते थे। दफा १४४ को भारत के संविधान में प्रदत्त अधिकारों के खिलाफ मानने वाले डॉ लोहिया ने दफा १४४ का विरोध करते हुए तकरीबन साठ बार जेल यात्रा की। डॉ लोहिया की नज़र में महात्मा गाँधी की सबसे बड़ी देन यह है कि उन्होंने सत्याग्रह और सिविल नाफ़रमानी के सिधांतो को प्रतिपादित करके जनता को निरंकुश-गैर जिम्मेदार-भ्रष्ट शासन सत्ता से संघर्ष का एक अमोघ अस्त्र दिया। डॉ लोहिया सिविल नाफ़रमानी को लोकतंत्र का कवच मानते थे। डॉ लोहिया के द्वारा आजाद भारत में सरकार कि गलत नीतिओ के खिलाफ सिविल नाफ़रमानी और सत्याग्रह चलाये जाने पर जवाहर लाल नेहरु ने संसद में कहा था कि हमारे मित्र डॉ राम मनोहर लोहिया आजाद हिंदुस्तान में भी सत्याग्रह करना चाहते है जिसका कि कोई अर्थ और औचित्य नहीं है| आज भी कांग्रेस की सरकार लोकपाल मामले और काला धन वापसी मामले पर आन्दोलन कर रहे लोगो और संगठनो पर इसी प्रकार की टिप्पणिया करके अपना शोषक , जन विरोधी चरित्र प्रदर्शित कर रही है। डॉ लोहिया समाजवादी आन्दोलन के माध्यम से एक ईसर सत्याग्रहियो का संगठन तैयार करना चाहते थे जो सत्ता का मोह त्याग कर पुरे देश में निरंतर अन्याय के खिलाफ सत्याग्रह करता रहे, आज डॉ लोहिया का यह सपना विभिन्न संगठनो के रूप में साकार हो चुका है।

डॉ राम मनोहर् लोहिया ने भगत सिंह सरीखी क्रांतिवादिता, गाँधी की तरह का सत्याग्रही चरित्र व स्व अर्जित मानसिक दृढ़ता के बलबूते समाजवाद व भारत की राजनीति को एक नई दिशा दी। आज डॉ लोहिया के लोगो में मुलायम सिंह यादव व उनकी समाजवादी पार्टी राजनीतिक फलक पर डॉ लोहिया के विचारो और समाजवाद का प्रतिनिधित्व कर रही है। जार्ज फर्नान्डीज़ और ठाकुर रामेश्वर सिंह बीमार हालत में अपने जीवन के अंतिम पलों को जी रहे है। रघु ठाकुर जैसे धुर समाजवादी अपना अलग दल लोकतान्त्रिक समाजवादी पार्टी संचालित कर रहे है। समाजवाद का नाम लेकर स्वार्थी राजनीति करने वाले कुछ लोग भ्रष्ट कांग्रेस की गोद में बैठ कर सत्ता सुख की मलाई काट कर कांग्रेस की दया- कृपा पर राजनीतिक जीवन यात्रा का आनंद ले रहे है। जिस कांग्रेस को और जिसकी नीतिओ को डॉ लोहिया देश- समाज के लिए सबसे बड़ा खतरा मानते थे , उसका महिमा गान करने वाला डॉ लोहिया का अनुयायी किस प्रकार से हो सकता है ? आज उत्तर प्रदेश समेत समूचा भारत उन्ही तमाम समस्याओ व दुश्वारियो से त्रस्त है जिन पर क्रान्तिकारियो ने अपनी चिंता प्रकट की थी , जिसके खिलाफ वो लड़े थे तथा भारत के आम जन के हितार्थ आजादी के लिए मौत तक का वरन स्वतः किया। आज क्रान्तिकारियो के वंशज भी जनता की पैदा को समझ कर सार्वजनिक – राजनीतिक जीवन में सक्रिय हो चुके है। एक बार पुनः देश में नूतन जंग ए आजादी का माहौल बनता दिख रहा है। आज भी वही लूट व अत्याचार भीषण रूप से जारी है जिसके खिलाफ डॉ लोहिया लड़ते हुए म़र गये तथा कह गये कि लोग मेरी बात सुनेंगे जरुर लेकिन मेरे मरने के बाद। आज विभिन्न संगठन भ्रस्टाचार व शोषण-अत्याचार के खिलाफ , जन अधिकारों कि बहाली के लिए सत्याग्रह का मार्ग अपना रहे है। जन आन्दोलनों ने सरकारों को चेतावनी दे दी है। आज लोक नायक जय प्रकाश नारायण के हुँकार सिघासन खाली करो कि जनता आती है, जनता कि हुँकार बन चुकी है। जनता भ्रष्ट व नाकारा सरकारों से त्रस्त है। समाजवादी सोच , संघर्ष के विस्तार हेतु लोक कल्याण के लिए एक बार पुनः कांग्रेस के खिलाफ डॉ लोहिया – जय प्रकाश के मानने वालो , समाजवादी चिंतको , संगठनो को एक साथ जुटना होगा। डॉ लोहिया और लोक नायक जय प्रकाश समेत तमाम समाजवादी नेताओ की आत्मा समाजवादी राज्य व मूल्यों की स्थापना के लिए आज भी निहार रही है, यह मुझे प्रतीत होता है…..

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अरविन्‍द विद्रोही
एक सामाजिक कार्यकर्ता--अरविंद विद्रोही गोरखपुर में जन्म, वर्तमान में बाराबंकी, उत्तर प्रदेश में निवास है। छात्र जीवन में छात्र नेता रहे हैं। वर्तमान में सामाजिक कार्यकर्ता एवं लेखक हैं। डेलीन्यूज एक्टिविस्ट समेत इंटरनेट पर लेखन कार्य किया है तथा भूमि अधिग्रहण के खिलाफ मोर्चा लगाया है। अतीत की स्मृति से वर्तमान का भविष्य 1, अतीत की स्मृति से वर्तमान का भविष्य 2 तथा आह शहीदों के नाम से तीन पुस्तकें प्रकाशित। ये तीनों पुस्तकें बाराबंकी के सभी विद्यालयों एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं को मुफ्त वितरित की गई हैं।

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