वैश्विक कूटनीति के ‘मोदी मॉडल’ से मचे अंतरराष्ट्रीय धमाल के मायने

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कमलेश पांडेय

वैश्विक कूटनीति के ‘मोदी मॉडल’ से एक के बाद एक मचे अंतरराष्ट्रीय राजनयिक धमाल के मायने ब्रेक के बाद निरंतर दिलचस्प होते जा रहे हैं क्योंकि ये अमेरिकी नेतृत्व वाली एक ध्रुवीय दुनिया से इतर बहुपक्षीय दुनिया को कतिपय मामलों में ग्रेस प्रदान करते हैं। समकालीन दुनियादारी में अमेरिकी हैकड़ी पर लगाम लगाते हुए भारत ने रूसी-चीनी खेमे के द्विध्रुवीय दुनिया के साथ खड़े होने की जो चतुराई  दिखाई है, वह इसलिए कि अंतरराष्ट्रीय तौर पर उपेक्षित, पददलित और पिछड़े देशों यानी ग्लोबल साउथ के दूरगामी हितों को साधा जा सके। 

अब पूरी दुनिया में चीन के नेतृत्व में आयोजित हुए एससीओ की बैठक से जुड़ी पीएम नरेंद्र मोदी, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग  की आपसी पर्सनल केमिस्ट्री वाली तस्वीर वायरल हो चुकी है, इसलिए वैश्विक कूटनीतिक विशेषज्ञ उसका लगातार विश्लेषण कर रहे हैं और आए दिन बदलती दुनियादारी में अपनी माकूल जगह तलाश रहे हैं जबकि भारत के साथ दोस्त बनकर गद्दारी की फितरत रखने वाला अमेरिका अब अपना सिर धुन रहा है। 

चौंकाने वाली बात यह है कि लगातार भारत विरोधी विषबमन करने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप और उनके आर्थिक सलाहकार पीटर के इतर अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने भारत-अमेरिकी संबंधों को फिर से संभालने की कोशिश की है जिसके बाद केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल का भी एक बयान सामने आया है जो सकारात्मक संदेश देता है कि ट्रेड डील के लिए अमेरिका के साथ बातचीत चल रही है हालांकि, ऑपरेशन सिंदूर के  बाद जो अमेरिकी हठधर्मिता सामने आई है, उसके दृष्टिगत भारत को अब चीन की तरह ही अमेरिका के साथ भी अपनी शर्तों पर फूंक फूंक कर कदम आगे बढ़ाना पड़ेगा क्योंकि ये लोग भरोसे के लायक नहीं हैं, खासकर वैश्विक वफादार मित्र रूस की तरह।

अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक विशेषज्ञ बताते हैं कि टैरिफ पर अड़ियल रुख के बावजूद ट्रंप एडमिनिस्ट्रेशन में ऐसे लोग भरे पड़े हैं जो अमेरिका के लिए भारत के रणनीतिक महत्व के विविध आयाम को समझते हैं। मार्को रुबियो उनमें से ही एक हैं। देखा जाए तो उनका बयान ही नहीं बल्कि उसकी टाइमिंग भी काफी अहम है। जिस दिन अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने भारत के साथ व्यापारिक रिश्ते को एकतरफा बताया, उसी दिन रुबियो ने इस साझेदारी को 21वीं सदी का निर्णायक रिश्ता करार दिया। यही नहीं, उन्होंने दोनों देशों की जनता के बीच बनी मित्रता को इंडिया-यूएस पार्टनरशिप का आधार बताकर हाल में आई कटुता को एक हद तक दूर करने का जो प्रयास किया है, वह उनकी दूरदर्शिता और बौद्धिक परिपक्वता की निशानी है।

जानकार बताते हैं कि दुनियावी तौर पर वयोवृद्ध राष्ट्रपति ट्रंप की छवि एक ऐसे अड़ियल राजनेता की बन चुकी है जिसकी आदतें और नीतियां अस्थिर हैं और वो व्यक्तिगत पसंद-नापसंद के आधार पर बदलती रहती हैं। जो राष्ट्रपति ट्रंप कभी पीएम मोदी के लिए कुर्सियां लगाते व पकड़े दिखाई देते हैं, वहीं उनके लिए अपमानित करने वाली बात कहेंगे, ऐसा सोचा भी नहीं जा सकता लेकिन ट्रंप ने बिल्कुल वैसा ही किया है। उन्होंने अपने पहले कार्यकाल में भी कई ऐसे बयान दिए थे जिनके बारे में बाद में व्हाइट  हाउस को सफाई तक देनी पड़ी। चाहे भारत-पाकिस्तान के बीच कश्मीर मसले पर मध्यस्थता का प्रस्ताव हो या फिर अमेरिकी चुनाव में दखल के मामले में रूस को क्लीनचिट देना- ट्रंप ने अपने विदेश विभाग को कई बार असमंजस में डाल दिया था। वहीं, बंगलादेश में हिन्दू उत्पीड़न की उन्होंने जिस तरह से जबर्दस्त मुखालफत की, उससे हिन्दू बहुल देश भारत में उनसे सहानुभूति हुई लेकिन ऑपरेशन सिंदूर और टैरिफ अटैक से जुड़ी शर्मनाक बयानबाजियों ने उनके तमाम सद्गुणों को धत्ता बता दिया।

वहीं अगर मौजूदा वैश्विक और द्विपक्षीय हालात को देखें, तो ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में भी अब भी कुछ वैसा ही होता दिखाई पड़ रहा है। भले ही ट्रंप का रवैया बातचीत के सारे रास्ते बंद करने का है लेकिन अमेरिकी रणनीतिकार जानते हैं कि इससे चीजें और बिगड़ती चली जाएंगी। ऐसे में भारत की वैश्विक भूमिका को अब हल्के में नहीं लिया जा सकता । इसलिए अमेरिकी प्रशासन अब गम्भीर हो चुका है क्योंकि पश्चिमी मीडिया पीएम मोदी की चीन यात्रा और वहां पर रूसी राष्ट्रपति पूतिन से हुई उनकी मुलाकात को अमेरिकी डिप्लोमैसी के लिए एक बड़े झटके के रूप में देख रहा है जिससे उबरने में अब उसे वर्षों मेहनत करनी पड़ेगी।

हालांकि, भारत ने भी कूटनीतिक मामलों में हमेशा से ही चतुराई से काम लिया है, इसलिए उसने कभी भी द्विपक्षीय संवाद का रास्ता बंद नहीं किया है। हालिया केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल का बयान इस बात का सबसे बड़ा सबूत है। निःसन्देह दुनिया भर में कारोबारी रिश्तों का विस्तार करने के बावजूद भी नई दिल्ली ने वॉशिंगटन के साथ पुराने संबंधों को नहीं छोड़ा है। इस कड़ी में यह भी अहम है कि दोनों देशों की सेनाएं संयुक्त अभ्यास के लिए अलास्का में जुटी हुई हैं। 

भारत-अमेरिका दोनों पक्ष यही चाहते भी हैं कि बातचीत लगातार जारी रहे क्योंकि  दो दशकों की मेहनत के बाद उन्होंने अपने संबंधों को यह ऊंचाई दी थी। यह कड़वा सच है कि इस दौरान यह द्विपक्षीय रिश्ता कभी भी तीसरे देश को देखकर निर्धारित नहीं हुआ। इसलिए भारत ने फ्रांस, इंग्लैंड, जापान, ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका, रूस, चीन, ऑस्ट्रेलिया, सऊदी अरब, ईरान, आसियान देश आदि सबसे घनिष्ठ सम्बन्ध विकसित किये। लिहाजा मौजूदा अनुभवी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की सरकार को यह बात समझते हुए बातचीत के रास्ते खुले रखने चाहिए। उन्हें यह समझना होगा कि कुछ मामलों में ड्रैगन के व्यवहार से यूएस के बरक्स चीन के विश्वसनीय ताक़त होने पर संदेह होता है, इसलिए अमेरिका का भविष्य उज्जवल हो सकता है बशर्ते कि वह भारत को साधकर चल सके।

कमलेश पांडेय

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