डा.वेदप्रकाश
नागरिकों द्वारा कर्त्तव्यों के ज्ञान और निर्वाह के बिना संकल्प से सिद्धि का मार्ग बाधित होता है। इसलिए आज व्यापक स्तर पर यह आवश्यक है कि संविधान सम्मत नागरिक कर्त्तव्यों का प्रचार-प्रसार हो। विकसित भारत के संकल्प में सभी को अधिकार मिलें इसके लिए यह भी आवश्यक है कि सभी नागरिक कर्तव्यों का पालन भी करें।
संविधान लोकतंत्र की आत्मा है। लोकतंत्र सम्मत विभिन्न प्रविधान और समूची व्यवस्थाएं संविधान से ही चालित होती हैं। यही कारण है कि भारत में संविधान सर्वोपरि है। यह संविधान ही है जो प्रत्येक नागरिक को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक रूप से न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्रदान करता है। साथ ही यह प्रत्येक नागरिक की गरिमा को भी सुनिश्चित करता है। संविधान के विभिन्न अनुच्छेदों में समता का अधिकार, शोषण के विरुद्ध अधिकार, धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता आदि अधिकारों की व्यापक चर्चा है और एक नागरिक के नाते हम सभी इन अधिकारों के संबंध में सजग भी रहते हैं। वहीं संविधान के भाग 4 क और अनुच्छेद 51क में मूल कर्त्तव्य के अंतर्गत 11 बिंदुओं का भी उल्लेख है जिसमें प्रत्येक नागरिक के लिए कर्त्तव्य बताए गए हैं। इनमें से कुछ प्रमुख कर्त्तव्यों पर विचार करें तो हम पाते हैं कि भारत के प्रत्येक नागरिक का पहला कर्तव्य है कि वह संविधान का पालन करे और उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्रध्वज और राष्ट्रगान का आदर करे। भारत की प्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करे और उसे अक्षुण्ण रखे। देश की रक्षा करे और आवाह्न किए जाने पर राष्ट्र की सेवा करे। भारत के सभी लोगों में समरसता और सामान भ्रातृत्व की भावना का निर्माण करे जो धर्म,भाषा और प्रदेश या वर्ग पर आधारित सभी भेदभाव से परे हो। प्रकृति- पर्यावरण की जिसके अंतर्गत वन, झील, नदी और वन्य जीव हैं रक्षा करे और उसका संवर्धन करे तथा प्राणी मात्र के प्रति दया का भाव रखे। सार्वजनिक संपत्ति को सुरक्षित रखे और हिंसा से दूर रहे। यदि माता-पिता या संरक्षक हैं, 6 वर्ष से 14 वर्ष की आयु वाले अपने,यथास्थिति, बालक या प्रतिपाल्य के लिए शिक्षा के अवसर प्रदान करे आदि।
यहां गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है कि क्या एक नागरिक के नाते हमें संविधान सम्मत मूल कर्तव्यों का ज्ञान है? क्या हम नागरिक कर्तव्यों का निर्वाह करते हैं? क्या यह सच नहीं है कि हम एक नागरिक के रूप में अपने कर्त्तव्यों की अपेक्षा अपने अधिकारों के प्रति अधिक सचेत रहते हैं? क्या आज हमें यह समझने की आवश्यकता नहीं है कि अधिकार और कर्तव्य दोनों साथ-साथ हैं? यदि संविधान हमें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार देता है तो यह अधिकार असीमित नहीं है। इसके साथ हमारे नागरिक कर्तव्य भी जुड़े हैं।
भारत का संविधान हमें यह अधिकार देता है कि हम अपने मताधिकार का प्रयोग करें। उसके जरिए अच्छे जनप्रतिनिधियों को चुनें। न्यायपालिका एवं संविधान सम्मत संस्थाओं में विश्वास रखें लेकिन कई बार देखने में आता है कि हम अपने मताधिकार का प्रयोग नहीं करते अथवा जाति एवं क्षेत्रीयता आदि के प्रभाव में आकर अपराधी प्रवृत्ति वाले जनप्रतिनिधियों को चुनते हैं। कई बार हमारे जनप्रतिनिधि निहित स्वार्थों एवं राजनीतिक लाभ के लिए संविधान सम्मत बने चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली का ही विरोध करते हैं। इतना ही नहीं, वे विपक्ष के नाम पर न्यायपालिका के निर्णयों और संसद में बनाए गए कानूनों के प्रति भी अविश्वास फैलाने का प्रयास करते हैं। दिन- प्रतिदिन जाति, संप्रदाय,भाषा एवं क्षेत्रीयता के झगड़े सामान्य होते जा रहे हैं। इन आधारों पर एक दूसरे से वैमनस्य बढ़ रहा है। समान भ्रातृत्व की भावना को आघात पहुंचाया जाता है, क्या यह संविधान सम्मत मूल कर्त्तव्यों के अनुरूप है?
विगत दिनों ऑपरेशन सिंदूर के दौरान सैन्य अभियान पर नकारात्मक टिप्पणियां की गई। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान और उसके बाद भारत के विरुद्ध जासूसी करने वाले दर्जनों लोगों को गिरफ्तार किया गया। ये देश के ऐसे नागरिक हैं जो कुछ रुपयों के लालच में देश की एकता एवं अखंडता से खिलवाड़ कर रहे थे। इस संबंध में दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा- जासूसी भारत की अखंडता, संप्रभुता और सुरक्षा के खिलाफ है और राष्ट्र के साथ विश्वासघात है। विडंबना यह भी है कि कुछ चुने हुए जन प्रतिनिधि भी संसद के अंदर और बाहर सेना के पराक्रम पर प्रश्न उठाकर सेवा का मनोबल गिराने का प्रयास करते हैं, क्या यह नागरिक कर्तव्यों के विरुद्ध नहीं है? भारतवर्ष का संविधान जनप्रतिनिधियों के आचरण और दायित्व पर भी निर्देश करता है किंतु पिछले लंबे समय से कई जनप्रतिनिधि संविधान खतरे में है, लोकतंत्र खतरे में है, ईवीएम मशीन खराब हैं, चुनाव आयोग सत्तारूढ़ पार्टी के इशारों पर काम करता है, वोट चोरी हो रही है, सरकार केवल पूंजीपतियों के हित में काम कर रही है आदि बेबुनियाद आरोपों के सहारे राजनीतिक स्वार्थों के एजेंडे चला रहे हैं जो समाज में आक्रोश बढ़ाने और लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं को कमजोर करने का काम करते हैं, क्या इस प्रकार का आचरण नागरिक कर्तव्यों की अवहेलना नहीं है? यदि ऐसे कृत्य संविधान सम्मत नागरिक कर्त्तव्यों की अवहेलना हैं तो फिर ऐसे लोगों के विरुद्ध दंडात्मक कार्रवाही क्यों नहीं होती?
आज प्रकृति-पर्यावरण, वन, झील, नदी और वन्यजीवों के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है। इनका दोहन और इन्हें प्रदूषित करना जारी है। कई नदियां मर चुकी है अथवा भयंकर प्रदूषण की गिरफ्त में हैं। वन क्षेत्र के लगातार घटने से वन्यजीवों के अस्तित्व पर खतरा पैदा हो रहा है। अनुचित तरीके से वृक्षों को काटने वाले, नदी, झीलों और प्रकृति-पर्यावरण को प्रदूषित करने वाले कौन हैं? क्या यह संविधान सम्मत नागरिक कर्तव्यों के विरुद्ध नहीं है? समय-समय पर धरने-प्रदर्शनों के चलते सार्वजनिक संपत्ति को आग लगा देना, तोड़फोड़ और साथ ही छोटी-छोटी बातों पर हिंसा सामान्य होते जा रहे हैं जबकि नागरिक कर्तव्यों में इनके निषेध की बात कही गई है।
नागरिक कर्तव्य तो यह भी है कि हम अपने प्रकृति- पर्यावरण को स्वच्छ रखें। यहां वहां कूड़ा-कचरा न फैलाएं लेकिन क्या एक नागरिक के नाते हमें यह ज्ञान है? ध्यान रहे जब हम अपने लिए स्वच्छ जल,स्वच्छ वायु और गरिमापूर्ण जीवन के अधिकार की बात करते हैं तब हमें जल व वायु की स्वच्छता और दूसरों के गरिमापूर्ण जीवन के लिए नागरिक कर्तव्य भी निभाने पड़ेंगे। यातायात के नियमों का पालन करना प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है लेकिन अकेले राष्ट्रीय राजधानी में विगत 6 वर्षों में यातायात के नियमों के उल्लंघन को लेकर लगभग 4 करोड़ चालान काटे गए हैं. क्या यह दूसरों के जीवन से खिलवाड़ और नागरिक कर्तव्यों की अनदेखी नहीं है? आज भी लाखों बच्चे शिक्षा से वंचित हैं. क्या यह शिक्षा के अधिकार और मूल कर्तव्यों की अनदेखी नहीं है? जनप्रतिनिधियों पर राष्ट्र कल्याण के कार्य करने और नागरिकों के सकारात्मक मानस निर्माण का दायित्व होता है लेकिन विडंबना है कि आज विभिन्न जनप्रतिनिधि ही देश के विरुद्ध भिन्न-भिन्न प्रकार के दुष्प्रचार का हिस्सा बन रहे हैं। हमारी ज्ञान परंपरा में अनेक स्थानों पर कर्त्तव्यों के पालन की बात कही गई है। राजपथ का नाम बदलकर कर्तव्य पथ और विभिन्न मंत्रालयों के लिए बन रहे नए भवनों के नाम कर्तव्य भवन करने के पीछे उद्देश्य यही है कि प्रत्येक नागरिक कर्तव्य पथ और कर्तव्य भवन से अपने नागरिक कर्त्तव्यों के प्रति जिम्मेदार बने।
आज जब एक राष्ट्र के रूप में भारतवर्ष अपनी स्वतंत्रता के 79 वर्ष एवं गणतंत्र के रूप में 75 वर्ष पूरे कर चुका है तब यह आवश्यक है कि प्रत्येक नागरिक लोकतंत्र की मजबूत नींव बने। इसके लिए संविधान सम्मत अधिकारों के साथ-साथ मौलिक कर्तव्यों के प्रचार-प्रसार और जन जागरण की आवश्यकता है। आज यह भी आवश्यक है कि संविधान सम्मत मौलिक अधिकारों के साथ-साथ मौलिक कर्तव्य भी विद्यालयों और महाविद्यालयों के पाठ्यक्रम का हिस्सा बनें। कर्तव्यों का पालन करते हुए ही ऐसे नागरिकों का निर्माण हो सकता है जो विकसित भारत के संकल्प को प्रतिबद्धता से पूरा करेंगे।
डा.वेदप्रकाश