अमेरिकी टेरिफ़ को चुनौती देंगे हाथी और ड्रैगन?

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विजय सहगल     

20 जनवरी 2025 को 79 वर्षीय डोनाल्ड ट्रम्प के दूसरी बार अमेरिका के  राष्ट्रपति चुने जाने पर डोनाल्ड ट्रम्प ने पूरी दुनियाँ को टेरिफ़ वार की जंग मे उलझा दिया। दुनियाँ में महाशक्ति होने की प्रतिष्ठा  जो पूर्व राष्ट्रपतियों ने  सालों मे हांसिल की थी, ट्रम्प के आने के बाद बैसी छवि अब उनकी नहीं रही। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने दुनियाँ के सबसे परिपक्व लोकतन्त्र होने  के अपने महाशक्ति होने का रुतबा, बड़प्पन और कुलीनता को भुलाते हुए एक चतुर लेकिन काइयाँ व्यापारी के रूप मे अपनी छवि को गढ़ लिया जो 24 घंटे सातों दिन हर मिलने, जुलने, आने-जाने वालों से अपनी टैरिफ की तराजू दिखा कर, मोल-तोल करने मे मशगूल है। उन्हे अपने देश के इतिहास की मर्यादाओं और नैतिकता से कोई सरोकार नहीं।

 डोनाल्ड ट्रम्प विश्व के सभी छोटे-बड़े देशों से व्यापार मे अमेरिका के टैरिफ और टैक्स लगाने मे इतने मशगूल हो गए कि वे अपने मित्रों और शत्रुओं में, सहयोगियों और असहयोगियों के बीच के अंतर की समझ भी खो बैठे है अन्यथा क्या कारण हो सकते हैं कि रूस से तेल खरीदने पर तर्कों-वितर्कों  से परे  कुतर्कों का सहारा लेकर भारत जैसे देश पर टैरिफ और उस पर पैनल्टी लगा कर 50% का  टैक्स लगा दिया। उन्हे शायद अनुमान नहीं था कि आज का भारत  बदला हुआ भारत है जो किसी महाशक्ति की धौंस-डपट, धमकी या  दबाव मे आये बिना परस्पर समानता, सहभागिता और स्वाभिमान मे विश्वास करता है।              

पाकिस्तान और अन्य ऐसे ही देशों ने अपने आत्मसम्मान को तिलांजलि दे कर अमेरिका की व्यापार और आर्थिक नीतियों के समक्ष, उसके आगे घुटने टेकते हुए अपने देशो के नागरिकों के हितों की कीमत पर समझौता  कर लिया। उन्हे ऐसी ही कुछ  उम्मीद मोदी सरकार से रही होगी लेकिन आपदा मे अवसर की नीति पर चलते हुए नरेंद्र मोदी सरकार ने पूरी तरह संयत शांतचित्त से 280 करोड़ की आबादी वाले विश्व की दो सबसे बड़े देश, भारत और चीन  को एक बार विश्व के बिगड़े आर्थिक हालातों के बीच,  पुनः चीन के तियानजिन शहर मे 31 अगस्त से 1 सितंबर 2025 को होने वाले 25वें शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के शिखर सम्मेलन के  मंच पर एक साथ ला खड़ा किया। दोनों  देशों के एक साथ आने से न केवल इनके बीच पारस्परिक सौहार्द और संबंध तो बढ़ेंगे ही अपितु वैश्विक और क्षेत्रीय परिस्थितियों मे  भी विशेष परिणाम देखने को मिलेंगे।

 दरअसल मोदी सरकार ने अमेरिका की मदांध टैरिफ नीति को भाँपते तथा  ऑपरेशन सिंदूर मे राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के बड़बोले पन के चलते, पिछले साल ही भारत चीन संबंधों को सामान्य बनाने की रणनीति पर कार्यारंभ कर दिया था। विदेशमंत्री और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार की वार्ताओं और मुलाकातों मे गलवान घाटी मे झड़प के बाद सीमा पर तनाव मे कमी लाने मे मिली सफलता, भारत चीन व्यापार, हवाई सेवा एवं वीजा सेवा पर सहमति, भविष्य के द्विपक्षीय समझौतों पर सहमतियाँ बनी। पूरे विश्व की निगाहें भी भारत चीन की इस मीटिंग पर थीं कि कैसे विश्व की दो बड़ी आर्थिक शक्तियाँ अपने असहमति के क्षेत्रों से परे आपसी मुद्दों के समाधान के लिए सहमत हो सकती हैं। मुलाक़ात के बाद, दोनों देशों के अलग अलग बयान इस बात को उद्धृत कर रहे थे कि अब दोनों देश एक नये रास्ते पर बढ़ रहे है। दोनों देशों ने आपसी मतभेद को विवाद का रूप न देने पर भी चर्चा हुई। दोनों देश निवेश के मामले पर भी सहमति बनाते दिखे। इस सबके बावजूद सीमा पर चीन की विश्वसनीयता,  भारत चीन के संबंधों पर सबसे बड़ी चुनौती रहेगी। दोनों देशों को इस बात का ध्यान रखना होगा,  कहीं सीमा पर आपसी सहमति और विश्वास मे कमी  इस रास्ते की बड़ी बाधा न बने? 

इस मंच से रूस के राष्ट्रपति पुतिन की सहभागिता ने गुड़ मे घी का काम करते हुए इस मंच को और भी महत्वपूर्ण बना दिया। प्रधानमंत्री मोदी ने बड़े ही स्पष्ट तरीके से अपने विचार रखते हुए SCO की नई परिभाषा गढ़ी। उन्होने इस्की व्याख्या  सुरक्षा, कनेक्टीविटी और अवसरों के रूप मे की। उन्होने परोक्ष रूप से चीन पाकिस्तान कॉरीडोर के पाक अधिकृत कश्मीर से निकालने पर टिप्पड़ी करते हुए कनेक्टीविटी मे दूसरे देशों की सार्वभौमिकता और क्षेत्रीय अखंडता  का सम्मान करने की हिदायत दी। ऑपरेशन सिंदूर पर पाकिस्तान के आतंकवादियों को खुले समर्थन पर अपनी अस्वीकार्यता प्रकट करते हुए आतंकवाद पर दोहरे मानदंडों पर अपना रोष प्रकट किया। अतकवादियों के मददगारों और समर्थकों को भी आतंकवादी घोषित करने की मांग सहित उक्त बातों को भी शंघाई सहयोग संगठन के संयुक्त घोषणा पत्र मे शामिल होने की कूटिनीति को  भारत की बहुत बड़ी सफलता माना जा रहा है।      

SCO के शिखर सम्मेलन मे भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और  रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की मुलाक़ात भी विश्व के मीडिया मे छाई रही।  मोदी ने रूस और भारत के संबंधों पर प्रकाश डालते हुए इसे कठिन से कठिन दौर मे कंधे से  कंधे मिलाकर चलने से उद्धृत किया। उन्होने कहा कि दोनों देशों  के संबंध न केवल दोनों देशों के नागरिकों अपितु वैश्विक शांति, स्थिरता और समृद्धि के लिए भी महत्वपूर्ण हैं। रूस और भारत के बीच हुई इस वार्ता का मुख्य उद्देश्य आर्थिक, वित्तीय और ऊर्जा क्षेत्रों मे दोनों पक्षों के बीच सहयोग बढ़ाना था। ऊर्जा क्षेत्र मे रूस से सस्ती दरों से पेट्रोलियम पदार्थों की महत्वपूर्ण खरीद शामिल है जो भारत अमेरिका के बीच व्यापार समझौते मे, टैरिफ युद्ध का मुख्य  कारण बनी। वार्ता के पश्चात  रूसी राष्ट्रपति पुतिन का भारतीय प्रधानमंत्री के लिए दस मिनिट इंतज़ार करना और बाद मे राष्ट्रपति पुतिन की ऑरिस लिमोजीन  कार से  प्रधानमंत्री मोदी का एक साथ जाना और एक घंटे  तक एक दूसरे से अनौपचारिक  बातचीत को भी विश्व मंच ने कौतुकता से देखा। मीडिया मे चल रही चर्चा मे इस वार्ता को बेहद संवेदनशील, महत्वपूर्ण  गोपनीय वार्ता बताया।  जिसकी किसी को अब तक कोई जानकारी नहीं। शायद राष्ट्रपति पुतिन और प्रधानमंत्री मोदी ने इस कार को गोपनीय वार्ता के लिए इसलिये चुना क्योंकि वो इसे रूस से लाये थे और जो किसी भी  जासूरी यंत्रो और  प्रणाली से सुरक्षित है।

शंघाई सहयोग संगठन मे भारत, रूस चीन के एक साथ खड़े नज़र आने को अमेरिका के न्यूयार्क टाइम्स समाचार पत्र ने  भी, राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के लिए चिंता का सबब बताया। पत्र का कहना था कि ट्रम्प के भारत पर 50% टैरिफ के निर्णय ने भारत अमेरिका के व्यापार को बुरी तरह प्रभावित किया है। अमेरिका का यह निर्णय कहीं अमेरिका के लिए उल्टा न पड़ जाएँ? बैसे अमेरिका मे भी ट्रम्प के इस निर्णय का विरोध हो रहा है। अमेरिका स्थित फेडरल रिजर्व के गवर्नर जेरोम पॉवेल ने कहा है कि टेरिफ़ की बृद्धि से मुद्रास्फीति बढ़ सकती है, और आर्थिक गतिविधियां धीमि पढ़ सकती है, बेरोजगारी का खतरा बढ़ सकता है। डोनाल्ड ट्रम्प के टैरिफ के फैसले को पिछले दिनों यूएस अपील कोर्ट ने भी अवैध और गैरकानूनी बताया है। इस निर्णय से डोनाल्ड ट्रम्प काफी नाराज़ हैं और उन्होने इस निर्णय के विरुद्ध यूएस सुप्रीम कोर्ट मे अपील के लिए दरवाजा खटखटाया है।

ऐसा नहीं है कि अमेरिका के इस टैरिफ से सिर्फ भारत को ही नुकसान है, अमेरिका मे मंदी का खतरा मंडराने लगा है, भारत रूस और चीन का एक साथ विश्व मंच पर आना इस खतरे को   और मजबूत करता है। अब ऐसा प्रतीत हो रहा  हैं कि दुनियाँ के देशों मे वर्चस्व की लड़ाई और तेज होगी .कदाचित  दुनियाँ की  महाशक्तियों के क्रम मे भरी उलट फेर संभव  हो? कहीं अमेरिका को विश्व मे अपने, नंबर एक होने के अहसास से वंचित होना पड़  जाए?  भारत ने भी अन्य नये देशों से निर्यात व्यापार की संभावनाएं शुरू कर दी हैं ताकि अमेरिका से होने वाले निर्यात के नुकसान की भरपाई इन देशों के निर्यात से की जा सके।

विजय सहगल

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