जनता की आशाओं का ज्वार

-विनोद कुमार सर्वोदय-
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सन् 1947 में स्वतंत्रता के बाद सरदार पटेल द्वारा महात्मा गांधी के प्रति श्रद्धा के कारण भारत के प्रधानमंत्री का पद जवाहरलाल नेहरु को सौंप देने से राष्ट्र का निर्माण अपने प्राचीन गौरवशाली इतिहास के आधार पर न हो सका। नेहरु के रुप में पाश्चात्य व कम्युनिस्ट विचारधारा के एक ऐसे नेतृत्व का उदय हुआ जिसने भारतीय धर्म व संस्कृति को निरंतर नकारते हुए देश पर एक लम्बे समय तक राज किया। उसी परम्परा को आने वाली अन्य सरकारों ने भी निभाया। किसी ने भी भारत के मूल तत्व को समझकर उसके अनुसार रीति और नीतियों को प्रचलित करने का साहस नहीं किया।
आज एक विकास पुरुष की छवि के धनी व राष्ट्रवादी सोच रखने वाले प्रभावशाली वक्ता व कर्मठ कार्यकर्ता नरेन्द्र मोदी जी के रुप में एक सेवक भारत सरकार का नेतृत्व करके ‘सबका साथ सबका विकास’ को लेकर आगे बढ़ने के लिये पथ पर अग्रसर हो रहे हैं। सन् 1947 के बाद आज देश पुनः परिवर्तन की एक वैसी ही आहट ले रहा है जैसी सन् 1977 में जेपी आंदोलन के बाद हुई थी। परन्तु तत्कालीन सरकार की नकारात्मक व दिशाहीन राजनीति ने जनता को निराश व हताश ही किया था।

आज भारत की जनता ने आम चुनावों में ‘अच्छे दिन आने वाले हैं’ के उमंग व उत्साह भरे नारे से ‘अबकी बार मोदी सरकार’ बन रही है। ऐसे में कांटों भरी राहों पर सकारात्मक व निर्णायक क्षमता वाले मोदी जी को न जाने कितनी अग्नि परिक्षाओं को पार करके जनता की आशाओं व विश्वास पर विजय पानी होगी। आज हमको यह नहीं भूलना चाहिये कि आतंकवादियों व देशद्रोहियों द्वारा मोदी जी को लक्ष्य बनाकर रचे जा रहे चक्रव्यूहों से उनकी रक्षा करना भी तो हम सबका परम कर्तव्य है।

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