शौक की सेल्फी से जुड़ी त्रासद एवं डरावनी मौतें

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विश्व की उभरती हुई गंभीर समस्याओं में प्रमुख है मोबाइल कैमरे के जरिए सेल्फी लेना। इन दिनों मोबाइल कैमरे के जरिए सेल्फी यानी अपनी तस्वीर खुद उतारने के शौक के जानलेवा साबित होने की खबरें आए दिन सुनने को मिल रही हैं। नई पीढ़ी इस जाल में बुरी तरह कैद हो गयी है। आज हर कोई रोमांचक, हैरानी में डालने वाली एवं विस्मयकारी सेल्फी लेने के चक्कर में अपनी जान की भी परवाह नहीं कर रहे हैं। कोई जल में छलांग लगाते हुए तो कोई सांप के साथ, कोई शेर, बाघ, चीता के साथ तो कोई हवा में झुलते हुए, कोई आग से खेलते हुए तो कोई मोटरसाईकिल पर करतब दिखाते हुए सेल्फी लेने के लिये अपनी जान गंवा चुके हैं। लेकिन ताजा घटनाक्रम में चलती ट्रेन के सामने खड़े होकर सेल्फी खींचने के दुस्साहस ने गुरुग्राम के चार युवकों की जान ले ली। पच्चीस की उम्र तक के ये नौजवान रेलवे ट्रैक पर खड़े होकर मोबाइल से ऐसी सेल्फी खींच रहे थे कि उनके पीछे आती हुई ट्रेन दिखे। पीछे से आती अजमेर-सराय रोहिल्ला जनशताब्दी ट्रेन की अपनी रफ्तार थी और इसके पहले वे युवक फोटो खींचकर ट्रैक से पीछे हटते ट्रेन उनके ऊपर से गुजर चुकी थी। जान को जोखिम में डालकर सेल्फी खिंचवाना अब पूरी दुनिया में दुर्घटनाओं की एक नई कैटेगरी बन चुका है। लेकिन हैरानी की बात यह है कि लोग ऐसी घटनाओं से कोई सबक नहीं लेते और सरकारें भी मूकदर्शक बन इन हादसों को देख रही है।
किसी हादसे में हुई मौतों में हालात के कई पहलू होते हैं। लेकिन सेल्फी की वजह से हुई मौतें इसलिए ज्यादा दुखद हैं कि ये महज शौक के चलते बरती गई लापरवाही का नतीजा होती हैं। सेल्की के बढ़ते प्रचलन, उससे हो रही दर्दनाक मौतें किसी एक राष्ट्र की समस्या नहीं है, यह एक अन्तर्राष्ट्रीय समस्या बनती जा रही है। ऑस्ट्रेलिया ने तो बाकायदा सेल्फी पर एक एडवाइजरी भी जारी की है। कई जगहों पर दुर्घटना की आशंका वाले इलाकों में चेतावनी बोर्ड लगाए गए हैं। कुंभ के दौरान भी इस तरह के बोर्ड लगाए गए थे। भारत के पर्यटन मंत्रालय और मुंबई पुलिस ने ऐसी खतरे वाली जगहों की पहचान भी की है। इस दीवानगी को ओढ़ने के लिये प्रचार माध्यमों ने तो गुमराह किया ही है, लेकिन सोशल साइट्स भी भटका रही है। इस जानलेवा महामारी को समय रहते नहीं रोका गया तो आने वाले समय में हर व्यक्ति को यह त्रासद एवं डरावनी मौत का शौक प्रभावित कर सकता है। इस पर जनजागृति अभियान चलाये जाने एवं सरकार द्वारा प्रतिबंध की व्यवस्था किये जाने की जरूरत है।
पूरी दुनिया में सेल्फी के शिकार एवं कुल मौतों का तथ्यपरक एवं पुख्ता आकलन सामने नहीं आया है, लेकिन साल 2018 में जर्नल ऑफ फैमिली मेडिसिन ऐंड प्राइमरी केयर ने सेल्फी को लेकर एक अध्ययन किया था। उसने पाया कि 2011 से 2017 के बीच पूरी दुनिया में 259 लोगों की जान सेल्फी लेते समय चली गई। दुर्भाग्य से, इनमें आधे से ज्यादा मामले भारत के ही हैं। उसके बाद रूस, अमेरिका और पाकिस्तान का नंबर आता है। सेल्फी का चलन किशोरों व युवाओं के सिर चढ़ कर बोल रहा है। खतरनाक एवं रोमांचक सेल्फी लेने की होड़ मची है। हर कोई क्रेजी हो रहा है। रोमांचक सेल्फी के लिए जब जान का जोखिम उठाया जाता है तो यह जुनून अक्सर जानलेवा साबित होता है। वे अपनी मनचाही तस्वीरें खींचते हैं और सोशल नैटवर्किंग साइट्स के अलावा व्हाट्सऐप पर अपने दोस्तों से शेयर करते हैं। इसमें उन की खुशियां, फैशन और आधुनिक होने के भाव झलकते हैं, इस में कोई दो राय नहीं कि अपनी तस्वीरें लेने का सबसे बेहतरीन और आसान तरीका सेल्फी ही है। यह सुनहरा पहलू है, लेकिन दूसरा चिंताजनक पहलू यह है कि भारत में सेल्फी से होने वाली मौतों का आंकड़ा तेजी से बढ़ रहा है एवं दुनिया में सर्वाधिक है। भारत में सेल्फी दुर्घटनाएं इतनी ज्यादा क्यों होती हैं, इसे लेकर मनोवैज्ञानिकों ने कई अनुमान लगाए हैं। एक तो यह कहा जाता है कि स्मार्टफोन ने पहली बार हर तरह की खासियतों वाला कैमरा उपलब्ध करा दिया है। जो तस्वीर पहले कुछ खास मौकों पर ही खींची जा सकती थी, उसे अब कोई किसी भी क्षण खींच सकता है। इसलिए भारत में मोबाइल कैमरे से फोटो खींचने का चलन बहुत तेजी से बढ़ा है। तकरीबन हर सार्वजनिक या निजी जगह पर, हर सार्वजनिक या निजी समारोह में लोग फोटो खींचते और सेल्फी लेते मिल जाएंगे।
स्थिति उनके लिए और भी खतरनाक है जो सेल्फी के लिए सारी हदों को लांघ जाते हैं। वे भूल जाते हैं कि जिंदगी की अहमियत एक सेल्फी से कहीं ज्यादा होती है। खतरनाक सेल्फी लेने की होड़ में कब किस की सेल्फी आखिरी साबित हो जाए इस को कोई नहीं जानता। इसके खतरनाक रूप सामने आने के बाद युवाओं को खतरों से बचाने के लिए अब कानून का सहारा लेना पड़ रहा है। समुद्र के आसपास, नदी के किनारे, ऊंचे पुलों, पहाड़ों एवं रेलवे के पटरियों के आसपास ऐसी चेतावनियां दी जाती है कि यहां सेल्फी लेना मना है। रेलवे ने पटरियों को ‘नो सेल्फी जोन’ घोषित कर दिया है। ऐसा करने वालों को जेल की हवा खाने के साथ जुर्माना भी भरना पड़ सकता है। गुरुग्राम की ताजा घटना की ही भांति कुछ साल पहले सेल्फी के चक्कर में मथुरा में 3 युवकों याकूब, इकबाल व अफजल को अपनी जान गंवानी पड़ी। तीनों जानलेवा जोखिम उठा कर चलती ट्रेन के सामने सेल्फी लेने लगे। चालक के होर्न देने पर भी वे नहीं हटे और ट्रेन की चपेट में आ गए। इनके अलावा और भी कई अफसोसजनक, दर्दनाक हादसे हुए हैं।
प्रश्न है कि सेल्फी का नशा क्यों इतना सर चढ़ कर बोल रहा है? रोजाना की एकरस जिंदगी में मनोरंजन या नयेपन को मानसिक स्वास्थ्य के लिए जरूरी माना जाता है। लेकिन अगर इस तरह की गतिविधियां जानलेवा शौक में तब्दील हो जाएं तो उस शौक से तौबा कर लेना ही ठीक है। हाल में हुए कई अध्ययनों में सेल्फी लेने की आदत को एक मानसिक बीमारी बताया गया है, जिसका शिकार व्यक्ति इस बात का खयाल भी नहीं रख पाता कि खतरनाक जगहों पर अलग-अलग मुद्राओं में अपनी तस्वीरें उतारने के क्रम में उसकी जान भी जा सकती है। मनोचिकित्सकों के मुताबिक ‘सेल्फीसाइटिस’ एक ऐसी स्थिति होती है, जिसमें व्यक्ति सेल्फी लेकर सोशल मीडिया पर पोस्ट नहीं करता है तो उसे बेचैनी होने लगती है। इसका अगला सिरा इससे जुड़ता है कि इस आदत के शिकार लोग सार्वजनिक रूप से तो सामाजिक दिखते हैं, खूब तस्वीरें साझा करते हैं, लेकिन उनके भीतर आत्मविश्वास का कोना धीरे-धीरे खाली होता जाता है।
विडंबना यह है कि जो आदत इस कदर एक समस्या बन चुकी है उसका कोई हल तो सामने नहीं आ रहा है, लेकिन बाजार इसे भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा। आज स्मार्टफोन में तब्दील हो चुके ज्यादातर मोबाइलों की बिक्री बढ़ाने के लिए कंपनियां विज्ञापन में ‘सेल्फी के लिहाज से बेहतरीन कैमरा’ होने को अपने उत्पाद की सबसे बड़ी खासियत बताती हैं। जाने-माने सितारे ऐसे मोबाइलों का प्रचार करते हुए उनके सेल्फी वाले पहलू को ज्यादा उभारते हैं। मुश्किल यह है कि सेल्फी मोबाइलों के विज्ञापन के समांतर किसी ऐसी सूचना का प्रसार नहीं दिखता, जो लोगों को इस शौक के जानलेवा जोखिम के बारे में सचेत करे। ओक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी ने सेल्फी को वर्ल्ड ऑफ द ईयर तक चुना। हर हाथ में मोबाइल और सेल्फी का फैशन पंख लगा कर चल रहा है। इसके लिए दीवानगी है। नेताओं और फिल्मों ने भी इस को बढ़ावा दिया।
ऐसे जनूनी किशोरों व युवाओं की कमी नहीं जो सेल्फी लेने का कोई मौका नहीं चूकते। एडवैंचर्स सेल्फी उन्हें वाहवाही लूटने का माध्यम भी लगती है। ऐसी सेल्फी सोशल साइट्स के जरिए वे दोस्तों को पहुंचा कर ज्यादा से ज्यादा लोकप्रियता चाहते हैं। अलग अंदाज की सेल्फी की होड़ है। फिल्मों ने भी इसे खूब बढ़ावा दिया। बजरंगी भाईजान फिल्म का गाना ‘चल बेटा सेल्फी लेले रे’ सिर चढ़ कर बोला। सेल्फी की वजह से होने वाली मौतें झकझोर कर देने वाली हैं। हादसों से युवाओं को सबक लेना चाहिए। देखादेखी वे क्रेजी न बनें। ऐसी रोमांचक एवं विस्मयकारी सेल्फी से दूर ही रहें जिससे जान का खतरा हो। अभिभावकों को भी अपने बच्चों को जागरूक करना चाहिए। जब जिंदगी ही नहीं होगी तो सेल्फी कहां से आएगी? जानलेवा होते सेल्फी के प्रचलन पर नियंत्रण के लिये समय रहते जागने की जरूरत है।

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