संघ, विहिप और सुब्रमण्यम स्वामी के संघर्ष ने रोका रामसेतु विध्वंस

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-प्रवीण गुगनानी-

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रामसेतु विषय में केंद्र की नवागंतुक नरेन्द्र मोदी सरकार के मंत्री नितिन गड़करी ने पिछलें दिनों देश भर के हिन्दुओं के विश्वास को फलीभूत करते हुए कहा कि रामसेतु नहीं तोड़ा जाएगा. सेतु समुद्रम परियोजना को पूर्ण करनें के लिए वैकल्पिक मार्ग खोजें जायेंगे. यह निर्णय देकर मोदी सरकार ने संघ परिवार, विहिप के बड़े ही विस्तृत जन संघर्ष और चिन्तक सुब्रमण्यम स्वामी के न्यायलीन संघर्ष को सार्थक कर दिया है. आज इस राष्ट्र में सांस्कृतिक मान बिन्दुओं के समक्ष जो भी प्रश्न या अस्तित्व की चुनौतिया आ रही है,लगता है उनकें लिए राष्टीय स्वयं सेवक संघ ही एक मात्र हितकारी संस्था है जो उनकें सम्बन्ध में चिंतन, संघर्ष करेगी. इस क्रम में एक नाम सुब्रमण्यम स्वामी का भी आता है जो कि न्यायालयों के माध्यम से इस प्रकार के सांस्कृतिक विषयों पर संघर्ष शलाका थामें हुए हैं. निश्चित तौर पर यह निर्णय बहु प्रतीक्षित है; किन्तु अब यह भी आवश्यक है कि रामसेतु को वैश्विक धरोहर घोषित करनें हेतु केंद्र से एक विस्तृत प्रस्ताव युएनओ को भेजा जाए. यदि रामसेतु नेशनल हेरिटेज घोषित नहीं हुआ तो कभी भी इस प्रकार का विरोधी वातावरण पुनः बन सकता है. एक वैश्विक धरोहर को घोषित होनें के लिए जप मापदंड होनें चाहिए उन सभी पर रामसेतु पूर्ण खरा उतरता है. वस्तुतः प्रगतिशीलता और विकास के नाम पर जैसा वातावरण भारत में पिछले दशक में बना था वैसा विश्व भर कहीं और कदाचित ही देखनें को मिलेगा. संस्कृति,धर्म,पुरातत्व,नैतिकता सभी कुछ जैसे विकास के नाम पर लूटा देनें को तैयार हो गया था हमारा तंत्र. इस ढर्रे का ज्वलंत उदाहरण बना था हमारा रामसेतु. केंद्र में बैठी सोनिया के नेतृत्व वाली मौन सरकार ने तो रामसेतु विध्वंस के लिए बाकायदा न्यायालय में यह शर्मनाक हलफनामा प्रस्तुत किया था कि भारत के जन-जन और कण-कण की आस्था के केंद्र श्रीराम केवल एक कथा के पात्र मात्र हैं!!

रामसेतु के विषय में संघ परिवार के नेतृत्व में विश्व हिन्दू परिषद् के चरम संघर्ष के परिणाम स्वरुप पिछली यूपीए सरकार दबाव में आकर पीछे हट गई थी. इस विषय में एक कदम पीछे हटकर चार कदम आगें आनें की शैली में कांग्रेस सरकार ने पुनः इस मामलें में हावी होकर रामसेतु विध्वंस के निर्णय पर सख्ती बरतनी चाहि थी, उसने इस मसले पर गठित आरके पचौरी समिति की रपट को खारिज करते हुए कहा है कि वह इस परियोजना का काम आगे बढ़ाना चाहती है. कमनमोहन सरकार ने तर्क दिया था  कि इस परियोजना पर आठ सौ करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं और ऐसे में काम बंद करने का कोई मतलब नहीं. सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामे में सरकार ने अविवेक पूर्ण और आधारहीन बात करते आश्चर्य जनक रूप से रामायण के प्रमुख घटनाक्रम को विस्मृत करते हुए यह भी कहा था कि रामसेतु हिंदू धर्म का आवश्यक अंग नहीं है.

आज भले ही रामसेतु नहीं टूटनें हेतु देशवासी आश्वस्त हो गएँ हों किन्तु देशवासी रामसेतु के मुद्दे पर वो हलफनामा पीढ़ियों तक नहीं भूलेंगे जो एक सनकी ,बूढ़े और नाम न लिए जाने योग्य मुख्यमंत्री ने न्यायलय मैं प्रस्तुत किया था. अपने पारिवारिक आर्थिक घोटालों को दबाने के प्रयास मैं इस मुख्यमंत्री ने मनमोहन सरकार को प्रसन्न करने के लिए न्यायलय मैं दाखिल हलफनामें मैं भगवान राम के अस्तित्व होने को ही नकार दिया था. रामसेतु के ही ज्वलन्त मुद्दे पर प्रस्तुत इस शर्मनाक हलफनामे मैं इस राष्ट्र के जन जन और कण कण के आराध्य और नायक को कपोल कल्पना और उपन्यास का एक पात्र भर सिद्ध करने की कुत्सित किन्तु असफल कोशिश इसी मनमोहन सरकार के सहारे एक कृतघ्न मुख्यमंत्री ने की थी. हालाँकि बाद मैं जब हिंदुओं ने तीव्र और सशक्त विरोध किया तब इस घोटालेबाज मुख्यमंत्री ने इस तथाकथित हलफनामें को वापिस ले लिया था.

सेतू समुद्रम योजना के विषय मैं जानकारी परक तथ्य यह भी है कि यह योजना 1860 से यानी लगभग 150 वर्षों से लंबित व विवादित रही है .इस योजना को लेकर अब तक 13 समितियां गठित हो चुकी है. इस देश के शोषक और आक्रमणकारी अंग्रजों ने भी इस योजना को सदा क्रियान्वयन से दूर ही रखा किन्तु हाय री हमारी संवेदनहीन यू पी ए सरकार कि उसकी बुद्धि इस मामले मैं सदा से न जाने क्यों उलटी ही चलती रही!! इतिहास साक्षी है कि वर्ष 1460 तक भारत श्रीलंका के बीच आवागमन श्रीराम और इस देश के इंजीनियरों के पुरोधा नल नील के द्वारा डिजाइन किये गए इसी सेतू मार्ग से होता रहा. बाद के वर्षों मैं यह सेतू भूगर्भीय परिवर्तनों से समुद्र कि तलहटी मैं धंसता चला गया किन्तु इसकी विशाल और सुद्रढ़ सरंचना ने अपना आकार और अस्तित्व नहीं खोया व इसके कारण भारत और श्रीलंका के तटवर्ती भागों का प्राकृतिक आपदाओं से बचाव होता रहा.

वस्तुतः केंद्र की यह लचर यूपीए सरकार सेतू समुद्रम परियोजना को अमेरिकी दबाव मैं अति शीघ्र पूर्ण करने के चक्कर में रामसेतू विध्वंस के लिए मशीनें भी भेज चुकी थी. यदि आर एस एस और विहिप परिवार के मैदानी संघर्ष और वरिष्ठ चिन्तक विचारक सुब्रमण्यम सरकार के न्यायलीन संघर्ष ने देशव्यापी आंदोलन चला कर पुरे देश को इस विषय पर जागृत और चेतन्य नहीं किया होता तों रामसेतु आज केवल किताबों में उल्लेखित एक नाम भर होता. उस समय उतने बड़े विशाल जनांदोलन के बाद भी केंद्र सरकार मानी नहीं और हठधर्मिता पुर्वक इस कुत्सित योजना मैं लगी रही थी. सेतू समुद्रम परियोजना को पूर्ण करने के लिए अमेरिकी दबाव मैं 300 मीटर चौड़ा और 12 मीटर गहरा मार्ग बनाने के लिए उसने विशाल स्वचालित और तेज गति कि मशीने रामेश्वरम के समीप धनुषकोटि पहुंचा दी थी. फलस्वरूप इस विध्वंसक कार्य को रोकने के लिए कई याचिकाएं न्यायलय मैं दायर की गई किन्तु अधिकांश याचिकाएं आश्चर्यजनक रूप से ख़ारिज हो गई थी ,सिवा एक सुब्रमण्यम स्वामी की याचिका के! 27 मार्च 2012 को सुब्रमण्यम स्वामी की इस याचिका पर विचार करते समय ही केंद्र सरकार से न्यायलय ने स्पष्ट कहा की वह रामसेतु को राष्ट्रीय धरोहर व स्मारक घोषित करनें के सम्बंध में केंद्र सरकार दो सप्ताह में जवाब देवें. इस सम्बन्ध मैं रोचक तथ्य है की श्रीराम को कथा का पात्र मात्र मानने वाली इस सरकार ने इस सेतू को मानव निर्मित सरंचना माना व यह भी माना की इसकी लम्बाई 30 कि मी है ,स्मरण रहे कि धनुषकोटि और श्रीलंका के मध्य दुरी भी 30 कि मी ही है. याचिका के सम्बन्ध मैं स्वामी ने देश के सेवानिर्व्वृत्त न्यायाधीश के. जी. बालकृष्णन पर सोनिया गांधी से प्रभावित होने का आरोप लगाते हुए देश को बताया था कि जब उन्होंने याचिका दायर कि तब न्यायाधीश के जी बालकृष्णन एक सप्ताह कि छुट्टी पर दक्षिण अफ्रिका चले गए थे.उनके लौटते तक सुनवाई टल जाती तो रामसेतु के विध्वंस का कार्य प्रारंभ हो जाता तब सुब्रमण्यम स्वामी भागे भागे कार्यवाहक न्यायाधीश के पास पहुंचे और उन्हें पूरा विषय निवेदन किया तब कही जाकर रामसेतु को तोड़ने पहुंची मशीने थम पाई थी और इस तथाकथित धर्म निरपेक्ष सरकार के मंसूबो पर रोक लग पाई थी.

रामसेतु के सम्बन्ध मैं एक महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि वर्ष 2004 मैं आई सुनामी का सामना यदि इस सेतू कि कि विशाल और सुद्रढ़ सरंचना से नहीं होता तों तमिलनाडु और केरल को भयंकर त्रासदी और नुक्सान झेलना पड़ता .उस समय सुनामी कि लहरें इसकी सरंचना से टकराकर कई भागो मैं छिन्न भिन्न होकर भारत और श्रीलंका कि तरफ विभाजित हो गई जिससे न सिर्फ भारत के तटवर्ती राज्य बल्कि श्रीलंका भी सुनामी से बाल बाल बचा था.

रामसेतु के सम्बन्ध मैं प्रसिद्ध वैज्ञानिक व पर्यावरणविद व कनाडा के ओट्टावा विश्वविद्यालय मैं अध्यापन करने वाले सत्यम मूर्ति से भारत सरकार ने राय मांगी थी तब उन्होंने स्पष्ट राय दी थी कि संपूर्ण विश्व पहले ही प्रकृति से खिलवाड़ करने कि गंभीर परिणाम भुगत रहा है. उन्होंने अपनी लिखित राय मैं मनमोहन सरकार को स्पष्ट कहा था कि रामसेतु वाले समुद्री भाग मैं कई सक्रिय ज्वालामुखी व गतिमान व विशाल प्रवाल भित्तियां है जिसके कारण रामसेतु को तोड़ने से कई भयंकर परिणाम सामने आ सकते है. साथ ही साथ उन्होंने यह भी कहा था कि रामसेतु को तोड़ने से पर्यावरण,समुद्री जल जीवन और इसमें रहने वाले जल जन्तुओ के साथ तटवर्ती इलाको मैं जन जीवन को दूरगामी दुष्परिणाम झेलने के लिए तैयार रहना चाहिए. अंततः रामसेतु बच तो गया है किन्तु अब इसे वैश्विक धरोहर यानि नेशनल हेरिटेज घोषित करने का भी अभियान प्रारम्भ हो यही समीचीन मांग है.

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