पश्चिम बंगाल :  नए वक्फ कानून पर बवाल, अब राष्ट्रपति शासन का सवाल?

प्रदीप कुमार वर्मा

अमेरिका के शिकागो में सन् 1893 में विश्व धर्म महासभा में भारत का प्रतिनिधित्व करने वाले स्वामी विवेकानंद का बंगाल। कला और साहित्य क्षेत्र में गुरुदेव रविन्द्र नाथ टैगोर, सत्यजीत रे और मृणाल सेन का बंगाल, स्वाधीनता आंदोलन के प्रणेता नेताजी सुभाष चंद बोस का बंगाल और जगत जननी मां दुर्गा की पूजा तथा स्तुति का बंगाल, देश और दुनिया में अपनी अनेक विशेषताओं के कारण चर्चित पश्चिम बंगाल आज एक बार फिर से चर्चा में है लेकिन इस बार चर्चा बंगाल में नए वक्फ कानून को लेकर हुई हिंसा तथा इस हिंसा में हिंदू अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने को लेकर है। पश्चिम बंगाल के मालदा और मुर्शिदाबाद में सड़के सुनसान तथा दुकान और प्रतिष्ठान बंद हैं। हालात ऐसे हैं कि हिंसा प्रभावित इलाकों में इंटरनेट नहीं चल रहा है तथा केंद्रीय सुरक्षा बल सड़कों पर गश्त लगा रहे हैं। शासन और सरकार की कोशिश यहां शांति बहाल करने की है।  

                देश की संसद द्वारा वक्फ संशोधन अधिनियम 1995 को पारित करने तथा राष्ट्रपति द्रोपति मुर्मू द्वारा इसे कानून के रूप में नोटिफाई करने के बाद पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में हिंसा हुई। इस जिले के हिंसा प्रभावित इलाकों मुख्य रूप से सुती, शमशेरगंज, धुलियान और जंगीपुर में फिलहाल स्थिति शांतिपूर्ण सी है लेकिन अभी भी तनाव बना हुआ है ओर हिंसाग्रस्त इलाकों में बीएनएसएस की धारा 163 के तहत निषेधाज्ञा लागू है। हिंसा के इस मामले में पश्चिम बंगाल की सत्ता पर काबिज तृणमूल कांग्रेस और मुख्य विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी एक दूसरे को साज़िशन दोषी करार दे रहे हैं। उधर, बीते दो दिन से पश्चिम बंगाल के राज्यपाल सीवी आनंद बोस द्वारा मालदा एवं मुर्शिदाबाद में हिंसाग्रस्त इलाके का दौरा तथा पीड़ितों से मिलकर उन्हें “न्याय” दिलाने के ऐलान के बाद पश्चिम  बंगाल में यह कयास शुरू हो गए हैं कि कहीं पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन तो नहीं लगेगा?

              पश्चिम  बंगाल के राज्यपाल सीवी आनंद बोस द्वारा इस मौके पर मीडिया में यह बयान भी दिया गया कि सभ्य समाज में ऐसी घटनाओं को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। पीड़ितों ने उन्हें बताया है कि वे क्या चाहते है? इस संबंध में सभी संवैधानिक विकल्प खुले हुए हैं तथा वे केंद्र को अपनी रिपोर्ट सोपेंगे। उधर राज्यपाल के दौरे के मामले में तृणमूल कांग्रेस के नेताओं ने राज्यपाल सीवी आनंद बोस को भाजपा का एजेंट करार देते हुए उनके दौरे को गैर जरूरी बताया है। इस मामले में हो रही राजनीति का आलम यह है कि पश्चिम  बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भाजपा पर हिंसा के जरिए उनकी सरकार को अस्थिर करने के आरोप लगा चुकी है। वहीँ, भाजपा नेता शुभेदु अधिकारी का कहना है कि ममता बनर्जी ने मुस्लिम तुस्तीकरण की खातिर नए वक्फ कानून पर दंगाइयों को खुली छूट दे रखी है। 

      पश्चिम बंगाल के नेता प्रतिपक्ष शुभेंदु अधिकारी ने कहा है कि बंगाल के पुलिस अधिकारी राज्य के पुलिस अधिकारी के बजाय वे ममता बनर्जी के कैडर हैं। इसलिए बिना राष्ट्रपति शासन के बंगाल में निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से चुनाव नहीं हो सकता है। शुभेंदु अधिकारी ने कहा कि जहां हिन्दू 50 प्रतिशत से कम हैं, वहां ये लोग हिन्दुओं को वोट डालने नहीं देंगे। इसलिए चुनाव आयोग बंगाल में राष्ट्रपति शासन की सिफारिश करे। उधर,नए वक्फ कानून पर मुसलमानों के विरोध के चलते मालदा एवं मुर्शिदाबाद में हुई हिंसा को रोकने में पश्चिम बंगाल सरकार के नाकाम पाए जाने पर हाईकोर्ट ने वहां केंद्रीय वालों की तैनाती कर दी है। केंद्रीय सुरक्षा बलों की तैनाती के बाद में हिंसाग्रस्त इलाकों में सामान्य जनजीवन फिर से पटरी पर लौट रहा है। हाई कोर्ट केस कदम के बाद भी पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगाए जाने के कयास लग रहे हैं।       इसके साथ ही अंतर्राष्ट्रीय सीमा से सटे पश्चिम बंगाल के कुछ जिलों में सशस्त्र बल (विशेष शक्तियां) अधिनियम सशस्त्र बल (विशेष शक्तियां) अधिनियम ( अफस्पा ) लागू करने की आवश्यकता जताई जा रही है। कानूनी जानकारों के मुताबिक वर्ष 1958 में भारत की संसद का एक अधिनियम है जो भारतीय सशस्त्र बलों को “अशांत क्षेत्रों” में सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने के लिए विशेष शक्तियां प्रदान करता है। राजनीति के जानकारों का कहना है कि सीमावर्ती जिलों में इस व्यवस्था को लागू करने से घुसपैठ पर रोक लगेगी तथा पश्चिम बंगाल में शांति कायम हो सकेगी। वर्ष 2026 की पहली तिमाही यानी मार्च और अप्रैल में पश्चिम बंगाल की सभी 294 विधानसभा सीटों के लिए चुनाव प्रस्तावित है। इस बार भी यह माना जा रहा है कि चुनावी मुकाबला परंपरागत तृणमूल कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के बीच ही होगा।    

            तृणमूल कांग्रेस के साथ इंडिया गठबंधन के अन्य दल भी रहेंगे जबकि भाजपा अकेले ही चुनावी समर में उतरेगी। पश्चिम बंगाल में सरकार बनाने की कोशिश में भाजपा लगातार लगी हुई है। इसी कोशिश के बूते पर भाजपा 2021 में पहली बार बंगाल में विपक्षी पार्टी बनी थी। अब वह वर्ष 2026 में तृणमूल कांग्रेस को कांटे की टक्कर देने की कवायद में है। राजनीतिक प्रेक्षकों का मानना है कि पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस को सत्ता से बेदखल करना भाजपा के लिए इतना आसान नहीं होगा। ऐसे में हरियाणा,महाराष्ट्र और दिल्ली की तरह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ बंगाल में भी भाजपा की राजनीतिक “ढाल” बनने की कोशिश कर रहा है। पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन लागू करने के बाद भाजपा ने अगर तृणमूल कांग्रेस के वोट बैंक में अगर 4 से 5 प्रतिशत की सेंध भी लगा दी, तो यह 2026 के चुनाव में भाजपा के लिहाज से गेम चेंजर साबित हो सकता है।

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