आला नेताओं की नाराजगी को आखिर समझ क्यों नहीं पा रहा है कांग्रेस नेतृत्व!

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लिमटी खरे

महाराष्ट्र प्रदेश के कद्दावर नेता पूर्व मुख्यमंत्री शंकर राव चव्हाण के पुत्र एवं महाराष्ट्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री तथा कांग्रेस के क्षत्रप अशोक चव्हाण ने कांग्रेस को अलविदा कहकर सभी को चौंका दिया है। दरअसल, राहुल गांधी न्याय यात्रा पर निकले हैं। राहुल गांधी की इस यात्रा का समापन मुंबई में ही होना है। यात्रा के समापन के पहले एक के बाद एक क्षत्रप अगर कांग्रेस का साथ छोड़ रहे हैं तो इसे गंभीर संकेत माना जाना चाहिए। यक्ष प्रश्न यही है कि आखिर किन वजहों के चलते अशोक चव्हाण ने त्यागपत्र दिया है!

महाराष्ट्र प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे अशोक चव्हाण ने सोमवार 12 फरवरी को कांग्रेस से त्यागपत्र दिया, उन्होंने विधायक पद भी तज दिया। उन्होंने प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष नाना पाटोल को अपना त्यागपत्र भेज दिया और विधान सभा की सदस्यता से उिश्स अपना त्यागपत्र उन्होंने विधान सभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर को भेज दिया है। नाना पाटोल दिल्ली रवाना हो चुके हैं। जाहिर है वहां कुछ खिचड़ी पकने वाली है। यहां एक बात का उल्लेख जरूरी होगा कि इसके पहले कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मुरली देवड़ा के पुत्र मिलिंद देवड़ा ने 14 जनवरी बहुत ही भावुक तरीके से कांग्रेस से त्यागपत्र देते हुए लिखा था कि उन्होंने कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता से त्यागपत्र दे दिया है और इसके साथ ही कांग्रेस के साथ 55 साल का पुराना रिश्ता भी खत्म हो गया है।

इसके बाद 08 फरवरी को पूर्व मंत्री बाबा जियाउद्दीन सिद्दकी ने त्यागपत्र दिया और वे राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए। बाबा सिद्दकी ने पार्टी छोड़ते हुए लिखा था कि कांग्रेस ने उनका इस्तेमाल करी पत्ता (मीठी नीम) की तरह किया जिसका काम सिर्फ स्वाद बढ़ाने का होता है। एक के बाद एक वरिष्ठ नेताओं का कांग्रेस से किनारा करना क्या संदेश दे रहा है! आखिर आलाकमान इन नेताओं के विरोध या उनकी कथित उपेक्षा को समझ क्यों नहीं पा रहा है! या समझ कर भी समझना नहीं चाह रहा है!

अशोक चव्हाण के त्यागपत्र के बाद अब यह कयास लगाया जाने लगा है कि वे अपने कुछ समर्थकों के साथ भाजपा की सदस्यता ले सकते हैं। हो सकता है भाजपा में जाने के बाद अशोक चव्हाण को राज्य सभा के जरिए संसद भेज दिया जाए। मीडिया में चल रही चर्चाओं के अनुसार अशोक चव्हाण अपने साथ एक दर्जन से ज्यादा विधायक भी लेकर जाने वाले हैं। अगर ऐसा हुआ तो महाराष्ट्र प्रदेश से कांग्रेस का एक भी राज्य सभा सदस्य नहीं चुना जा सकेगा।

महाराष्ट्र भाजपा के उच्च पदस्थ सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि अशोक चव्हाण के त्यागपत्र या भाजपा में जाने की पटकथा कथित तौर पर इसी रविवार अर्थात 11 फरवरी को उस वक्त लिखी गई थी जब अशोक चव्हाण विधान सभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर को बधाई देने पहुंचे थे। उस वक्त सोशल मीडिया में हल्की फुल्की चर्चा भी इस बारे में हुई पर मंझे हुए राजनेता की तरह अशोक चव्हाण ने यह कहकर इसका पटाक्षेप कर दिया था कि वे विधान सभा अध्यक्ष के जन्म दिवस पर उनके बेहतर स्वास्थ्य की कामना हेतु मिलने गए थे।

सूत्रों का यह भी कहना था कि प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष नाना पटोले की कार्यप्रणाली एवं पार्टी की प्रदेश इकाई में उनके एकाधिकार से अशोक चव्हाण खासे आहत थे। अशोक चव्हाण की नाराजगी इस बात के लिए भी थी कि नाना पटोले के द्वारा विधान सभा अध्यक्ष का पद छोड़ दिया गया था, जिससे उनकी सरकार गिर गई थी। इन सारे समीकरणों के बीच अशोक चव्हाण ने कांग्रेस नेतृत्व से गुजारिश भी की थी कि नाना पटोले को हटाकर उन्हें प्रदेश कांग्रेस की कमान सौंप दी जाए पर कांग्रेस नेतृत्व इस मामले में चुप्पी साधे रखा।

उधर, हवा में लट्ठ भांजते हुए महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने यह कहकर कि आगे आगे देखिए होता है क्या! ठहरे हुए पानी में कंकर मारकर लहरें पैदा कर दी हैं। कांग्रेस के नेताओं के त्यागपत्र और दूसरी पार्टी ज्वाईन करने के घटनाक्रम ऐसे समय पर हो रहे हैं जबकि राहुल गांधी की न्याय यात्रा भी कुछ दिनों में मुंबई पहुंच जाएगी। इसके अलावा इस साल के अंत में महाराष्ट्र विधान सभा के चुनाव भी होने हैं।

अशोक चव्हाण दिसंबर 2008 से नवंबर 2010 तक महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रहे हैं। दिसंबर 2008 में मुंबई आतंकी हमले के बाद जब विलासराव देशमुख को मुख्यमंत्री पद से हटाया गया, तब अशोक चह्वाण ने पद संभाला। वे महाराष्ट्र के संस्कृति विभाग, उद्योग, माइंस विभाग जैसी जिम्मेदारियां भी संभाल चुके हैं। अशोक महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री शंकर राव चह्वाण के बेटे हैं। महाराष्ट्र के इतिहास में पहली बार पिता और पुत्र दोनों ने मुख्यमंत्री पद संभाला। वे नांदेड़ से सांसद भी रह चुके हैं। वे महाराष्ट्र कांग्रेस कमेटी के महासचिव भी रह चुके हैं।

अब समय आ गया है कि कांग्रेस के आला नेता इस बारे में विचार जरूर करें कि आखिर क्या वजह है कि दशकों तक कांग्रेस का झंडा डंडा उठाने वाले नेताओं के द्वारा कांग्रेस को अलविदा आखिर क्यों कहा जा रहा है! आखिर नेतृत्व इन नेताओं के मन की बात समझने में असफल क्यों है! कांग्रेस का नेतृत्व अगर अभी भी नहीं संभला तो बार बार लोगों के द्वारा कही गई बात ‘भविष्य में कांग्रेस को ढूंढते रह जाओगे!‘ को मूर्त रूप धारित करने में वक्त नहीं लगने वाला . . .

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लिमटी खरे
हमने मध्य प्रदेश के सिवनी जैसे छोटे जिले से निकलकर न जाने कितने शहरो की खाक छानने के बाद दिल्ली जैसे समंदर में गोते लगाने आरंभ किए हैं। हमने पत्रकारिता 1983 से आरंभ की, न जाने कितने पड़ाव देखने के उपरांत आज दिल्ली को अपना बसेरा बनाए हुए हैं। देश भर के न जाने कितने अखबारों, पत्रिकाओं, राजनेताओं की नौकरी करने के बाद अब फ्री लांसर पत्रकार के तौर पर जीवन यापन कर रहे हैं। हमारा अब तक का जीवन यायावर की भांति ही बीता है। पत्रकारिता को हमने पेशा बनाया है, किन्तु वर्तमान समय में पत्रकारिता के हालात पर रोना ही आता है। आज पत्रकारिता सेठ साहूकारों की लौंडी बनकर रह गई है। हमें इसे मुक्त कराना ही होगा, वरना आजाद हिन्दुस्तान में प्रजातंत्र का यह चौथा स्तंभ धराशायी होने में वक्त नहीं लगेगा. . . .

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