सस्ती शिक्षा-सबको शिक्षा

– सुनील आम्बेकर

मै छतीसगढ़ के चाम्पा में 17 सितम्बर, 2010 को प्रवास पर था। स्वाभाविक है की कई छात्रों से मिला। बाद मे दोपहर बाद जांजगीर व बिलासपुर गया था। शिक्षा के व्यापारीकरण एव व्याप्त भ्रष्टाचार के खिलाफ अभाविप द्वारा देशव्यापी चक्का जाम (16 सितम्बर) के सन्दर्भ में चर्चा कर रहा था। 11 वी 12 वी और स्नातक कक्षाओं में अध्यनरत कार्यकर्ता बता रहे थे की ऊन्हें महाविद्यालय बंद एव चक्का जाम में छात्र-शिक्षक समेत सामान्य लोगो का अत्यधिक समर्थन था। कोई भी विरोध नहीं कर रहा था। बल्कि बढ़-चढ़कर ऐसा विषय उठाने के लिए धन्यवाद अदा कर रहे थे । सभी से प्रोत्साहन मिल रहा था।

यह कहानी केवल चंपा या बिलासपुर की नहीं अपितू देश के हर कोने से इस तरह की घटनाए मेरे पास आ रही है। विद्यार्थी परिषद् की यह मांग की शिक्षा सस्ती हो व सभी के लिए उपलब्ध हो, सामान्य लोगो के मन को छू रही है। हमारे देशवासी भारत को महाशक्ति बनाने का सपना देख रहे है। वे 21 वीं सदी में भारत को आर्थिक दृष्टी से सम्पन्न व सुरक्षा की दृष्टी से मजबूत तथा सभी प्रकार के प्रगतिशील रुपो में देश को देखना चाहते है। हर व्यक्ति चाहे महानगर का हो या गाँव का, स्वयं भी इस प्रगति का अक हिस्सा बनना चाहता है। हर समुदाय में निराशा का त्याग कर आगे बढ़ने की महत्वाकांक्षा जगी है। स्वाभाविक ही हर परिवार अपने बच्चो को अच्छी शिक्षा देकर उनको जीवन में सफल बनाना चाहता है। ऐसे मोके पर शिक्षा की उचित सर्वव्यापी व सस्ती शिक्षा उपलब्ध करने की जगह केंद्र और राज्य सरकारें इस क्षेत्र से हाथ खीचकर शिक्षा को बाजार के हवाले कर रही है। लोगो की बढाती मांग और स्पर्धा को देखते हुए बाजारू तत्वों ने इसे महंगा बना दिया है तथा सामान्य लोगो की पहुंच से यह दूर हो रही है। महँगी शिक्षा कई परिवारों के सपनो और उनके बच्चो के भविष्य को निराशा में धकेल रही है। कई गरीब परिवारों के लोग परिस्तिथि की विवषता समजकर निराशा में अपने हाथ खीचकर बच्चो को समाज रहे है|

मध्य प्रदेश में कुछ दिन पूर्व एक बैंक में डकैत पकड़ा गया था। पुछताछ में पता चला की वह पेशेवर गुन्हेगार नहीं अपितु अपनी पुत्री की इंजीनियरिंग की फीस के मात्र बीस हजार रुपये निशित समय सीमा में भरने हेतु इस कृत्या के लिए मजबूर हुआ। वास्तु स्तिथि का आभास होने पर सवेदना जगी तो पुलिस और बैंक के लोगो ने उसकी बेटी की फीस भरने की व्यवस्था की। लेकिन पता नहीं कितने लोगों ने ऐसी परिस्तीथी का सामना किया होगा और कितने भविष्य बर्बाद हुए होंगे। इस दर्द ने ही विद्यार्थी परिषद् ने शिक्षा के व्यापारीकरण को रोकने हेतु चल रहे आन्दोलन को जन्म दिया है। यह आन्दोलन प्रभावी बनेगा व यशस्वी भी होगा।

केंद्र सरकार को इस सन्दर्भ में एक समग्र व प्रभावी केन्द्रीय कानून बनाना ही होगा। साथ में राज्य सरकारों को नयी व्यवस्था को लागु करने के हेतु उचित प्रावधानों के साथ नए पूरक कानून भी बनाने होंगे। यही समय की मांग है।

वैश्वीकरण का यह सिधांत की बाजारवाद सभी को दुनिया के किसी भी कोने में उपलब्ध वस्तु एव सेवाओ तक पहुचने का अवसर देकर न्यायपूर्ण एव साफ़-सुथरी व्यवस्था देता है तथा निजिकरण उसमे सर्वाधिक उचित माध्यम है, लेकिन वर्तमान अनुभव इन धारणाओं को बाकि सभी क्षेत्रो में गलत साबित कर रहे है। ऐसे अनुभव को देखते हुए बिना न्यायपूर्ण प्रावधानों के केवल निजीकरण से शिक्षा का विस्तार होने पर सभी को शिक्षा का अवसर मिलेगा, यह मानना बेमानी होगा। इसलिए ‘सभी को शिक्षा-सस्ती शिक्षा’ की गारंटी देने वाली व्यवस्था दे सके ऐसा कानून देश में लागू करना नितांत जरुरी है।

(लेखक अभाविप के राष्ट्रीय संगठन मंत्री हैं)

2 COMMENTS

  1. श्री अम्बेकर जी ने बहुत बड़ी बात कही है. सस्ती सिक्षा, सबको सिक्षा.
    रोटी, कपडा और मकान जेसी बुनियादी जरुरत के बाद समाज की सबसे बड़ी और प्रमुख जरुरत है तो वह है सस्ती और सबको सिक्षा.
    काश सारे निजी स्कूल बंद हो जाय और केवल उच्च्च स्तरीय पूर्ण रूप से मुफ्त सरकारी स्कूल हो जहाँ जंगल के आदिवासी से राजधानी के नेताओ के बच्चो तक को सामान्य सिक्षा मेले तो भारत वास्तव में भारत भारत बन जय.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

17,871 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress