कांग्रेस का नया संविधान

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विजय कुमार

25 साल में एक पीढ़ी बदल जाती है। पुरानी पीढ़ी वाले नयों को अनुशासनहीन मानते हैं, तो नये लोग पुरानों को मूर्ख। हजारों साल से यही होता आया है और आगे भी होता रहेगा।

पर बात जब 25 की बजाय 125 तक पहुंच जाए, तो वह गंभीर हो जाती है। 125 साल में पीढ़ी के साथ-साथ रक्त संस्कार भी बदल जाते हैं। इसलिए 125 साल तक कोई अपनी संतानों की दुर्दशा देखने के लिए जीवित नहीं रहता।

कांग्रेस पार्टी का भी यही हाल है। सुना है कि वह 125 साल की बूढ़ी हो गयी है। यद्यपि 125 साल किस कांग्रेस को हुए हैं, यह शोध का विषय है। चूंकि कई बार उसका नाम, चाम, दाम और मुकाम बदल चुका है। मेरे बाबा जी अपने चश्मे को 50 साल पुराना बताते थे। कई बार तो उसका फ्रेम और शीशे मैंने ही बदलवाये; पर वह रहा 50 साल पुराना ही। कुछ ऐसा ही बेचारी कांग्रेस के साथ है।

पर कांग्रेस के लिए बेचारी शब्द प्रयोग करना ठीक नहीं है। चूंकि वह जैसी भी है, कहीं अकेली और कहीं बैसाखी के सहारे, केन्द्र और कई राज्यों की सत्ता में है; और सत्ताधारी दल तब तक बेचारा नहीं होता, जब तक वह विपक्ष में न पहुंच जाए।

इसलिए अपनी 125 वीं वर्षगांठ पर कई बार मुखौटे बदल चुकी कांग्रेस ने बुराड़ी महाधिवेशन में अपने संविधान को कुछ बदला है। अध्यक्ष पद पर चूंकि मैडम इटली विराजमान हैं, और फिर राहुल बाबा तैयार हैं, इसलिए एक प्रमुख संशोधन यह हुआ है कि भविष्य में अध्यक्ष का कार्यकाल पांच साल का होगा।

कांग्रेस की स्थापना एक विदेशी ए.ओ.ह्यूम ने की थी। वह 1857 में इटावा का कलेक्टर था और जान बचाने के लिए बुरका पहन कर भागा था। ऐसा ही जवाहर लाल नेहरू के दादा जी के बारे में सुनते हैं। वे भी उन दिनों दिल्ली कोतवाली में तैनात थे और मेरठ से क्रांतिवीरों के आने की बात सुनकर कोतवाली छोड़ भागे थे। संकट में ऐसी पलायनवादी समानता दुर्लभ है। इसीलिए नेहरू खानदान आज तक कांग्रेस का पर्याय बना है।

मैडम जी भी इस परम्परा की सच्ची वारिस हैं। कहते हैं कि 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के समय वे सपरिवार इटली चली गयी थीं तथा 1977 के चुनाव में इंदिरा गांधी के हारने पर इटली के दूतावास में जा छिपी थीं। किसी ने ठीक ही लिखा है – हम बने, तुम बने, इक दूजे के लिए। उनका शुभचिंतक होने के नाते मैं कुछ सुझाव दे रहा हूं। कृपया इन पर भी विचार करें।

-कांग्रेस का अध्यक्ष पद सदा नेहरू परिवार के लिए आरक्षित हो। इससे शीर्ष पद पर कभी मारामारी नहीं होगी। राजनीति में झगड़ा शीर्ष पद के लिए ही होता है। वैसे तो छोटे-मोटे अपवाद के साथ पिछले 50 साल से यही हो रहा है; पर संवैधानिक दर्जा मिलने से झंझट नहीं रहेगा। जिसे भी दौड़ना है, वह नंबर दो या तीन के लिए दौड़े। और दौड़ना भी क्यों, जिसे अध्यक्ष जी कह दें, पदक उसके गले में डाल दिया जाए।

-यही नियम प्रधानमंत्री पद के लिए भी हो। यदि कोई व्यवधान आ जाए, जैसे विदेशी नागरिक होने से सोनिया जी प्रधानमंत्री नहीं बन सकीं, तो जनाधारहीन ‘खड़ाऊं प्रधानमंत्री’ मनोनीत करने का अधिकार इस ‘सुपर परिवार’ के पास हो।

-इस परिवार के लोग विवाद से बचने हेतु कभी साक्षात्कार नहीं देंगे तथा सदा लिखित भाषण ही पढ़ेंगे। एक पद, एक व्यक्ति का नियम इनके अतिरिक्त बाकी सब पर लागू होगा। इनके समर्थ युवा कंधे चित्रकारों के सामने कई मिनट तक प्लास्टिक का खाली तसला उठा सकते हैं, तो चार-छह पद क्या चीज हैं ?

-कांग्रेसजन आपस में चाहे जितना लड़ें; पर इस परिवार पर कोई टिप्पणी नहीं करेगें। हां, कोई भी आरोप संजय, नरसिंहराव या सीताराम केसरी जैसे दिवंगत लोगों के माथे मढ़ सकते हैं।

-इससे भी अच्छा यह है कि कांग्रेस में संविधान ही न हो। मैडम या राहुल बाबा जो कहें, सिर झुकाकर सब उसे मान लें।

-जैसे अधिकांश सरकारी योजनाएं इस परिवार के नाम पर है, वैसे ही हर वैध-अवैध बस्ती इनके नाम पर ही हो।

-इन विनम्र सुझावों को कांग्रेसजन अपनी जड़ों में मट्ठा समझ कर स्वीकार करें। एक विदेशी द्वारा स्थापित संस्था का क्रियाकर्म एक विदेशी के द्वारा ही हो, यह देखने का सौभाग्य हमें मिले, इससे बड़ी बात क्या होगी ? धन्यवाद।

2 COMMENTS

  1. आदरणीय विजय कुमार जी…गज़ब का आलेख…
    वाणी जी की टिप्पणी से सहमती, आखिरी पंक्ति दिल को छू गयी…

  2. आखिरी लाइन दिल छू गयी महोदय…अस्तु ऐसा ही कुछ हर देशप्रेमी देखना चाहता है…सटीक विचारो हेतु सदर वन्दे

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