आ जा ओ निंदिया रानी, तुझको बुलाऊं।
काहे को रूठी मुझ से, लोरी सुनाऊं।
माता अब बुढ़ी मेरी, गा नहीं पायेगी।
अपने आंचल में मुझको, कैसे सुलाएगी।
तन्हा-तन्हा-सा मैं, सोया घबराऊं।
काहे को रूठी मुझ से, लोरी सुनाऊं।
पहले तो निंदिया कितनी, अच्छी होती थी तू।
मेरे नन्हें नैनों में, अच्छे से सोती थी तू।
बचपन के प्यारे सपने ला मैं खो जाऊ।
काहे को रूठी मुझ से, लोरी सुनाऊं।
चंदा भी डूबा अब तो, ठंडी हुई रात भी।
अब तक तो सारी करली, तारों ने बात भी।
कहां पे अटकी है तू, किससे छुड़ाऊं।
काहे को रूठी मुझ से, लोरी सुनाऊं।
पहले तो दादा, दादी, माता सुनाती थी।
तब तो ऐ निंदिया तू भी, दौड़ी सी आती थी।
अब तो ये लोरी तेरी खुद ही मैं गाऊं।
काहे को रूठी मुझ से, लोरी सुनाऊं।
उम्र बढी है ज्यों-ज्यों, रूठी ही जाए है तू।
शायद मन की उलझन से, खतरा खाए है तू।
लेकिन ये उलझन अब मैं किसको दे आऊं।
काहे को रूठी मुझ से, लोरी सुनाऊं।
डॉ राजपाल शर्मा ‘राज’