अधिवक्ताओं के समूह ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग सहित सभी आयोगों से आग्रह किया कि वे अपनी वेबसाइटों पर सभी 22 अनुसूचित भाषाओं में जानकारी देना आरंभ करें।

नई दिल्ली, आठ जून दो हजार इक्कीस .(भाषा) वकीलों के एक समूह ने मंगलवार को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, राष्ट्रीय महिला आयोग और कुछ अन्य संगठनों से भाषाई भेदभाव को समाप्त करने के लिए अपनी वेबसाइट पर सभी 22 अनुसूचित भाषाओं में जानकारी उपलब्ध कराने का आग्रह किया है।

अखिल भारतीय अधिवक्ता परिषद, संघ की अधिवक्ताओं की शाखा, ने राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग, राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग और अन्य पिछड़ा वर्ग के संरक्षण के लिए राष्ट्रीय आयोग को भी अभ्यावेदन भेजे और सभी से आग्रह किया है कि वे अपनी-2 वेबसाइटों पर उपलब्ध जानकारी को संविधान में उल्लिखित सभी अनुसूचित भाषाओं में प्रस्तुत करें।

अभ्यावेदन में कहा गया है कि “इन आयोगों की वेबसाइटें केवल 60 प्रतिशत भारतीयों तक ही सीमित हैं क्योंकि देश की शेष आबादी को दो भाषाओं (हिंदी और अंग्रेजी) में से किसी एक का भी ज्ञान नहीं है।

अधिवक्ताओं के समूह ने कहा कि “इसके अलावा, चूंकि ‘भारत’ में निरक्षरता की दर अभी भी खतरनाक स्तर पर है, इसलिए शिकायतकर्ताओं को अपनी शिकायत रिकॉर्ड किए गए संदेशों के माध्यम से भी दर्ज कराने की अनुमति दी जानी चाहिए और तदनुसार वेबपेज/सॉफ्टवेयर को विकसित किया जाए।”

इसमें कहा गया है कि सामान्य रूप से भारत के प्रत्येक नागरिक और विशेष रूप से कमजोर वर्ग को आयोगों की गतिविधियों को जानने का मौलिक अधिकार है और उन्हें नवीनतम् सूचना प्राप्त करने का वैधानिक अधिकार है क्योंकि आयोग वेबसाइट को बनाए रखने और प्रौद्योगिकी आधारित समाधानों को संचालित करने में काफी पैसा खर्च करते हैं इसलिए इनकी पहुँच व्यापक होनी चाहिए और इनका उपयोग सभी के लिए सुगम होना चाहिए।

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