माननीय उच्च तम न्या-यालय ने प्रवासी भलाई संगठन बनाम भारत संघ (एआईआर 2014 एससी 1591) मामले में भारत के विधि आयोग से इस बात पर गौर करने को कहा था कि क्याब घृणा भाषण को परिभाषित करना और संसद से इस बारे में सिफारिश करना उचित प्रतीत होता है, ताकि कभी भी दिए जाने वाले घृणा भाषणों के खतरे पर अंकुश लगाने के मामले में चुनाव आयोग को मजबूत बनाया जा सके। इस संदर्भ को ध्या>न में रखते हुए विधि आयोग ने भारत में घृणा भाषणों पर पाबंदी लगाने वाले कानूनों का अध्यीयन किया है।
भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता संविधान में गारंटी प्रदत्तन एक अत्यंबत महत्वहपूर्ण अधिकार है। हालांकि, इस अधिकार पर भारतीय संविधान की धारा 19(2) के तहत अनेक तर्कसंगत पाबंदियां लगाई गई हैं। समाज के कमजोर तबकों को हाशिए पर डालने वाले भाषण की रोकथाम करने वाले कानूनों का उद्देश्यत अभिव्यगक्ति की स्वोतंत्रता और समानता के अधिकार में उचित तालमेल बैठाना है। भेदभावपूर्ण प्रवृत्तियों एवं तौर-तरीकों से इस तबके का संरक्षण करने के लिए यह आवश्यिक है कि घृणा एवं हिंसा को उकसाने वाली अभिव्यतक्ति के स्व-रूपों का नियमन किया जाए।
उपर्युक्ता तथ्यr को ध्याकन में रखते हुए भारत के विधि आयोग ने 23 मार्च, 2017 को ‘घृणा भाषण’ के शीर्षक वाली अपनी रिपोर्ट संख्या 267 केन्द्रे सरकार को पेश कर दी है, ताकि वह इस पर विचार कर सके।
आयोग ने अपनी राय व्यखक्तय करते हुए कहा है कि भेदभावपूर्ण रोधी उपाय के अन्ततर्गत इस बात को ध्याघन में रखा जाना चाहिए कि कमजोर तबकों के अधिकारों पर किसी भाषण का क्याभ नुकसानदेह असर पड़ता है। आयोग ने अपनी सिफारिश में कहा है कि किसी भाषण पर पाबंदी लगाने से पहले अनेक कारकों (फैक्टअर) को ध्यासन में रखने की जरूरत है। भाषण का संदर्भ, पीडि़त की सामाजिक स्थिति, भाषण तैयार करने वाले की सामाजिक स्थिति और भाषण में भेदभावपूर्ण एवं विघटनकारी माहौल बनाने की क्षमता इन कारकों में शामिल हैं।
इस मसले पर गौर करने के बाद विधि आयोग ने भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 153बी और धारा 505ए के बाद नई धारायें जोड़ते हुए भारतीय दंड संहिता में संशोधन करने का प्रस्ताशव किया है।
( Source – PIB )