अप्रैल, 2020 में यह तो तय हो गया था कि अब मैं दिल्ली में नहीं, बल्कि गांव में रहकर मिशन तिरहुतीपुर का काम करूंगा, लेकिन वहां जाकर अपने कैरियर के नाते क्या करूंगा, इसको लेकर तस्वीर अभी साफ नहीं थी। बुद्धि पहले गांव में जाकर कैरियर सेट करने की बात कह रही थी, जिससे कुछ आय शुरू हो, जबकि मन कह रहा था कि पूरा ध्यान मिशन तिरहुतीपुर पर लगाओ, आय की चिंता मत करो। बुद्धि समुद्र तट के किनारे-किनारे सुरक्षित चलना चाहती थी जबकि मन समुद्र के अनंत विस्तार में जाकर कुछ नया खोजने को कह रहा था। इस सबके बीच मुझे एक पुराना प्रश्न याद आ गया जो लोग मुझसे (प्रायः सभी बच्चों से) बचपन में पूछा करते थे और आज भी पूछते हैं, “बेटा बड़े होकर क्या बनोगे?”

मिशन तिरहुतीपुर के संदर्भ में यह प्रश्न एक बार फिर मेरे सामने था। इसका उत्तर जब मैंने किताबों की मदद से ढूंढना शुरू किया तो श्रीमती जी ने व्यंग्य करते हुए कहा कि बुढ़ापा आने वाला है और अभी तक तय ही नहीं कर पाए कि करना क्या है। बात तो ठीक ही कह रही थीं, लेकिन अगर Range नामक पुस्तक के लेखक David Epstein की मानूं तो कैरियर तय करने की सबसे बढ़िया उम्र अधेड़ अवस्था ही होती है। इसी सिलसिले में मैंने Bill Burnett & Dave Evans की किताब Designing your life भी पढ़ी। उससे भी कई चीजें समझ में आईं। मजा तब आया जब मेरे छोटे बेटे ने मुझे Joseph Campbell की किताब The Power of Myth पढ़ने को कही। इसमें कैंपबेल कहते हैं कि सत्, चित् और आनंद में आनंद को पहचानना सबसे आसान है और व्यक्ति को उसी दिशा में बढ़ना चाहिए। ऐसा करने पर सत् और चित् की प्राप्ति आसान हो जाती है। कैंपबेल की यह बात मुझे बहुत अच्छी लगी।

अपने कैरियर के बारे में सोचते हुए मुझे एहसास हुआ कि आज के बच्चों और युवाओं के लिए कैरियर चयन कितनी बड़ी चुनौती बन गया है। जिस तेजी से हमारा सामाजिक-आर्थिक परिवेश बदल रहा है, उसमें यह चुनौती और बढ़ती जा रही है। एक समय था जब लोगों का कैरियर समाज तय करता था। कुछ समय पहले तक यह काम बच्चों के मां-बाप करते थे किंतु अब तो बच्चे स्वयं तय कर रहे हैं कि उनका कैरियर क्या होगा। लेकिन मुझे लगता है कि आज के माहौल में यह निर्णय लेने के लिए जिस परिपक्वता और जानकारी की आवश्यकता होती है, उसकी उम्मीद बच्चों से नहीं की जा सकती।

कभी कैरियर के नाम पर गिने-चुने विकल्प होते थे, लेकिन आज हजारों हैं। अधिकांश बच्चों और युवाओं को प्रायः मालूम ही नहीं होता कि उनके स्वभाव और परिस्थिति को देखते हुए उनके लिए सबसे बढ़िया कैरियर क्या होगा। जिन बच्चों और युवाओं को कैरियर संबंधित ढेर सारे विकल्पों की जानकारी है, उन्हें एक नए तरह की समस्या का सामना करना पड़ता है। प्रसिद्ध मनोविज्ञानी Barry Schwartz ने इसे अपनी किताब The Paradox of Choice – Why More is Less में बड़े अच्छे से समझाया है। उनका कहना है कि विकल्प की अधिकता से समस्या का समाधान नहीं होता, बल्कि वह और बढ़ जाती है। इससे जहां एक ओर सही निर्णय लेने की व्यक्ति की क्षमता घट जाती है, वहीं दूसरी ओर वह चिंता और आत्मसंशय जैसी कई नई समस्याओं से भी घिर जाता है।

आधुनिक किताबों के अध्ययन से कैरियर चयन को लेकर बहुत सारी बातें स्पष्ट हुईं, लेकिन कुछ न कुछ अभी भी मिसिंग था। ऐसे में मुझे लगा कि क्यों न ज्योतिष विद्या की शरण ली जाए। मैं जानना चाह रहा था कि ज्योतिषी किस आधार पर लोगों के भविष्य, विशेष रूप से उनके काम-धाम के बारे में बताते हैं। इसके लिए मैंने ज्योतिषियों से बात की, लेकिन संतुष्टि नहीं हुई। मैंने महसूस किया कि जब तक मुझे ज्योतिष शास्त्र की कुछ बुनियादी बातों की खुद जानकारी नहीं होगी, इस पर कोई सार्थक चर्चा संभव नहीं है। इसके बाद मैंने अपने एक ज्योतिषी मित्र अभयजी की सलाह पर फटाफट तीन किताबें मंगवाईं- फलदीपिका- डा. गोपेश कुमार ओझा, लघु पराशरी- डा. सुरेशचंद्र मिश्र, ज्योतिष और कैरियर- आचार्य विवेकश्री कौशिक। किताबें पढ़ने के साथ-साथ यूट्यूब पर कुछ संबंधित विडियो भी देखे।

ज्योतिष की किताबों में जो पढ़ता, उसे मैं अपनी और अपने परिवार के दूसरे सदस्यों की कुंडली पर आजमा कर भी देखता। धीरे-धीरे रहस्य खुलने लगे। मैंने देखा कि वृश्चिक लग्न की मेरी कुंडली के कर्मभाव में 12 डिग्री का बल लेकर चंद्रमा बैठे हैं और उन पर सूर्य तथा गुरू की दृष्टि पड़ रही है। इसके अलावा और भी बहुत कुछ मुझे अपनी कुंडली में दिखा। ऐसा नहीं है कि मैं तीन किताबें पढ़कर ज्योतिष विद्या का जानकार हो गया, लेकिन हां इतना जरूर हुआ कि उसके शब्द और उसकी भाषा मुझे समझ में आने लगी। मैं अपने को और बेहतर ढंग से जान पाया। “बेटा बड़े होकर क्या बनोगे?”, इस प्रश्न का उत्तर मुझे आज भी नहीं मालूम, लेकिन ज्योतिष विद्या ने मुझे इतना जरूर बता दिया कि मेरा कर्म मेरी बुद्धि के नहीं, बल्कि मेरे मन के अधीन होगा।

कैरियर के प्रश्न पर जो कसरत हुई, उसके परिणाम स्वरूप मैंने तय किया कि कैरियर चयन के क्षेत्र में मिशन तिरहुतीपुर प्राथमिकता के आधार पर काम करेगा। हम एक ऐसी प्रक्रिया विकसित करना चाहेंगे जिसमें बहुत छोटी उम्र से ही बच्चों का ज्योतिषीय, मनोवैज्ञानिक, सामाजिक और एकेडमिक आधार पर निरंतर आकलन होता रहे, उनके गुण-धर्म को पहचानकर उनके चरित्र निर्माण की कोशिश होती रहे और जब वे 15 वर्ष के हो जाएं तो उन्हें उचित कैरियर की ओर बढ़ने के लिए प्रेरित किया जाए, सहायता दी जाए।

जहां तक अपनी बात है तो मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि गांव जाकर फिलहाल कोई बिजनेस नहीं करूंगा। मैं अपना पूरा ध्यान मिशन तिरहुतीपुर पर ही केन्द्रित रखूंगा। अन्यथा फिर वही पुरानी डिसोनेन्स की समस्या उत्पन्न होगी। इस निर्णय के पीछे दो आधार हैं। पहला, मुझे लगता है कि एक साल के भीतर स्वयं की आजीविका के लिए अर्थोपार्जन करना मेरी मजबूरी नहीं रह जाएगी क्योंकि मेरे दोनों बेटे अपनी जिम्मेदारी खुद उठाने में सक्षम हो जाएंगे। दूसरा, गांव में चूंकि मैं अपने संयुक्त परिवार के साथ रहूंगा, इसलिए वहां लगभग शून्य आय में भी जीवनयापन कर सकूंगा। अगर व्यक्तिगत खर्चों के लिए थोड़ी-बहुत पैसों की जरूरत हुई तो मुझे विश्वास है कि उसे मैं अपनी मीडिया पृष्ठभूमि और लेखनी के दम पर सहज ही अर्जित कर लूंगा।

विमल कुमार सिंह
संयोजक, मिशन तिरहुतीपुर

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