पर-भारी; मन-तरी ‘

~कृष्णमुरारी त्रिपाठी अटल
सूबे में हुजूर की सरकार है,और जब हुजूर की सरकार है तो उन्हीं के हाथों में सारे अधिकार है। चाहे बढ़ा दें विकास की रफ्तार या वे दिखला दें अपने पॉवर का चमत्कार। सबकुछ उनके ही वश में है। ऊपर से जब सत्ता की पहरेदारी के लिए इस जिले से उस जिले तक का प्रभार है,तब लाजिमी है कि हुजूर -खजूर पर लटके या खजूर जैसे तनकर नजरों में खटके। चूँकि नाम से ही सुस्पष्ट है – ‘पर-भारी; मन-तरी’ अर्थात् जो दूसरों पर भारी होकर, मन को तरने का काम करते हैं,वही हैं परभारी मन्त्री। चूँकि उनके दौरे का कार्यक्रम लगभग लगा ही रहा आता है। इसलिए हर दौरे पर उनकी खुशामदों का दौर चलता रहता है। यदि गल्ती से भी उनकी खुशामद न हो पाई याकि उसमें क्षणिक मात्र की देरी हुई तदुपरान्त माहौल ऐसे लुटता है जैसे कि नेता रुपी जीव जाम छलकाते हुए हुस्न के जलवों का लुत्फ़ उड़ाता है।

यदि परभारी मनतरी की भृकुटि टेढ़ी हुई तब पार्टी के तमाम जिम्मेवारों से लेकर अधिकारी कर्मचारियों की आफत का सुरुर अपने उफान पर चढ़ने लगता है। चूँकि परभारी; मन-तरी जी पहले से ज्यादा पॉवरफुल हो जाते हैं,इसलिए उनके डॉन वाले जलवे में कोई कमी हो जाना यानि की साक्षात् काल के क्रोध का शिकार होना है ।

ट्रेन की आगवानी से लेकर शहर -कस्बे-गाँव की जिन-जिन गलियों से उनका गुजरना हो,उन गलियों के चप्पे -चप्पे पर मनतरी जी की चापलूसी के बैनर-पोस्टरों की भरमार और वाहनों के काफिले की रफ्तार का दीदार हर आम-खास को होना ही चाहिए; अन्यथा कैसे समझ आएगा कि मनतरी जी अपनी सरकार से जनता का उध्दार करने के लिए आए हैं। हालाँकि वास्तविकता यह है कि राजनीति का दारोमदार इसी पर टिका होता है कि जब जिसकी सरकार आए,तब उसकी जयकार हो। और केवल चुनावी जुमलों में ही जनता का उध्दार हो।

काले रंग का ब्राण्डेड चश्मा :―
सरकार में मन्त्री ऊपर से परभारी-मनतरी होने के जलवे ही खास होते हैं। उनकी आँखों में लगा काले रंग का ब्राण्डेड चश्मा सिर्फ़ इसलिए लगा रहता है,ताकि जनता से अपने नक्कारेपन की नजरें चुराई जा सकें; और अपने मातहतों-अधीनस्थों के सामने अपनी रौबदारी गाँठी जा सके। यदि चश्मा न पहने रहे और बदहाली का अपना दु:खड़ा सुनाने जनता आ गई, तब ‘परभारी’ का सिर-भारी होने का खतरा बढ़ सकता है,ऊपर से विकास गाथा का जो परचम – विज्ञापन, होर्डिंग्स और लच्छेदार भाषणों में लहराया जाता है ; वह एक झटके में ही उतर जाएगा। अतएव ब्राण्डेड चश्मा भी बड़े काम की चीज है।

प्रभार के जिले में पर्यटन के लिए :―
जब-जब अपने प्रभार के जिले में पर्यटन के लिए मनतरी जी जाते हैं; तब-तब उनके जिले के सारे अधिकारियों की सरगर्मी तेज हो जाती है। फाईलें अपने आप दौड़ भाग करती हुई पूर्णतया मेन्टेन हो जाती हैं,और आधे-अधूरे कार्य अधिकारियों की – ‘मन की गति’ से पूरे होकर मनतरी जी की मेज के सामने त्रिविमीय ढाँचे के रुप में पेश हो जाते हैं। और फिर मनतरी जी प्रेसवार्ता में चहुँमुखी विकास का कीर्तिमान गलझारते हुए अपनी धीर-गम्भीर मुद्रा में राजनैतिक मुस्कान वाली फोटूशूट करवा लेते हैं।

आम जनता सरकार को कितना भी धिक्कारे याकि सरकार कितना भी जनहित का दम्भ भरते हुए चीत्कारे,लेकिन नियमानुसार परभारियों को प्रभार इसीलिए दिया जाता है; ताकि वे अपने रौब और खौफ का खूब प्रसार करें ।और अपने चारागाह को निजी अभ्यारण्य बनाकर उसकी सुन्दरता में आत्ममुग्ध होते हुए सरकारी धन और तन्त्र के दुरुपयोग के माध्यम से अपना वारा -न्यारा करें।

करदाताओं के ‘कर’ की तरकारी :―
मन्त्री ऊपर से परभारी तब उनकी आवभगत की सरकारी तैयारी भी करदाताओं के ‘कर’ की तरकारी बनाकर पूरी की जाती है। उन्हें जनता का भाग्य सँवारने के लिए प्रभार सौंपा जाता है,लेकिन वे जनता की बजाय पार्टी के नेताओं का भाग्य और अपने कैडर का दबदबा कायम करने में अति व्यस्त होते हैं। व्यस्तता का आलम यह होता है कि फूल-मालाओं ,चाटुकारिता और जिन्दाबाद के नारे से अस्त-व्यस्त रहते हैं। वे सरकारी बैठकी में अपनी धाँसू उपस्थिति दर्ज करवाते हुए पूरे जिले और जनता के सुख के लिए शीर्षासन के सामने लगे माईक से प्रगल्भता भरी दिशा-निर्देशों की झड़ी लगाकर अपनी औपचारिकता पूर्ण कर लेते हैं।

उनकी चढ़ोत्री फिक्स्ड :―
हालाँकि पिछले दरवाजे वाली इण्ट्री यहाँ भी खूब फलती-फूलती है। नौकरशाहों और अपने चापलूसों से मनतरी जी जिले की आय-व्यय का पूरा ब्यौरा तलब रखते हैं। मनतरी जी सब भूल सकते हैं,लेकिन यही हिसाब है जिसका पाई-पाई का गुणा-भाग उन्हें भूल नहीं सकता। सरकारी-गैरसरकारी सभी केबिनों से उनकी चढ़ोत्री फिक्स्ड हो जाती है,और वह राशि किसी न किसी माध्यम से उनके बैंक बैलेंस में बढ़ोत्तरी कर इठलाती रहती है।

जनकल्याण का इतना भार : ―
उनके सिर में जनकल्याण का इतना भार होता है कि वे सफर में आसानी से थक जाते हैं। हालाँकि अपनी तोंद का वजन कम करने के लिए वे थोड़ी-बहुत कसरत भी कर लेते हैं। कसरत करने के लिए उनकी अपनी पसन्द हैं तथा वे सरकारी विश्रामगृहों से लेकर पार्टी के नेताओं के यहाँ लंच,डिनर और टीआरपी प्राप्त करने के लिए प्रायोजित कार्यक्रमों में फीता काटकर जनकल्याण का हवाई पाखण्ड रच लेने में माहिर हैं।

पुलिस जो कभी किसी की नहीं सुनती, और वाहन चेकिंग के नाम पर आम आदमी के चलते वाहन की चाभी निकालने के लिए लपकती है,उसके अधिकारी परभारी के काफिले के लिए पूरे रास्ते को साफ कर देते हैं और अपनी वफादारी में चार चाँद लगाने में जुटे रहते हैं।

जनता खबरों में सुनती है कि परभारी ये आए और वे गए। प्रोटोकॉल की बाउण्ड्रीवाल इतनी बड़ी होती है कि छुटभैय्यों से लेकर बड़भैय्यों और संपोलों के सेल्फी खींचने की भीड़ में आम जनता की अर्जियाँ और चीखें जयकारे के शोर में गुम हो जाती है। कठिन प्रयासों के बाद यदि अर्जियाँ पहुँची भी तो रद्दी के कागज की तरह रास्ते में उसी तरह धूल फाँकती हुई उड़ती रहती हैं,जिस तरह जनता की आँखों में बेहतरी की उम्मीद पीढ़ी दर पीढ़ी खिसकती हुई मातमपुर्सी मनाती है।

परभारी हर बार अपने लम्बे काफिले से धूल उड़ाते हुए घोषणाओं में विकास की महागाथा सुनाकर छू-मंतर हो जाते हैं। जनता हमेशा अपनी खीस निपोरे उनके स्टेटस सिम्बल को देखती रहती है। हालाँकि उनकी पार्टी के नेतागण चापलूसी-चाटुकारिता के सारे रिकार्डों को ध्वस्त करते हुए यह स्पष्टीकरण देते हैं कि हमारी सरकार, मन्त्रीजी और पार्टी की तरक्की देखकर जनता; जलती -कुढ़ती है।उसे विकास की अदृश्य बयार नहीं दिखती और दिन-प्रतिदिन जनता उनके प्रति जलनखोर होती जा रही है।खैर, यह सब राजनीति की बातें हैं जिन पर चाहे लहालोट हों या ओवरवेट। भले जनता फिरे मारी-मारी लेकिन परभारी की जयकारी हर हाल में जरुरी है!!

~©®कृष्णमुरारी त्रिपाठी अटल

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