सृष्टि के आरंभ में न सत था न असत था

—विनय कुमार विनायक
ऋग्वेद का कथन है सृष्टि के आरंभ में
न सत था, न ही असत था,न वायु था
न आकाश था, ना मृत्यु ना अमरता थी
न रात थी, न दिन,न सांझ ना प्रभात!

उस आरंभिक समय में केवल वही था
जो वायुरहित स्थिति में निज शक्ति से
श्वास ले जीवन की क्षमता रखता था,
उसके सिवा कुछ भी जीवित नहीं था!

वैज्ञानिकों का भी मानना रहा है ऐसा
कि ब्रह्मांड के शुरुआती वातावरण में
ब्रह्माण्ड में कोई संरचना नहीं हुई थी,
पदार्थ ऊर्जा समान रूप से वितरित था!

नासा के अनुसार पदार्थों के घनत्व में
छोटे उतार-चढ़ाव, गुरुत्वाकर्षण बंधन ने
सितारों की विशाल तरंग जैसी संरचना
और आज की शून्यता को जन्म दिया!

घने क्षेत्रों ने गुरुत्वाकर्षण के माध्यम से
अधिक से अधिक पदार्थों को अपनी ओर
खींच लिया जिससे सितारे, आकाशगंगाओं
और बड़ी संरचनाओं का निर्माण हुआ था!

जिसे कलस्टर, सुपर कलस्टर फिलामेंट
और दीवारों के रूप में आज जाना जाता!

इन दीवारों सी हजारों आकाशगंगाओं की लंबाई
एक अरब से अधिक प्रकाश वर्ष तक फैल गई!

कम घने क्षेत्रों में वृद्धि नहीं हो सकी थी
जो उचित रूप से रिक्त स्थान के क्षेत्र में
विकसित होती गई जिसे ब्लैकहोल कहते!
ब्रह्माण्ड के समस्त पदार्थ व जीव जंतुएं
आपसी आकर्षण विकर्षण से स्थित होते!
—विनय कुमार विनायक

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