वेदभाष्यकार एवं वैदिक विद्वान पं. हरिश्चन्द्र विद्यालंकार का संक्षिप्त परिचय

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मनमोहन कुमार आर्य

आज हम आर्यसमाज के प्रमुख वेदभाष्यकारों की सूची बना रहे थे। इसके लिए हमने सार्वदेशिक सभा, दिल्ली द्वारा प्रकाशित चतुर्वेद भाष्य भाषानुवाद का अवलोकन किया। इससे ज्ञात हुआ कि सभा द्वारा ऋग्वेद के नवम् व दशम् मण्डल का जो भाष्य-भाषानुवाद प्रकाशित किया गया है, उसके भाष्यकारों में पं. आर्यमुनि, पं. शिवशंकर शर्मा काव्यतीर्थ, पं. वैद्यनाथ शास्त्री सहित पं. हरिश्चन्द्र विद्यालंकार जी का भी नाम भी सम्मिलित है। हम पं. हरिश्चन्द्र विद्यालंकार जी के नाम व कृतित्व से अपरिचित थे अतः हमने प्रवर एवं प्रमुख वयोवृद्ध यशस्वी आर्य विद्वान तथा आर्य आर्य लेखक कोष के संकलनकर्ता डा. भवानीलाल भारतीय जी का ग्रन्थ देखा। ग्रन्थ में पं. हरिश्चन्द्र विद्यालंकार जी का संक्षिप्त परिचय मिल गया। इससे यह भी विदित हुआ कि पं. हरिश्चन्द्र जी ने अपने जीवन में अनेक ग्रन्थों का प्रणयन किया। ग्रन्थ में जिन ग्रन्थों के नाम दिये गये हैं वह हैं 1-  आर्यसमाज का संक्षिप्त व सुबोध इतिहास, 1998 वि. (सन् 1941), महर्षि दयानन्द सरस्वती जीवन चरित, 2010 वि. (1952), सामवेद संहित भाषा भाष्य (2012 वि.), महात्मा हंसराज (लघु जीवन चरित, 2010 वि.), मनुस्मृति भाषानुवाद (2016 वि.), आर्य डाइरेक्टरी-पं. रामगोपाल विद्यालंकार के संयुक्त सम्पादन में (1938), वैदिक शिष्टाचार, बाल रामायण, माता का सन्देश।

 

डा. भारतीय जी द्वारा सूचित लेखक के ग्रन्थों व कार्यों में ऋग्वेद के नवम् एवं दशम् मण्डल के भाष्यों का उल्लेख नहीं है। आंशिक भाष्य किये जाने के कारण सम्भवतः ऐसा हुआ हो। इससे यह भी ज्ञात हुआ कि पं. हरिश्चन्द्र जी ने सामवेद का भाषा-भाष्य किया है। इस कारण पं. हरिश्चन्द्र जी आर्य वेदभाष्यकारों में गणना में सम्मिलित हो ही जाते हैं। हमने आज जो कुछ प्रमुख आर्य वेद भाष्यकारों की सूची बनाई है वह हम शीघ्र पृथक से एक लेख में प्रस्तुत करेंगे जो साधारण कोटि के स्वाध्याय प्रेमियों के लिए उपयोगी होगी और इसके साथ ही  आर्य समाज के विद्वान हमारा भी मार्गदर्शन व इसमें कमियों की ओर हमारा ध्यानाकर्षण वा ज्ञानवर्धन करेंगे। अभी तक हमारी जानकारी में आर्यसमाज में किसी विदुषी माता व बहिन ने वेदों का भाष्य नहीं किया है। यदि ऐसा हुआ होता तो इस पर आर्यसमाज गर्व कर सकता था क्योंकि मध्यकाल में हमारे पौराणिक विद्वानों वा पण्डितों ने स्त्री जाति के वेदाधिकार को छीन लिया था वा उन्हें इस अधिक से च्युत कर दिया था। हमने अनेक बार आर्यसमाज की विदुषी बहिन डा. सूर्यादेवी जी से किसी एक वेद व अधिक पर वेद भाष्य करने का अनुरोध किया है। नवम्बर, 2016 में परोपकारिणी सभा द्वारा आयोजित ऋषि मेले के अवसर पर उनके दर्शन हुए थे, वहां भी हमने उनसे निवेदन किया जिसे उन्होंने स्वीकार भी किया। यदि वह किसी एक वेद पर भी भाष्य कर देती हैं तो यह आर्यसमाज के द्वारा किये गये कार्यों में ऐतिहासिक कार्य होगा जिससे हमारे ऋषि दयानन्द और आर्यसमाज गौरवान्वित होगा और पौराणिक मान्यताओं का दमन हो सकेगा। यह भी बता दें कि सन् 1994 में तमिलनाडु प्रदेश की विधानसभा में एक सदस्य के प्रश्न के उत्तर में संबंधित मंत्री द्वारा बताया गया था कि स्त्री को वेद पढ़ने का अधिकार नहीं है। आज भी हमारे पौराणिक आचार्य व कुछ शंकराचार्य आदि इसी मान्यता का मानते हैं। बहिन सूर्यादेवी जी में वेदभाष्य करने की प्रतिभा है, अतः हमें यह उचित प्रतीत होता है कि उन्हें इस कार्य को सर्वोपरि महत्व देना चाहिये। इससे उनका व उनके आचार्य ऋषि दयानन्द का यश व गौरव बढ़ेगा, यही हम चाहते है।

 

पं. हरिश्चन्द्र विद्यालंकार जी के जिन ग्रन्थों का उल्लेख उपर्युक्त सूची में है, आज उनमें से कोई एक ग्रन्थ भी कहीं से उपलब्ध नहीं होता। आर्यसमाज की सभाओं को लेखक के ग्रन्थों के संरक्षण की ओर ध्यान देना चाहिये। यदि इन सबकी पीडीएफ बनाकर किसी साइट पर डाल दी जाये तो पाठकों को सुविधा होने के साथ ग्रन्थों का संरक्षण स्वतः ही हो जायेगा। आशा है कि हमारे नेतागण इस पर ध्यान देंगे।

 

आर्य लेखक कोष में पं. हरिश्चन्द्र विद्यालंकार जी का जो संक्षिप्त परिचय दिया गया है उसे भी पाठक महानुभावों के लिए प्रस्तुत कर रहे हैं। डा. भारतीय लिखते हैं ‘सामवेद के हिन्दी टीकाकार तथा उत्कृष्ट लेखक श्री हरिश्चन्द्र विद्यांलकार का जन्म 3 सितम्बर, 1903 को सोनीपत जिले के फरमाना ग्राम में हुआ। (आर्यजगत के सुप्रसिद्ध संन्यासी, दर्शन योग महाविद्यालय के संस्थापक तथा योग की प्रमुख विभूति स्वामी सत्यपति जी का जन्म ग्राम भी फरमाना ही है। -मनमोहन)। 1981 वि. (1925) में आपने गुरुकुल कांगड़ी से विद्यालंकार की उपाधि प्राप्त की। कुछ समय तक आपने गुरुकुल मुल्तान तथा गुरुकुल कुरुश्रेत्र में मुख्याध्यापक का कार्य किया तथा दिल्ली से हिन्दू तथा लोकमान्य नामक साप्ताहिक पत्रों का सम्पादन किया। भारत की राजधानी दिल्ली में आपका निजी प्रेस था। इनका निधन 1974 में हुआ।’ इस विवरण को प्रस्तुत करने के लिए हम डा. भारतीय जी का हृदय से आभार व्यक्त करते हैं।

 

 

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