राजेश कुमार पासी
पहले श्रीलंका, फिर बांग्लादेश और अब नेपाल ने एक क्रांति हो रही है । कहने को यह क्रांति है लेकिन यह जनता का गुस्सा है जो छात्रों के माध्यम से सड़कों पर उतर आया है । नेपाल में इस आंदोलन को जेन जी आंदोलन का नाम दिया गया है क्योंकि इसमें ज्यादातर 18 से 30 साल तक के युवा शामिल हैं । इस आंदोलन का कोई नेता नहीं है तो इसका मतलब है कि कोई पीछे से इसे संचालित कर रहा है । शांतिपूर्ण तरीके से शुरू किया गया आंदोलन हिंसक रूप ले चुका है । इसे सत्ता परिवर्तन करने वाला आंदोलन बताया जा रहा है क्योंकि नेपाल के प्रधानमंत्री ओली ने इस्तीफा दे दिया है ।
देखा जाए तो अब ये आंदोलन अराजकता का रूप ले चुका है । नेपाल सरकार ने फेसबुक, इंस्टाग्राम, यूट्यूब सहित 26 सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर प्रतिबंध लगा दिया था जिसके विरोध में यह आंदोलन शुरू किया गया । इसके बाद इस आंदोलन में भ्रष्टाचार और बेरोजगारी का मुद्दा भी जुड़ गया । आंदोलन के हिंसक होने का कारण पुलिस फायरिंग में 24 युवाओं की मौत होना है क्योंकि इसके बाद ही पूरे देश में हिंसा भड़क गई । प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली का इस्तीफा होने के बाद भी युवाओं का गुस्सा शांत नहीं हुआ है । सवाल यह है कि सोशल मीडिया पर बैन हटा दिया गया तो आंदोलन खत्म हो जाना चाहिए था । फिर प्रधानमंत्री के इस्तीफे की मांग की गई और वो भी पूरी हो गई लेकिन आंदोलन फिर भी नहीं रुका । इसके विपरीत यह आंदोलन और भयानक रूप ले चुका है । भीड़ ने राष्ट्रपति निवास, संसद भवन, सुप्रीम कोर्ट सहित कितने ही वर्तमान और पूर्व मंत्रियों के घर फूंक दिए हैं । प्रधानमंत्री ओली का निजी घर भी फूंक दिया गया है ।
इसके अलावा बड़े-बड़े होटल जलाए जा रहे हैं और अन्य सरकारी भवनों को भी आग लगाई जा रही है । सेना सड़को पर उतर आई है और छात्रों से मीटिंग करने की बात कही जा रही है । नेपाल के डिप्टी पीएम व वित्त मंत्री को जनता ने सड़क पर दौड़ा-दौड़ाकर पीटा है । पूर्व पीएम और नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष शेर बहादुर देउबा को उनके घर से निकालकर पीटा गया और उनकी पत्नी को भी बुरी तरह से पीटा गया है । नेपाली कांग्रेस के पार्टी मुख्यालय को भी आग लगा दी गई है क्योंकि यह पार्टी ओली का समर्थन कर रही थी ।
यह आंदोलन व्यवस्था परिवर्तन के नाम पर चलाया जा रहा है जबकि इसमें अपराधी तत्व शामिल हो गए हैं । वो इस आंदोलन की अराजकता का फायदा उठा रहे हैं जिसके कारण लगभग 13000 कैदी जेल से भाग गए हैं । भगवान शिव के प्रसिद्ध पशुपतिनाथ मंदिर पर भी हमला किया गया है जबकि इस आंदोलन से मंदिर का कोई लेना-देना नहीं है । नेपाल गए हुए भारतीयों पर हमला किया जा रहा है जबकि भारतीयों का इस आंदोलन से कोई मतलब नहीं है । हो सकता है कि इस आंदोलन को शुरू करने में किसी विदेशी ताकत का हाथ न रहा हो लेकिन अब जरूर इसमें विदेशी ताकते शामिल हो गई हैं । जिन समस्याओं को लेकर यह आंदोलन किया गया है, वो एशिया और अफ्रीका के ज्यादातर देशों में व्याप्त हैं इसलिए इसे स्वयं स्फूर्त आंदोलन कहना सही नहीं लगता है हालांकि इसे हिंसक रूप देने में सरकार का बड़ा योगदान है । जब युवा शांतिपूर्ण तरीके से आंदोलन कर रहे थे तो पुलिस को गोली चलाने की क्या जरूरत थी ।
चीन के साथ रहते-रहते नेपाली सरकार यह भूल चुकी है कि नेपाल और चीन में बड़ा अंतर है । चीन में सड़क पर सत्ता परिवर्तन नहीं होता लेकिन नेपाल में सड़क पर सत्ता परिवर्तन का इतिहास है । आंदोलन के दौरान सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों को ही निशाना बनाया गया है इसलिए सवाल उठता है कि लोकतंत्र कैसे बचेगा हालांकि विशेषज्ञ कह रहे हैं कि नेपाल में लोकतंत्र को कोई खतरा नहीं है । यह तब कहा जा रहा है, जब नेपाल की जनता लोकतंत्र से बुरी तरह निराश हो गई है । बेशक सत्ता संभालने के लिए कई नाम सामने आ रहे हैं लेकिन सवाल यह है कि क्या इनमें से कोई भी नेपाल की जनता की उम्मीदों को पूरा कर सकेगा । बांग्लादेश की हालत हम सभी देख रहे हैं, जिन परेशानियों से तंग आकर वहां सत्ता परिवर्तन किया गया था, वो परेशानियां बढ़ती जा रही हैं । बांग्लादेश में एक अमेरिकी समर्थक नेता शासन कर रहा है जिसके लिए उसे बांग्लादेश की जनता ने नहीं चुना है । अब नेपाल में भी ऐसा हो सकता है कि एक ऐसा नेता सत्ता संभाले जिसका जनता में कोई आधार ही न हो । जिस तरह से नेपाल में सरकारी और निजी संपत्तियों को जलाया गया है, उससे पता चलता है कि यह आंदोलन देशहित से अलग चला गया है ।
इस आंदोलन का मुख्य मुद्दा भ्रष्टाचार है क्योंकि अपने भ्रष्टाचार को छुपाने के लिए ही सरकार ने सोशल मीडिया पर प्रतिबंध लगाया था । जनता की शिकायतों को दूर करने की जगह उनसे भागने का रास्ता सरकार ने निकाला था लेकिन वही उसे भारी पड़ गया । नेपालियों ने इसे अपनी अभिव्यक्ति की आजादी और सम्पर्क करने पर हमला माना । हमें याद रखना चाहिए कि नेपाल में 90 प्रतिशत से ज्यादा इंटरनेट उपयोगकर्ता समाचार, भुगतान, पर्यटन, प्रचार और व्यापार के लिए इन सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर निर्भर हैं । इससे नेपाल के लोगों को क्या परेशानी होने वाली थी, समझा जा सकता है । 2008 में लोकतंत्र को लागू करने के लिए नेपाल में राजतंत्र को खत्म कर दिया गया लेकिन 17 सालों में नेपाल में 14 सरकारें बदल चुकी हैं । सवाल यह है कि लोकतंत्र ने नेपाल की जनता को क्या दिया है । विडंबना है कि इन 17 सालों में नेपाल की जनता की समस्याओं का कोई समाधान नहीं किया गया है । नेपाल में विकास की जगह बदहाली आ रही है जिसके कारण महंगाई और बेरोजगारी बढ़ती जा रही है । जब उद्योग नेपाल छोड़कर जा रहे हों तो युवाओं को नौकरियां कहां से मिलेंगी । सरकारी नौकरियों में सिफारिश और पैसा चल रहा है ।
सबसे बड़ी समस्या यह है कि जब से नेपाल में लोकतंत्र आया है, तब से नेपाल में तीन राजनीतिक दल आपस में मिलकर सत्ता की मलाई चाट रहे हैं । नेपाली कांग्रेस, यूनीफाइड मार्क्सवादी पार्टी और माओवादी पार्टी तीनों मिलकर सत्ता चला रहे हैं । शेर बहादुर देउबा, प्रचंड और ओली बदल-बदल कर नेपाल के प्रधानमंत्री बन रहे हैं । ऐसा लगता है कि इनके बीच यह सहमति बन गई है कि किसी दूसरे को सत्ता में नहीं आने देना है । सबसे बड़ी समस्या इन पार्टियों की यह है कि ये नेपाल को चीन और अमेरिका के एजेंडे पर चलाने की कोशिश करती रही हैं । उनकी कोशिश नेपाल को भारत से दूर करने की भी रही है और इन्होंने सीमा विवाद खड़ा करके भारत को नेपाल की जनता की नजरों में दुश्मन बनाने की कोशिश की है । भारत नेपाल की बड़ी मदद कर सकता था लेकिन वहां सरकार ऐसा नहीं सोचती हैं । राजीव गांधी ने 1989 में नेपाल की नाकाबंदी करके जो जहर भारत-नेपाल के रिश्तों में डाला था, अभी तक उसका असर गया नहीं है । नेपाल में वामपंथी विचारधारा की सरकारों के कारण भारत इस जहर को कम करने में सफल नहीं हो पाया है ।
वामपंथी सरकार ने सनातन धर्म पर चलने वाले देश को सेकुलर बनाने की कोशिश में देश की पहचान को खतरे में डाल दिया है । दूसरी तरफ अमेरिका के एनजीओ वहां धर्म परिवर्तन के नाम पर डेमोग्राफी बदलने की कोशिश कर रहे हैं । नेपाल की जनता लोकतंत्र से परेशान होकर राजा की तरफ देख रही है । राजा ज्ञानेन्द्र शाह अपनी ताकत को पहचान रहे हैं इसलिए अभी इस संघर्ष से दूर हैं । नेपाल की सत्ता संभालने के लिए जिन लोगों के नाम सामने आ रहे हैं, उनमें एक नाम राजा ज्ञानेन्द्र शाह का भी है । लोकतंत्र से निराश हिंदू राष्ट्रवादी संगठनों ने उन्हें प्रतीक बनाकर राजतंत्र की वापसी की मांग तेज कर दी है । भारत के लिए नेपाल का संकट बड़ी चिंता का विषय है लेकिन भारत पड़ोसी देशों के अंदरूनी मामलों में दखल देने से दूर रहा है । नेपाल के मामले में भारत को कुछ तो करना होगा क्योंकि नेपाल के साथ हमारा खुला बार्डर है । वहां फैल रही अराजकता हमारे लिए बड़ा खतरा बन सकती है ।
नेपाल में स्थिरता लाने के लिए भारत को नेपाल की मदद करनी होगी । बेशक वहां जनता लोकतंत्र से निराश है लेकिन लोकतंत्र की बहाली के अलावा कोई और बेहतर रास्ता नहीं है । भारत के आसपास मौजूद अशांत देश हमारे लिए बड़ा खतरा हैं और नेपाल सबसे बड़ा खतरा बन गया है । भारत को बड़ी शरणार्थी समस्या का सामना करना पड़ सकता है । नेपाल के साथ लगते राज्यों में कानून-व्यवस्था की समस्या उत्पन्न हो सकती है । भारत को नेपाल पर कड़ी नजर रखने की जरूरत है क्योंकि नेपाल की समस्या का जल्दी समाधान होता दिखाई नहीं दे रहा है । जो भी सरकार वहां सत्ता संभालेगी, उसके लिए जनता की उम्मीदों पर खरा उतरना आसान होने वाला नहीं है ।
राजेश कुमार पासी