डा वीरेन्द्र भाटी मंगल
वर्तमान समय डिजिटल युग का है। मोबाइल, इंटरनेट और सोशल मीडिया ने हमारी दुनिया को छोटा कर दिया है। सूचना, शिक्षा और मनोरंजन हमारी उंगलियों पर हैं लेकिन यही सुविधा धीरे-धीरे हमारी सबसे बड़ी समस्या भी बनती जा रही है। लोग घंटों-घंटों मोबाइल स्क्रीन पर समय बिताने लगे हैं जिसके कारण व्यक्तिगत संबंध, स्वास्थ्य और मानसिक शांति प्रभावित हो रही है। ऐसे में डिजिटल डिटॉक्स यानी मोबाइल और इंटरनेट से कुछ समय का विराम लेना अब केवल विकल्प नहीं बल्कि आवश्यकता बन चुका है।
डिजिटल अति-उपयोग के खतरे प्रतिदिन बढते ही जा रहे है। इसके अधिक उपयोग से मानसिक स्वास्थ्य पर बेहद बुरा असर हो रहा है। लगातार बढता स्क्रीन टाइम अवसाद, चिंता और चिड़चिड़ापन को बढ़ाता है। इसके अलावा आज प्रत्येक व्यक्ति नींद की समस्या से जूझ रहा है। देर रात मोबाइल चलाने से नींद का चक्र बिगड़ जाता है, जिससे थकान और ऊर्जा की कमी होती है। इसके साथ ही व्यक्ति की सामाजिक दूरी भी बढती जा रही है। घर-परिवार और दोस्तों के बीच बैठकर भी लोग मोबाइल में खोए रहते हैं जिससे मानवीय रिश्तों में दूरी बढ़ती जा रही है जो व्यक्ति को अकेला बना रही है। विद्यार्थी जीवन में पढ़ाई और व्यक्ति के दिन प्रतिदिन के काम के दौरान मोबाइल नोटिफिकेशन ध्यान भटकाते हैं, जिससे समय की बर्बादी होती है। अधिक स्क्रीन टाइम के उपयोग से शारीरिक नुकसान विशेषकर आंखों की रोशनी पर असर, गर्दन और पीठ दर्द जैसी समस्याए आम बात हो गई हैं।
इसलिए बढते डिजिटल प्रभाव के खतरों को देखते हुए डिटॉक्स बहुत जरूरी हो गया है। जब हम स्क्रीन टाइम को कम करते है तो हमारी मानसिक शांति और एकाग्रता को दुरुस्त करता है। इसके अलावा हमारे मानवीय रिश्तों और परिवार को समय देने का पर्याप्त अवसर मिलता है। इसके साथ ही शरीर को प्राकृतिक लय नींद, भोजन, व्यायाम के अनुरूप चलने में मदद करता है। इसके अलावा हमारा काम और पढ़ाई में भी फोकस बढ़ाता है। इसके साथ ही इससे हम वास्तविक जीवन के अनुभवों से भी जुडते है।
प्रत्येक व्यक्ति के सामने यह सवाल है कि आखिर हम डिजिटल डिटॉक्स कैसे करें ?
इसके लिए व्यक्ति को आन्तरिक चेतना को जागृत करते हुए नो-फोन टाइम तय करना होगा। जैसे सुबह उठने के बाद पहले एक घंटा और रात को सोने से पहले एक घंटा मोबाइल से दूर रहें। इसी प्रकार नोटिफिकेशन ऑफ करने के साथ ही गैर-जरूरी एप्स की अलर्ट बंद करने से भी हमारा ध्यान कम भटकेगा। व्यक्ति को फिजिकल एक्टिविटी बढाने के साथ-साथ सुबह की सैर, योग, खेलकूद या बागवानी जैसे काम डिजिटल स्क्रीन से दूरी बनाने में हमारी मदद कर सकते है। हम अपने परिवार को पर्याप्त समय दे सकते है। खाने की मेज पर या शाम को बैठकर परिवार के साथ बिना मोबाइल के बातचीत कर इस लत से छुटकारा पा सकते है। इसके अलावा संयम का परिचय देते हुए डिजिटल डिटॉक्स के लिए प्रत्येक सप्ताह में एक दिन पूरी तरह सोशल मीडिया और इंटरनेट से विराम लेने की आदत भी हमें सुकून प्रदान करेगी। ऑफिस वर्क खत्म होने के बाद मोबाइल का उपयोग बहुत सीमित करने का प्रयास करें। इसके साथ-साथ ऑफलाइन हॉबी की ओर भी ध्यान देना होगा। किताब पढ़ना, लिखना, चित्रकारी, संगीत या कोई रचनात्मक काम अपनाकर हम इस लत को कम कर सकते है।
मोबाइल और इंटरनेट हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा बन चुके हैं। इन्हें पूरी तरह त्यागना संभव नहीं है लेकिन संतुलित उपयोग अवश्य संभव है। डिजिटल डिटॉक्स का अर्थ तकनीक से भागना नहीं बल्कि उसे नियंत्रित करना है। यदि हम अपने समय का सही प्रबंधन करें और स्क्रीन टाइम को सीमित करें तो जीवन अधिक स्वस्थ, शांत और सार्थक बन सकता है। आज की पीढ़ी के लिए यह संदेश सबसे महत्वपूर्ण है कि असली जीवन स्क्रीन पर नहीं, बल्कि अपने परिवार, दोस्तों और समाज के साथ जीने में है। इसलिए समय-समय पर डिजिटल डिटॉक्स अपनाकर हम न केवल खुद को बल्कि आने वाली पीढ़ियों को भी एक स्वस्थ और संतुलित जीवन दे सकते हैं।
डा वीरेन्द्र भाटी मंगल