
उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि बेंगलुर शहर के बीचोंबीच स्थित एेितहासिक बेऑल्यू एस्टेट पर कर्नाटक का कोई अधिकार नहीं है क्योंकि मैसूरू के दीवान ने करीब 117 वर्ष पहले इसे प्रथम राजकुमारी की ओर से खरीदा था।
बेंगलूर के पैलेस रोड़ में 24 एकड़ में फैला यह एस्टेट एक विरासत संपत्ति है और अब इस स्थान में एक होटल, व्यापारिक इमारतें और मकान बने हुए हैं उच्चतम न्यायालय ने कर्नाटक भूमि राजस्व कानून,1964 की धारा 67 के तहत भूमि पर काबिज लोगों पर कार्रवाई करने के राज्य सरकार के आदेश को रद्द करने वाले कर्नाटक उच्च न्यायालय के एकल न्यायाधीश वाली पीठ का आदेश बहाल कर दिया।
कर्नाटक भूमि राजस्व कानून 1964 की धारा 67 के अनुसार वह भूमि जो कि किसी की संपत्ति नहीं है वह सरकार की है।
न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की पीठ ने कहा कि मूल पट्टे के जारी होने के 100 वर्ष पूरे होने और राज्य द्वारा इस एस्टेट की अधिकतर भूमि को अपने अधिकार में लेने के बाद ,‘‘ हम सरकार को यह अपील करने की इजाजत नहीं दे सकते कि मूल पट्टा धोखाधड़ी है अथवा बाद में हुए सभी हस्तांतरण कपटपूर्ण है और, इसलिए यह निर्थक है।’’ पीठ ने कहा, ‘‘यह व्यवस्था दी जाती है कि ‘बेऑल्यू’ एस्टेट को मैसूरू के दीवान ने प्रथम राजकुमारी की तरफ से खरीदा था और इसके लिए धन प्रथम राजकुमारी के व्यक्तिगत कोष से दिया गया था, इसलिए इस संपत्ति पर कर्नाटक राज्य का कोई अधिकार नहीं है।’’ न्यायालय ने कहा, ‘‘मैसूर सरकार ने आजादी के पहले और बाद में कुल 24 एकड़ और 12 गुंथ भूमि में से 20 एकड़ से अधिक भूमि को अपने अधिकार में ले लिया है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘ किसी ने कोई अपत्ति नहीं दर्ज कराई। अगर भूमि राज्य की थी तो राज्य क्यों अपनी ही भूमि को अधिग्रहित करेगा? इस प्रश्न का कोई उत्तर नहीं दिया गया।’’ पीठ ने कहा, ‘‘इसलिए हमारा मानना है कि एकल न्यायाधीश वाली पीठ का आदेश कि धारा 67 के तहत कार्रवाई ‘अधिकार क्षेत्र’ से बाहर है न्यायोचित था। हमारा यह भी मानना है कि कार्रव़ाई सीमा अवधि से बाहर है।’’
( Source – PTI )