पुस्तकें हमारे चित्त को तृप्त करती है – प्रो.कीर्ति पाण्डेय

डॉ. सौरभ मालवीय की किताब का लोकार्पण

भागदौड़ के समय में संतों के विषय में पढ़कर मन को शांति प्राप्त होती है। हमारे पास संतों की शिक्षाओं एवं उनके उपदेशों के रूप में ज्ञान का अपार भंडार है। भारतीय ज्ञान परम्परा भारत का जीवन दर्शन है। हमारे संत हमारे पथप्रदर्शक है।
भारत में अनेक संत हुए हैं, जिन्होंने विश्व को मानवता का संदेश दिया। संतों की शिक्षाएं आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं, जितनी उस समय थीं जब उन्होंने उपदेश दिए थे। आज जब लोग पश्चिमी सभ्यता के पीछे भाग रहे हैं तथा जीवन मूल्यों को भूल रहे हैं, ऐसी परिस्थिति में संतों की शिक्षाओं का प्रचार-प्रसार अत्यंत आवश्यक हो जाता है। विद्या भारती पूर्वी उत्तर प्रदेश क्षेत्रीय साधारण सभा की धम्मोर बैठक में उक्त बातें उत्तर प्रदेश शिक्षा सेवा चयन आयोग की अध्यक्ष प्रो.कीर्ति पाण्डेय ने डॉ.सौरभ मालवीय द्वारा लिखित पुस्तक भारतीय संत परम्परा : धर्मदीप से राष्ट्रदीप के लोकार्पण के अवसर पर कही।

इस पुस्तक में 16 संतों के जीवन एवं उनके उपदेशों को प्रस्तुत किया गया है, जिनमें रामचरित मानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास, महान कृष्ण भक्त सूरदास, महान भक्त कवि रसखान, कबीर, रैदास, मीराबाई, नामदेव, गोरखनाथ, तुकाराम, मलूकदास, धनी धरमदास, धरनीदास, दूलनदास, भीखा साहब एवं चरणदास सम्मिलित हैं। इन सभी संतों ने देश में भक्ति की गंगा प्रवाहित की। इनकी रचनाओं ने लोगों में भक्ति का संचार किया। इसमें ऐसे भी संत हैं, जिन्होंने गृहस्थ जीवन में रहकर ईश्वर की भक्ति की। उन्होंने अपने परिवार एवं परिवारजनों के प्रति अपने सभी दायित्वों का निर्वाह किया। इनमें ऐसे भी संत हैं, जिन्होंने सांसारिक संबंधों से नाता तोड़कर अपना संपूर्ण जीवन प्रभु की भक्ति में व्यतीत कर दिया।“ संतों ने कभी किसी को अपने पारिवारिक कर्तव्यों से विमुख होने के लिए नहीं कहा, अपितु अपने संपूर्ण कर्तव्यों का पालन करते हुए ईश्वर की साधना करने का संदेश दिया। डॉक्टर मालवीय की यह पुस्तक उपयोगी सिद्ध होगी।
इस अवसर पर विद्या भारती के क्षेत्रीय संगठन मंत्री हेमचंद्र जी , डॉ. राममनोहर जी, डॉ.जय प्रताप सिंह , राजबहादुर दीक्षित समेत अनेक लोग उपस्थित थे।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here