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ग्लोबल कार्बन बजट रिपोर्ट ने चेताया, 1.5°C की सीमा अब लगभग पार


जब पूरी दुनिया जलवायु संकट से निपटने के नए रास्ते तलाश रही है, ग्लोबल कार्बन प्रोजेक्ट की नई रिपोर्ट ने एक बार फिर चेतावनी दी है। वर्ष 2025 में जीवाश्म ईंधनों से होने वाले कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) एमिशन में 1.1% की वृद्धि दर्ज की गई है, जिससे यह 38.1 अरब टन के नए रिकॉर्ड स्तर पर पहुँच गया है।

रिपोर्ट कहती है कि ऊर्जा प्रणालियों का डीकार्बोनाइजेशन कई देशों में तेज़ी से हो रहा है, लेकिन यह अब भी बढ़ती ऊर्जा मांग की भरपाई करने के लिए पर्याप्त नहीं है। भूमि उपयोग परिवर्तन (जैसे वनों की कटाई) से होने वाले एमिशन में गिरावट के बावजूद कुल एमिशन में कमी नहीं आई।

1.5°C की सीमा लगभग खत्म
वैज्ञानिकों का कहना है कि अब वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5°C तक सीमित रखना “लगभग असंभव” हो गया है। एक्सेटर यूनिवर्सिटी के ग्लोबल सिस्टम्स इंस्टिट्यूट के प्रोफेसर पियरे फ्रिडलिंगस्टीन ने कहा, “वर्तमान एमिशन दर पर 1.5°C का कार्बन बजट अगले पाँच सालों से पहले ही खत्म हो जाएगा।” उन्होंने चेताया कि जलवायु परिवर्तन अब धरती और महासागरों की प्राकृतिक कार्बन अवशोषण क्षमता को भी कम कर रहा है।

रॉयल सोसाइटी की प्रोफेसर कोरीन ले क़्वेरे ने कहा, “हालांकि कई देशों ने आर्थिक विकास के साथ अपने एमिशन कम किए हैं, लेकिन प्रगति अब भी बहुत नाजुक है। कार्बन सिंक्स की क्षमता पर जलवायु परिवर्तन का असर चिंताजनक है।”

रिपोर्ट की मुख्य बातें

  • चीन का एमिशन 0.4% बढ़ा, पर यह वृद्धि हाल के वर्षों की तुलना में धीमी रही क्योंकि नवीकरणीय ऊर्जा में भारी बढ़ोतरी हुई।
  • भारत का एमिशन 1.4% बढ़ा, लेकिन समय से पहले आई मॉनसून और सौर ऊर्जा के तेज़ विस्तार ने कोयले की खपत को सीमित रखा।
  • अमेरिका और यूरोपीय संघ में ठंडे मौसम की वजह से एमिशन में क्रमशः 1.9% और 0.4% की बढ़ोतरी हुई।
  • जापान का एमिशन 2.2% घटा, वहीं बाकी दुनिया में यह 1.1% बढ़ा।
  • तेल, गैस और कोयले—तीनों से एमिशन में इज़ाफा देखा गया।
  • विमानन क्षेत्र में एमिशन 6.8% बढ़ा, जो कोविड-19 से पहले के स्तर से भी ऊपर चला गया।

अमेज़न और दक्षिण एशिया पर संकट गहराया
रिपोर्ट ने बताया कि दक्षिण-पूर्व एशिया और दक्षिण अमेरिका के बड़े हिस्सों में जंगल अब कार्बन अवशोषक नहीं रहे, बल्कि कार्बन एमिशन स्रोत बन गए हैं। अमेज़न में वनों की कटाई में कुछ सुधार हुआ है, पर 2024 की आग ने दिखाया कि यह इकोसिस्टम अब भी बेहद संवेदनशील है।

भारतीय संदर्भ में संकेत
भारत की कहानी रिपोर्ट में उम्मीद और चुनौती दोनों की मिसाल है। जहाँ एमिशन वृद्धि अपेक्षाकृत कम रही, वहीं बिजली की माँग और तापमान में बढ़ोतरी आने वाले वर्षों में नई चुनौतियाँ लाएंगी। भारत ने एमिशन तीव्रता में कमी के अपने लक्ष्यों को समय से पहले हासिल करने की दिशा में प्रगति दिखाई है, लेकिन ग्लोबल ट्रेंड बताता है कि अकेले कोई देश इस संकट से नहीं निपट सकता।

विज्ञान का साफ संदेश
CICERO के शोधकर्ता ग्लेन पीटर्स ने कहा, “पेरिस समझौते को हुए दस साल हो गए, और अब भी जीवाश्म ईंधनों से एमिशन लगातार बढ़ रहा है। देशों को अब वाकई अपनी प्रतिबद्धताओं को कार्रवाई में बदलने की ज़रूरत है।”

रिपोर्ट के मुताबिक, 2025 में वायुमंडल में CO₂ की सांद्रता 425.7 पार्ट्स पर मिलियन (ppm) तक पहुँच जाएगी, जो औद्योगिक युग से पहले के स्तर से 52% ज़्यादा है।

क्लाइमेट एक्शन की असली परीक्षा
ग्लोबल कार्बन बजट 2025 बताता है कि अब वक्त वादों का नहीं, क्रियान्वयन का है। 1.5°C की सीमा को बचाना मुश्किल है, लेकिन अगर दुनिया तुरंत और निर्णायक कदम उठाए—तो अब भी भविष्य बदला जा सकता है।