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दुनिया में कोयले की रफ्तार थमी, IEA रिपोर्ट ने दिखाया बड़ा बदलाव

पिछले एक दशक में दुनिया भर में कोयले की मांग जिस रफ्तार से बढ़ रही थी, वह अब साफ तौर पर थमती दिख रही है. अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी यानी IEA की नई Coal Market Report 2025 के मुताबिक, 2015 से 2024 के बीच वैश्विक कोयला मांग की बढ़ोतरी, 2005 से 2014 के मुकाबले आधे से भी कम रह गई है.

IEA के आंकड़े बताते हैं कि इस साल दुनिया में कोयले की मांग करीब 0.5 प्रतिशत बढ़ी है, लेकिन तस्वीर का बड़ा हिस्सा यह है कि पिछले दस सालों में कोयले की मांग की कुल बढ़त, पेरिस समझौते से पहले वाले दशक की तुलना में 50 प्रतिशत से ज्यादा कम रही है.

इस बदलाव के केंद्र में है चीन. वही देश जिसने एक समय वैश्विक कोयला बाजार को रफ्तार दी थी, अब उसी की वजह से कोयले की रफ्तार थम रही है. रिपोर्ट के अनुसार चीन में कोयला आधारित बिजली उत्पादन की वृद्धि पिछले तीन साल से सपाट बनी हुई है. इसकी बड़ी वजह है रिकॉर्ड स्तर पर सौर और पवन ऊर्जा की क्षमता का जुड़ना.

IEA के आंकड़ों के मुताबिक, यह पहली बार है जब चीन में बिजली की कुल मांग बढ़ने के बावजूद कोयला आधारित बिजली उत्पादन में गिरावट देखी जा रही है. विशेषज्ञ इसे अस्थायी झटका नहीं, बल्कि ऊर्जा व्यवस्था में हो रहे गहरे बदलाव के तौर पर देख रहे हैं.

ग्लोबल एनर्जी मॉनिटर की कोल प्रोग्राम डायरेक्टर क्रिस्टीन शीरर कहती हैं कि जब चीन की कोयला मांग बढ़ना बंद करती है, तो दुनिया का कोयला बाजार भी उसी के साथ रुक जाता है. उनके मुताबिक ताज़ा IEA डेटा यह दिखाता है कि यह कोई चक्रीय उतार-चढ़ाव नहीं, बल्कि नवीकरणीय ऊर्जा के रिकॉर्ड विस्तार और भारी उद्योग में बदलाव से जुड़ा एक संरचनात्मक परिवर्तन है.

धातुकर्म कोयले यानी स्टील बनाने में इस्तेमाल होने वाले कोयले की मांग भी अब ठहराव के संकेत दे रही है. IEA रिपोर्ट के अनुसार वैश्विक स्तर पर धातुकर्म कोयले की मांग लगातार दूसरे साल घटी है. चीन में नए ब्लास्ट फर्नेस प्रोजेक्ट्स पर ब्रेक और कम कार्बन स्टील तकनीकों की ओर झुकाव इसकी बड़ी वजह मानी जा रही है.

सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर के लीड एनालिस्ट लॉरी मायलिविर्टा के अनुसार, चीन में कोयला आधारित बिजली उत्पादन पिछले 18 महीनों से घट रहा है और कच्चे स्टील का उत्पादन चार साल से नीचे है. यह रिकॉर्ड में सबसे लंबी गिरावट है. उनका कहना है कि स्वच्छ ऊर्जा के तेज़ विस्तार और अर्थव्यवस्था में रियल एस्टेट पर निर्भरता कम होने से चीन की कोयला मांग पर स्थायी असर पड़ा है.

इस बदलाव का असर कोयला निर्यातक देशों पर भी पड़ने लगा है. ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया, रूस, मंगोलिया, कनाडा और अमेरिका जैसे देश लंबे समय से चीन की मांग पर निर्भर रहे हैं. अब जब चीन में मांग ठहर रही है, तो इन देशों के लिए जोखिम बढ़ रहा है.

मार्केट फोर्सेज के ब्रेट मॉर्गन के मुताबिक, जैसे-जैसे ऊर्जा संक्रमण तेज़ होगा, कोयला निर्यातकों और उनके निवेशकों के लिए खतरे और गहरे होते जाएंगे. उनका कहना है कि कोयले पर दांव लगाना अब तेजी से जोखिम भरा सौदा बनता जा रहा है.

भारत और दक्षिण-पूर्व एशिया को लेकर अक्सर यह सवाल उठता है कि क्या ये क्षेत्र चीन की कमी पूरी कर सकते हैं. लेकिन एनर्जी शिफ्ट इंस्टीट्यूट के मैनेजिंग डायरेक्टर पुत्रा अधिगुना का कहना है कि अब वैसा कोई दूसरा चीन मिलना मुश्किल है. उनके मुताबिक कोयले के मुकाबले स्वच्छ ऊर्जा लागत, ऊर्जा सुरक्षा और जलवायु तीनों मोर्चों पर तेज़ी से आगे बढ़ रही है.

भारत के संदर्भ में भी IEA रिपोर्ट के संकेत अहम हैं. ई3जी की मधुरा जोशी कहती हैं कि भारत ने नवीकरणीय ऊर्जा में तेज़ प्रगति की है और 2025 एक रिकॉर्ड साल साबित हो सकता है. अगर यह रफ्तार बनी रही और स्टोरेज के साथ विस्तार हुआ, तो भारत अपने विकास, ऊर्जा सुरक्षा और जलवायु लक्ष्यों को एक साथ साध सकता है.

कुल मिलाकर IEA की यह रिपोर्ट साफ इशारा करती है कि वैश्विक कोयला बाजार अब पुराने दौर में वापस नहीं लौटने वाला. कोयले की कहानी खत्म नहीं हुई है, लेकिन उसकी दिशा और रफ्तार दोनों बदल चुकी हैं.