त्रिदिवसीय व्याख्यानमाला
वसुधैव कुटुम्बकम ही है अशांत विश्व में शांति का प्राचीन मंत्र
– योगेश कुमार गोयल
नई दिल्ली। योगेश कुमार गोयल। भारतीय संस्कृति का शाश्वत आदर्श ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ आज के अशांत विश्व में शांति का सबसे प्रासंगिक संदेश है। इसी विचार को केंद्र में रखकर ‘भारत अंतर्राष्ट्रीय सांस्कृतिक केंद्र गुरुग्राम, अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी पत्रिका ‘चाणक्य वार्ता’ और दिल्ली के हंसराज कॉलेज के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित छठी अंतर्राष्ट्रीय श्रीमती कांति देवी जैन व्याख्यानमाला 19 से 21 सितंबर तक तीन दिवसीय ऑनलाइन संगोष्ठी के रूप में संपन्न हुई। विषय था, ‘अशांत विश्व में वसुधैव कुटुम्बकम की प्रासंगिकता।’ तीन दिवसीय इस वैचारिक संगोष्ठी में भारत सहित विश्व के अनेक देशों के विद्वानों, शिक्षाविदों, राजनयिकों और सामाजिक चिंतकों ने भाग लिया और एक स्वर में माना कि वर्तमान समय में शांति का एकमात्र मार्ग वसुधैव कुटुम्बकम ही है। इस संगोष्ठी का संचालन अभिषेक त्रिपाठी, आयरलैंड द्वारा किया गया।
नागालैंड के उच्च शिक्षा एवं पर्यटन मंत्री तेमजीन इमना अलोंग ने उद्घाटन सत्र में बतौर मुख्य अतिथि कहा कि इंसान जानवरों से भी अधिक लड़ाकू हो गया है। युद्धरत राष्ट्रों ने मानवता को शर्मसार कर दिया है जबकि वसुधैव कुटुम्बकम ईश्वर का संदेश है कि सब मिलजुलकर रहें। उन्होंने महामारी के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा विश्वभर को दी गई मदद को इस आदर्श का वास्तविक उदाहरण बताया। संगोष्ठी में थाईलैंड से शिखा रस्तोगी का कहना था कि भारत विश्व के लिए सोचता है। आयरलैंड में भारत के राजदूत अखिलेश मिश्रा ने भारतीय ऋषि-मुनियों की शांति परंपरा को आज की आवश्यकता बताया। उज्बेकिस्तान से प्रो. उल्फत मुखीबोवा ने इसे सहज मानवीय करुणा करार दिया जबकि प्रो. मौना कौशिक ने भारतीय व यूरोपीय दर्शन के सेतु के रूप में देखा।
व्याख्यानमाला के दूसरे दिन बतौर मुख्य अतिथि भारत के पूर्व विदेश सचिव शशांक ने कहा कि शांति को खतरा कमजोरों से नहीं बल्कि ताकतवर देशों से है। आज वर्चस्व की होड़ ने दुनिया को संकट में डाला है। उन्होंने मोदी की रूस-यूक्रेन संघर्ष को रोकने की कोशिशों का उल्लेख करते हुए कहा कि भारत को कूटनीति और आत्मरक्षा के साथ विश्व शांति का नेतृत्व करना होगा। ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती भाषा विश्वविद्यालय, लखनऊ के कुलपति प्रो. अजय तनेजा ने युद्धों को वर्चस्व और बाजार की लड़ाई बताया और वसुधैव कुटुम्बकम की आवश्यकता पर बल दिया। अंतर्राष्ट्रीय सहयोग परिषद के महासचिव श्याम परांडे ने प्रवासी भारतीयों को इस संदेश का वास्तविक वाहक कहा। जापान से डॉ. रमा पूर्णिमा शर्मा, बेलफास्ट से प्रो. सतीश कुमार और साउथ कोरिया से आशुतोष मिश्रा ने भारत की सांस्कृतिक धरोहर को वैश्विक शांति का मार्ग बताया।
व्याख्यानमाला के अंतिम सत्र में नागालैंड के पूर्व मुख्य सचिव जे. आलम ने कहा कि वसुधैव कुटुम्बकम केवल आदर्श नहीं बल्कि आज की वैश्विक चुनौतियों का विजन है। जलवायु परिवर्तन, महामारी, भू-राजनीतिक तनाव और सामाजिक विभाजन का समाधान इसी से संभव है। साउथ सूडान में भारत के राजदूत विष्णु शर्मा ने जी-20 की थीम ‘वन अर्थ, वन फैमिली, वन फ्यूचर’ को भारत की सांस्कृतिक देन बताया। रूस की डॉ. सरोज शर्मा ने इसे 1960 में जन मैत्री विश्वविद्यालय की स्थापना से जोड़ा। नेपाल से अधिवक्ता हेमंत झा और आजमगढ़ विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. संजीव कुमार ने मोदी द्वारा इस आदर्श को पुनः वैश्विक विमर्श का हिस्सा बनाने की सराहना की। बुंदेलखंड विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. मुकेश पांडेय ने कहा कि मानव कहीं का भी हो, इंसान है, यही भारत का संदेश है। तीनों दिन की चर्चाओं में यह निष्कर्ष निकला कि अशांत विश्व को शांति और स्थिरता की ओर ले जाने के लिए वसुधैव कुटुम्बकम ही एकमात्र अकाट्य मंत्र है, जिसे भारत ने सदैव जिया और दुनिया को दिखाया है।
तीनों दिनों की व्याख्यानमाला की प्रस्तावना एवं विषय-परिचय श्रीमती कांति देवी जैन स्मृति न्यास के अध्यक्ष डॉ. अमित जैन ने प्रस्तुत किए जबकि अध्यक्षीय संबोधन लक्ष्मीनारायण भाला द्वारा दिया गया। इस महत्वपूर्ण आयोजन में सहयोगी संस्थाओं के रूप में ओडिशा केंद्रीय विश्वविद्यालय, कोरापुट; बुंदेलखंड विश्वविद्यालय, झांसी; उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय, हल्द्वानी; महाराजा सुहेलदेव राज्य विश्वविद्यालय, आज़मगढ़; ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती भाषा विश्वविद्यालय, लखनऊ; अंतर्राष्ट्रीय सहयोग परिषद, नई दिल्ली तथा नागरी लिपि परिषद, नई दिल्ली ने सक्रिय भागीदारी निभाई।