नई दिल्लीः रेलवे बोर्ड ने अपनी नीति में बदलाव करते हुए यात्री रेलगाड़ियों की निगरानी का अधिकार डिवीजन को दे दिया है। अभी तक यह काम जोनल रेलवे के अधिकारी कर रहे थे। विशेषज्ञों का कहना है कि इस निर्णय से कोहरे में रेलगाड़ियों की रफ्तार बनाए रखने में मदद मिलेगी और वे समय पर अपने गंतव्य पर पहुंच सकेंगी।
रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष अश्वनी लोहानी ने 3 दिसंबर को रेलगाड़ियों के समयपालन की रिपोर्टिंग का अधिकार सभी 68 डिवीजन को देने के निर्देश दिए। यह पहली बार होगा जब डिवीजन स्तर पर ट्रेन समयपालन की निगरानी जोनल रेलवे की बजाय डिवीजन से कराई जाएगी। आदेश में कहा गया है कि रेलवे सूचना प्रणाली (क्रिस) सभी डिवीजन के एडीआरएम के यूजर आईडी व पासवर्ड सिस्टम में अपलोड कर दे। ताकि ट्रेन समयपालन निगरानी की प्रणाली में उनका दखल संभव हो।
इसमें उल्लेख है कि रेलगाड़ियों को समय पर चलाने, कर्मियों की जवाबदेही तय करने, प्रतिदिन रिपोर्ट तैयार करने के अधिकार एडीआरएम के पास होंगे। रेलवे विशेषज्ञों का कहना है कि रेलगाड़ियों को चलाने का काम डिवीजन स्तर पर किया जाता है। नियंत्रण कक्ष के जरिये यात्री रेलगाड़ियों और मालगाड़ियों को नियंत्रित और संचालित किया जाता है। लेकिन यात्री रेलगाड़ियों के समयपालन की निगरानी का काम चीफ ऑपरेशनल मैनेजर (सीओएम) के पास था। यहीं से रेलगाड़ियों के समय पर चलाने व देरी होने पर कार्रवाई तय की जाती थी। ताजा फैसले से सभी डिवीजन में रेलगाड़ियों को समय पर चलाने की प्रतिस्पर्धा होगी। समस्त एडीआरएम में बेहतर समन्वय से समयपालन दुरुस्त होगा।
जीपीएस से फायदा होगा
रेलवे बोर्ड ने इस बार 15 दिसबंर से रेलगाड़ियों को अधिकतम 75 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार पर चलाने के आदेश दिए हैं। जबकि हर साल रेलगाड़ियों को 50-60 किलोमीटर की रफ्तार पर चलाया जाता रहा है। रेलवे बोर्ड ने यह फैसला अधिकांश ट्रेन इंजनों के ड्राइवरों को फॉग सेफ डिवाइस देने के बाद लिया है। जीपीएस आधारित इस उपकरण की मदद से ड्राइवरों को सिगनल का पता पहले ही चल जाता है और ट्रेन धीमी नहीं करनी पड़ती।