नई दिल्लीः उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को अपने फैसले में केरल के सबरीमाला स्थित अय्यप्पा स्वामी मंदिर में सभी आयु वर्ग की महिलाओं को प्रवेश की अनुमति दे दी। प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय पीठ ने 4:1 के बहुमत के फैसले में कहा कि केरल के सबरीमाला मंदिर में रजस्वला आयु वर्ग की महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध लैंगिक भेदभाव है और यह परिपाटी हिन्दू महिलाओं के अधिकारों का उल्लंघन करती है।
न्यायमूर्ति आर. एफ. नरीमन और न्यायमूर्ति डी. वाई. चन्द्रचूड़ अपने फैसलों में प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा और न्यायमूर्ति ए. एम. खानविलकर के फैसले से सहमत हुए। न्यायमूर्ति इन्दु मल्होत्रा ने बहुमत से अलग अपना फैसला पढ़ा। पांच सदस्यीय पीठ ने चार अलग-अलग फैसले लिखे ।
1- न्यायालय ने 4:1 के बहुमत के फैसले के साथ ही सभी आयु वर्ग की महिलाओं को सबरीमाला स्थित अय्यप्पा मंदिर में प्रवेश की अनुमति दी ।
2-सबरीमाला मंदिर के दरवाजे सभी के लिए खोले जाने चाहिए, सबरीमाला की परंपरा असंवैधानिक
3- प्रधान न्यायाधीश ने कहा, मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध लैंगिक भेदभाव। सबरीमाला मंदिर की परंपरा हिन्दू महिलाओं के अधिकारों का उल्लंघन ।
4- न्यायमूर्ति आर. एफ. नरीमन और न्यायमूर्ति डी. वाई. चन्द्रचूड़ प्रधान न्यायाधीश के फैसले से इत्तेफाक रखते हैं, जबकि न्यायमूर्ति इन्दु मल्होत्रा ने उनसे अलग अपना फैसला लिखा है।
5- दोतरफा नजरिए से महिला की गरिमा को ठेस पहुंचती है
6- चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा- लिंग के आधार पर श्रद्धालुओं के साथ पूजा के अधिकार में भेदभाव नहीं किया जा सकता है।
7- हमारी संस्कृति में महिलाओं का स्थान आदरणीय। दोतरफा नियम से महिलाओं की गरिमा को ठेस।
8- पूजा का अधिकार मौलिक अधिकार है
9-10 से 50 वर्ष की आयु की महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध संवैधानिक सिद्धांतों का है उल्लंघन
10-शारीरिक रचना के आधार पर भेदभाव असंवैधानिक