
कुछ विषेशज्ञों का मत है कि केंद्र सरकार द्वारा पेश की जा रही नयी वेतन संहिता से संगठित क्षेत्र में नए रोजगार के अवसर बाधित होंगे और कुल मिला कर काम पर भर्तियों का माहौल बिगड़ेगा।
उल्लेखनीय है कि सरकार ने श्रमिकों को पूरे देश में सभी क्षेत्रों में न्यूनतम वेतन सुनिश्चित कराने के उद्येश्य से यह संहिता तैयार की है। इसे चार अलग-अलग कानूनों के प्रावधानों को समन्वित करके तैयार किया गया है। मंत्रिमंडल इसे 26 जुलाई को मंजूरी दे चुका है।
विशेषज्ञों का कहना है कि हर राज्य, अलग-अलग प्रकार के लोगों तथा क्षेत्रों के लिए सार्वत्रिक एक जैसे वेतन का प्रावधान अनुचित है।
टीमलीज सर्विसेज की सह संस्थापक एवं कार्यकारी उपाध्यक्ष ऋतुपर्णा चक्रवर्ती ने कहा कि यह विधेयक चार अलग-अलग कानूनों को व्यापक रूप से तर्कसंगत बना कर एक कानून में एकीकृत करने के लिए प्रस्तावित था। पर इसे धकेल कर सार्वत्रिक एकसमान वेतन विधेयक बना दिया गया है जो हैरान करने वाला है।
उन्होंने कहा कि श्रमकानूनों में किसी भी सुधार का एक मात्र उद्देश्य यह होना चाहिए कि संगठित क्षेत्र में नौकरियों के अवसरों का विस्तार हो।
उन्होंने कहा कि इससे तो यही होगा कि कंपनियां ऑटोमेशन यानी यंत्रीकरण को बढ़ावा देंगी और रोजगार सृजन बाधित होगा।
इस प्रस्तावित संहिता में हर श्रमिक के लिए एक न्यूनतम वेतन अनिवार्य करने का प्रावधान है। इस समय 18,000 रुपये मासिक तक का वेतन पाने वालों पर केंद्र और राज्यों द्वारा घोषित न्यूनतम वेतन के प्रावधान लागू होते हैं। नयी संहिता उससे ऊपर के वेतन वालों के संबंध में भी लागू होगी।
हिंदुजा ग्लोबल सोल्यूशन्स के भारतीय व्यवसाय के प्रमुख और स्वास्थ्य कारोबार के अध्यक्ष रमेश गोपालन ने कहा कि नये कानून से श्रमिकों का जीवन स्तर सुधारने में सहायक होगा पर छोटे और मझोले शहरों-कस्बो में भर्ती के माहौल पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
( Source – PTI )