उत्तम मुखर्जी

देश के महानगरों और बड़े शहरों में जब सांसें अटक जा रही है तब एक उपेक्षित राज्य झारखण्ड ज़िन्दगी में सांसें भरने में लगा है। दिल्ली , सूरत , कानपुर और लखनऊ शहर जब हांफ रहे थे लोक उपक्रम स्टील ऑथोरिटी की इकाई बोकारो स्टील लिमिटेड ने लिक्विड मेडिकल ऑक्सीजन भेजकर सरकारी कम्पनी की अहमियत से मुल्क को वाकिफ कराया था। इस बार एक निजी कम्पनी आगे आई है। टाटा स्टील ने 48 दिनों में 30 हजार टन लिक्विड मेडिकल ऑक्सीजन भेजकर न सिर्फ कीर्तिमान स्थापित किया है बल्कि यह भी संदेश दिया है कि लोक उपक्रम हो या प्राइवेट सेक्टर सोच मानवीय है तो सेवा की राह खुद शुरू हो जाती है।
कभी लोक उपक्रम को भ्रष्टाचार का अड्डा बताकर उसे बेचने की बात चलती है तो कभी निजी सेक्टर को भी शोषण और लूट का जरिया समझा जाता है। हालांकि इंसानियत की भावना होने पर ये बाधाएं सामने नहीं आती हैं।
स्टील ऑथोरिटी एक बड़ा सरकारी उपक्रम है। कुछ समय पहले तक सरकारी स्टील कम्पनी ने 36,747 टन ऑक्सीजन की आपूर्ति कर चुका है। पड़ोसी राज्य बंगाल के दुर्गापुर स्थित एलाय स्टील भी कोविड संघर्ष में सांसों की रखवाली कर रहा है। हालांकि केंद्र सरकार सलेम स्टील समेत जिन तीन कम्पनियों का शेयर सौ प्रतिशत बेचना चाहती है उसमें दुर्गापुर की एलाय स्टील भी है।
टाटा स्टील सिर्फ मुनाफा कमानेवाली कम्पनी भर नहीं है। देश के हर संकट के समय टाटा घराना खड़ा रहता है। झारखण्ड के लिए गर्व की बात है इसी टाटा समूह के हीरो जमशेदजी के नाम पर यह एक शहर बसा हुआ है। एक उद्योग खड़ा है जो देश को हर अंधेरे से जूझते हुए रौशनी देता है।
अभी देश में कोविड संकट का दौर है। ऑक्सीजन के अभाव में लोगों की सांसें टूट रही हैं। ऐसे में ऑक्सीजन संकट से जूझ रहे देश में टाटा फिर एकबार खड़ा है। इस बार 1 अप्रैल से 18 मई के बीच टाटा स्टील ने देश के विभिन्न अस्पतालों को 30,000 टन लिक्विड मेडिकल ऑक्सीजन उपलब्ध कराया है। मात्र 48 दिनों में देश के कई राज्यों और हिस्सों में स्थित हॉस्पिटलों में यह ऑक्सीजन पहुंचाया गया है।
कम्पनी ने इस मुहिम में साथ देने के लिए रेलवे समेत अन्य एजेंसियों का भी शुक्रिया अदा किया है तथा कहा है कि हर मुसीबत में टाटा स्टील मजबूती के साथ देश के साथ खड़ा रहेगा। अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल में भी कम्पनी ने इसका जिक्र किया है।
झारखण्ड भी कोविड से जंग लड़ रहा है। यहां भी अस्पतालों की कमी है।बेड नहीं है। वेंटिलेटर का अभाव है, लेकिन खुद संकट झेलकर भी आदिवासी बहुल यह राज्य देश में टूटती सांसों की रखवाली कर रहा है।