राम को पाने के लिए राम को मन में बसाना होगा
-सियाराम के विवाह का साक्षी बना दशहरा मैदान, गूजां जय-जय सियाराम
नीमच। राम नाम को जाप करने से राम नहीं मिलेंगे। राम को पाने के लिए मन में राम को बसाना होगा। जैसे महिला सिर पर गगरी उठाए संभल कर चलती है, कहीं गिर न जाए। वैसे ही भक्त अपने चित्त में प्रभु राम को संभाल कर चलते हैं और जीवन आनंद से भर लेते हैं। प्रत्येक अच्छे बुरे व्यक्ति का एक ही लक्ष्य होता है। सबको आनंद चाहिए। ये आनंद अजब खिलौना है, मिल जाए तो मिट्टी और न मिले तो सबकुछ। जब तक वृत्ति बटोरने की हैतब तक व्यक्ति दरिद्र रहता है, लेकिन जिस दिन बटोरने की वृत्ति का त्याग कर दिया, उस दिन जीवन परमानंद से भर जाएगा।
ये प्रेरक विचार दीदी माँ साध्वी ऋतंभराजी ने बुधवार को व्यक्त किए, वे स्व. कांतादेवी-प्रेमसुखजी गोयल व स्व. रोशनदेवी-मदनलालजी चौपड़ा की स्मृति में गोयल एवं चौपड़ा परिवार द्वारा वात्सल्य सेवा समिति, अग्रवाल गु्रप नीमच व मंडी व्यापारी संघ के तत्वावधान में दशहरा मैदान नीमच में आयोजित श्रीराम कथा के चौथे दिन बोल रही थी। उन्होंने कि जब तक öदय में पाने की वृत्ति है तब तक गागर नहीं भरेगी, पर जिस दिन öदय ने पाने की लालसा को छोड़ दिया, उस दिन गागर छलक जाएगी और मन आनंदमय हो जाएगा। दीदी माँ ने कहा कि आंसू भी अद्भुत होते हैं। जब मन दु:खी होता है तो आंखों से छलक जाते हैं और जब मन आनंद से भरा होता है तब भी आंखंे आंसू से आंसू भर जाती है। दीदी माँ ने राम-लक्ष्मण और भरत शत्रुध्न के प्रसंग की व्याख्या करते हुए कहा कि जैसे राम की परछाई लक्ष्मण थे, उसी प्रकार भरत की परछाई शत्रुध्न थे। उन्हांेने शत्रुध्न नाम के अर्थ के बारे में बताया कि जिसके दिल में शत्रुध्न बैठ जाएवह व्यक्ति काम, क्रोध, माया, मोह से दूर हो जाता है। दीदी माँ ने कहा कि बिन वजह प्यार बांटना öदय में बहुत संुदर अहसास को जन्म देता है। वो लोग अभागे होते हैं जो अपनी संतानों को छोड़ देते हैं। उन्होंने कहा कि मुझे ख्याल आता है कि जिन्होंने अपने कलेजे के टूकड़े को झाड़ियों में फेंक दिया, मिट्टी में दफना दिया। ऐसा करने की जरूरत क्यों पड़ी। दीदी माँ ने कहा कि जब-जब किसी फूल को किसी डाल से टूटते देखती हÿँ मन पीड़ा से भर जाता है। दीदी माँ ने देश में बढते जा रहे नारी निकेतन, वृद्धाश्रम और अनाथालय के बारे में कहा कि अनाथ आश्रम की स्थिति वैसी है, जैसे किसी पौधे का गमला बार-बार बदलना। जब बच्चा छोटा रहता है तब उसे बाल गृह में रखा जाता है। कुछ बड़ा होने पर अनाथालय में और फिर 18 वर्ष का होने पर भगवान भरोसे छोड़ दिया जाता है। नारी निकेतन निष्ठुरता के परिचायक बन गए हैं, जबकि अतीतकाल में नारी निकेतन नहीं हुआ करते थे। वृद्धा आश्रम नहीं हुआ करते थे। उन्होंने कहा कि अयोध्या को त्यागने के बाद जानकी ने किसी नारी निकेतन में लवकुश को जन्म नहीं दिया। लवकुश का जन्म वाल्मीकि के आश्रम में हुआ, जिस कारण उन्हें अच्छे संस्कार मिले और वे स्वाभिमानी बने। जब ही तो उन्होंने 6 वर्ष की उम्र में श्री राम को अपने स्वाभिमान से परिचित कराया। उन्होंने कहा कि देश में न नारी निकेतन चाहिए, न ही वृद्धा आश्रम और न ही अनाथालय होना चाहिए। देश में होना चाहिए वात्सल्य धाम जहां अपनांे बिछड़ों को सहारा मिले और वे अपने पैरों पर खड़े होने लायक बने।
कथा में श्री रामकथा में राजेंद्र बंसल खंडवा, मोदी परिवार धार, संघ के शारीरिक प्रमुख विक्रमसिंह, दशपुर एक्सप्रेस के संपादक आरवी गोयल, वात्सल्स सेवा समिति के अध्यक्ष संतोष चौपड़ा, अग्रवाल ग्रुप के अध्यक्ष कमलेश गर्ग, मंडी व्यापारी संघ अध्यक्ष राकेश भारद्वाज, सत्यनारायण गोयल सत्तू, राजेश सोनी जावद, असफाक भाई सलीम भाई बोहरा समेत गोयल, चौपड़ा परिवार के सदस्य और बड़ी संख्या में श्रद्धालु मौजूद थे।
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सीता-राम के विवाह के साक्षी बने हजारों श्रद्धालु, हुए भाव विहल
श्रीरामकथा में चतुर्थ दिवस जनक नंदनी सीता और श्रीराम का विवाह प्रसंग आया तो वात्सल्य धाम दशहरा मैदान जनक नगरी मिथिला बन गया। जैसे ही सीता-राम का विवाह हुआपूरा पांडाल जयजय सियाराम के जयकारों से गूंज उठा। चारों और माहौल धर्ममय हो गया। सीता-राम पर श्रद्धालुओं ने फूलों की वर्षा कर जोरदार स्वागत किया। वरमाला के बाद सीता-राम बने कलाकर व्यासपीठ पर पहुंचे। जहां साध्वी दीदी माँ ने सियाराम की स्तुति कर सीताराम का चरण वंदन किया। इस नजारे को देख श्रद्धालु भाव विव्हल हो उठे और श्रीराम के भजनों पर झूम उठे।