डेरा सच्चा सौदा के धर्मगुरू

डेरा सच्चा सौदा के धर्मगुरूओं में मुख्यतः तीन हूजूरों का उल्लेख आता है । भारतीय वंश सम्पदा के अनुसार सात पीढियो का उल्लेख होता है लेकिन डेरा के तत्कालीन गुरू ने तीन महान विभूतियों का उल्लेख अपने वचनों में किया है, वह है बेपरवाह मस्मताना जी महराज , शाह सतनाम जी महराज और अब श्री गुरूमीत राम रहीम जी इंसा और सबसे खास बात डेरा की यह है कि तीनों में वंश परम्परा जैसा कोई रिश्ता नही है । जो सही है, वचनों पर चलता है, उसे डेरा का विस्तार करने के लिये चुना गया और उसने आगे बढाने के लिये अपना सबकुछ दांव पर लगा दिया । शायद इसलिये ही डेरा लोगों की आंख का किरकिरी बन गया । हर तरफ से फंसाने की साजिश हो रही है और कुछ कतिपय लोग चाहते है कि डेरा कितनी जल्दी बिखर जाय। लेकिन पूज्य पिता जी की देख रेख में डेरा प्रतिदिन नयी उंचाइयों को छू रहा है।
शुरूआती दौर की बात करें जब बेपरवाह मस्ताना जी महाराज ने सिरसा में कदम रखा तो यह वीरान जंगल था। लोग शाम को घरों से बाहर नही निकलते थे । धीरे धीरे सुधार हुआ और लोग मस्ताना जी महाराज के करीब आने लगे। जिससे एक डेरा का निर्माण हुआ । सभी ने मस्ताना जी महाराज के साथ मिलकर एक योजना बनायी और नीव डेरा की रखी गयी । उसके बाद उन्होने अपने प्रिय शिष्य शाह सतनाम जी महाराज को इसे आगे बढाने के लिये जिम्मेदारी देकर अन्र्तध्यान हो गये । उन्होेने इसे उंचाईयों तक पहुंचाया , उसके बाद उन्होंने गुरूगद्दी श्री गुरमीत राम रहीम जी इंसा को सौंप दी और जब सबकुछ ठीक ठाक चलने लगा तो वह भी अन्र्तध्यान हो गये । आज डेरा हाईटेक हो गया है उसने इतनी तरक्की कर ली है कि उसके बराबर डेरा पूरे हरियाणा ,पंजाब व राजस्थान में नही है । कई रिकार्ड उसके साथ जुड गये है और कई कार्य एैसे है जिसे विश्व ने सरआंखो पर बिठाया है। रीति रिवाज को ढकोसला का दर्जा देने वाला डेरा आज पहला एैसा समुदाय बनने की ओर अग्रसर है जहां महिलायें अर्थी को कंधा देती हो , दुल्हन दूल्हे को ब्याह कर लाने जाती हो और वेश्याओं की भी शादी कराने का दंभ भरता हो ।
श्री गुरमीत राम रहीम जी इंसा की सबसे खास बात जो रही , वह यह रही कि उन्होंने सहयोग राशि से संस्थान व प्रतिष्ठान बनाये और इंसा नामक एक शब्द इजाद किया ।जिसे धारण करने वाले लोग अगर सेवा करना चाहे तो सेवा, नही तो नौकरी कर ले , थोडा पैसा जरूर कम मिलता है किन्तु इस बात की गारंटी रहती है कि डेरा प्रांगण में किसी के साथ भेदभाव व अन्याय नही होगा । इस विचार धारा ने डेरा को शिखर पर ला दिया । आज लाखों लोग जहां डेरा में नौकरी कर अपना पेट पाल रहे है वही पिता जी के बचनों पर अपना सबकुछ लुटा देने के लिये करोडो लोग तैयार है । नही तो किसी की हिम्मत थी कि किसी वेश्या की शादी करके दिखाये या फिर अन्य योजनाओं को लागू करने में डेरा को पीछे छोड सके ।
डेरा की एक और अदावत सबसे न्यारी है वहां की शिक्षा व संस्कार का कोई मोल नही है। जिस आचरण की देश को तलाश है, वह वहंा के बच्चों में मिलता है । उनकी प्रति लोगों की आस्था भी बनती है और डेरा उन्हें वह सबकुछ देता है जो आम आदमियों को नही मिलता । खेल कूद , प्रतियोगिताओं का दौर तो पूरे साल चलता ही रहता है। साथ ही साथ सभी धर्मो के बारे में ज्ञान व उसके रिति रिवाजों व संस्कारों को विधिवत बताया जाता है ईद ,क्रिसमस , होली दीपावली व दशहरा भी मिलकर मनाते है । डेरा की दोस्ती को सफलता की कुंजी मानकर जो बालक इससे जुडा रहता है उसे जीवन में वह सबकुछ मिलता है जो बाहर की शिक्षा उसे नही दे सकती ।
इसलिये ही शायद किसी शायर ने लिखा है कि,
कुछ बात है कि हस्ती मिटती नही हमारी ,
जबकि सदियों रहा है दुश्मन दौरे जहां हमारा dss

1 COMMENT

  1. ऐसे डेरे या संप्रदाय देश मे भरे पड़े हैं जो, समाज कल्याण करते हैंऔर शिक्षा का महत्व भी जानते हैं पर 
    अनुयायी गुरु के मानसिक ग़ुलाम बन जाते हैं, गुरू डुगडुगी बजाते हैं, मदारी नाचते हैं। यहाँ तो औपचारिक शिक्षा के महत्व ही नकार दिया है और गुरु अपने को ईश्वर का दूत कहकर फ़ीचर 
    फिल्म बनाते हैं।ऐसे डेर की तो बात ही क्या  है, अजब गज़ब तमाशा 

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