-विनोद बंसल

राष्ट्रीय प्रवक्ता-विहिप

श्री रघुनाथ नारायण राव प्रभु देसाई उपाख्या श्री बाबूराव देसाई उन बिरले महा-पुरुषों में से एक थे जिन्होंने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के द्वितीय सर-संघचालक पूजनीय श्री गुरु जी के कार्यकाल में संघ प्रवेश किया और लगातार चार सर-संघचालकों के साथ काम का सौभाग्य प्राप्त कर जीवन को सादगी पूर्ण जीया। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की स्थापना से मात्र एक माह पूर्व पुर्तगाल में 25 अगस्त 1925 को जन्मे श्री बाबू राव ने लगभग आठ दशकों तक राष्ट्र-धर्म की तन-मन-वचन से अनवरत सेवा करते हुए गत 22 जनवरी की रात्रि में अपनी सफल जीवन यात्रा को पूर्ण किया।

1942 में श्री यादव राव जोशी, श्री जगन्नाथ राव जोशी, श्री भाउराव देशपांडे तथा श्री सदानंद काकडे जैसे संघ के अग्रणी पंक्ति के व्यक्तित्वों की प्रेरणा ने ना सिर्फ उन्हें स्वयं-सेवक बनाया अपितु 1949 में प्रचारक बनकर आजीवन देश के लिए समर्पित कर दिया। करवाड़ में नगर प्रचारक के बाद उन्होंने धारवाड़ व बेलगांव में जिलों की तथा धारवाड़, गुलबर्गा और बेल्लारी में विभाग प्रचारक की जिम्मेदारी संभाली। देश स्वतंत्रता आंदोलन में भी उन्होंने अपनी सक्रिय भूमिका निभाई।

श्री राम जन्मभूमि आन्दोलन के प्रारम्भिक दिनों अर्थात 1983 में वे विश्व हिन्दू परिषद कर्नाटक के प्रांत संगठन मंत्री बने। उसके बाद उन्होंने सम्पूर्ण दक्षिण भारत के संगठन मंत्री के रूप में तथा बाद में केन्द्रीय मंत्री के रूप में कार्य करते हुए श्री राम जन्मभूमि मुक्ति, गौरक्षा, धर्मांतरण पर रोक तथा एकल अभियान में अभूतपूर्व योगदान दिया। वर्तमान में वे परिषद की केन्द्रीय प्रबंध समिति के सदस्य थे। जिनका पिछली मेंगलूर बैठक में नागरिक अभिनंदन भी किया गया था।

एक सामान्य गरीब फल विक्रेता श्री नारायन राव प्रभु देसाई के पुत्र श्री बाबू राव जी अपने विद्यार्थी जीवन में हमेशा स्वर्ण विजेता रहे। कला और अंग्रेजी में स्नातक की विशेष उपाधि के अतिरिक्त वे कोंकणी, मराठी, हिंदी, कन्नड़, पुर्तगाली, अंग्रेजी व फ्रेंच भाषाओं के ज्ञाता थे। विहिप महामंत्री श्री मिलिंद परांडे कहते हैं कि वे कठिनाइयों में भी सदैव प्रसन्न रह कर अपने कर्तव्य पथ पर अडिग रहते थे। संयुक्त महामंत्री डॉ सुरेन्द्र जैन ने बताया कि इतनी आयु तथा शारीरिक कष्ट के बावजूद भी वे संगठन के हर कार्य में रुचि के साथ बारीकी से नजर रखते थे। हर छोटे-बड़े कार्यकर्ता की चिंता करना उनके स्वभाव का हिस्सा था। कर्नाटक क्षेत्र के संगठन मंत्री श्री केशव हेगड़े कहते हैं कि वे संयमशील व हंसमुख स्वभाव के तो थे ही, साथ ही उदाहरणों के माध्यम से वे कठिन से कठिन समस्या का समाधान हंसी मजाक व मृदु भाषा से चुटकियों में कर देते थे। धुर विरोधी विचारधारा का भी कोई व्यक्ति यदि एक बार उनसे मिलता तो आजीवन उन्हीं का हो जाता था। ये उनमें एक अद्भुत कला थी। 96 वर्ष की आयु में भी वे अंत समय तक सक्रिय थे। भगवान में अटूट श्रद्धा के साथ वे स्थित प्रज्ञ थे।

23 जनवरी 2020 को सायंकाल लगभग पाँच बजे बेंगलूरू में उनके पार्थिव शरीर के अग्नि संस्कार से पूर्व उनको राष्ट्रीय स्वयं-सेवक संघ के सह-सरकार्यवाह माननीय श्री दत्ता जी तथा श्री मुकुंद जी, विश्व हिन्दू परिषद के महामंत्री श्री मिलिंद परांडे जी, कर्नाटक के राज्यपाल श्री वाजू भाई वाला जी तथा वहाँ के उप-मुख्यमंत्री सहित अनेक सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक व राजनैतिक हस्तियों ने उन्हें अपने श्रद्धा-सुमान अर्पित किए। हम सभी ऐसे महात्मा के जीवन से सदैव प्रेरणा पाते रहेंगे।

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