प्राप्त जानकारी के अनुसार 21 मई, 2019 को अलवर के नजदीक स्थित महुआ रेलवे स्टेशन के करीब, दादर गांव निवासी रिंकी मीणा (25) पत्नी दिनेश मीणा ने शताब्दी ट्रेन के आगे कूदकर आत्महत्या कर ली। पढने में बेशक आत्महत्या उतना शब्द भयावह नहीं लगता हो, लेकिन कोई भी इंसान आत्महत्या का निर्णय इतनी आसानी से नहीं लेता है, जितना कि सभ्य मानव समाज द्वारा आत्महत्या की घटनाओं को अनदेखा किया जाता रहा है। आत्महत्या की अधिकतर घटनाओं के पीछे निहित वास्तविक कारण सामने नहीं आ पाते हैं। इस कारण आत्महत्या के वास्तविक कारणों का मनोवैज्ञानिक तथा सामाजिक विश्लेषण नहीं हो पाता है। बिना विश्लेषण किसी भी समस्या का निराकरण संभव नहीं हो पाता है। इसी कारण निरन्तर आत्महत्या की घटनाएं बढ रही हैं।

स्त्रियों द्वारा आत्महत्या करने की तकरीबन हर घटना के पीछे दहेज को ही मूल वजह बताया जाता है। हो सकता है, दहेज उत्पीड़न के आरोप सही भी हों, लेकिन ऐसी घटनाएं सभ्य समाज के चेहरे पर कलंक के जैसी हैं। इस प्रकार की घटनाओं के घटित होने से अधिक दुःखद तो यह भी है कि इस प्रकार की घटनाओं के घटित होने से पहले कभी भी वधु पक्ष की ओर से दहेज का आरोप नहीं लगाया जाता है, लेकिन आत्महत्या करने के तत्काल बाद दहेज उत्पीड़न का केस दर्ज करा दिया जाता है। जो अनेकों संदेहों को जन्म देता है।

अनुभव से सिद्ध होता है कि दहेज उत्पीड़न की अधिकतर घटनाओं के पीछे मूल वजह दहेज नहीं, बल्कि अन्य कारण होते हैं। कितना अच्छा हो कि जब कभी, किसी की बहन-बेटी-स्त्री के साथ, वर पक्ष या पति द्वारा अमानवीय व्यवहार किया जा रहा हो तो उस पर तुरन्त ध्यान दिया जाये। अनेक बार लड़की के माता-पिता भी लड़की के ऊपर होने वाले अत्याचार की अनदेखी करते हैं। यह सोचकर चुप हो जाते हैं कि कुछ समय बाद सब ठीक हो जायेगा। जबकि ऐसा सोचना अपराधियों को अपराध करने के लिये अतिरिक्त समय देने के समान होता है।

इसके साथ ही इस बात को भी नहीं भुलाया जा सकता कि पति-पत्नी दोनों में से किसी एक या दोनों का संदेहास्पद चरित्र भी दाम्पत्य विवाद का बड़ा कारण होता है। जिसे अक्सर छिपाया या दबाया जाता है। अनादिकाल से जारी और वर्तमान समय में विवाहपूर्व एवं विवाहेत्तर यौन सम्बन्धों की बढती हुई कड़वी हकीकत को आसानी से झुठलाया नहीं जा सकता। मगर ऐसे लोग अपने आप को सब पाक-साफ घोषित करने में सिद्दहस्त होते हैं। ऐसे मामलों को इज्जत की चादर में लपेटकर दफन कर दिया जाता है। इस कारण इन पर चर्चा ही नहीं होती।

सबसे दुःखद तो यह भी होता है कि पति-पत्नी के नजदीकी रिश्तेदार भी वैवाहिक या पारिवारिक विवादों के सही समय पर उचित समाधान के बजाय उनके हालातों को अधिक उलझा देते हैं। जिसकी वजह से उनमें तथा दोनों परिवारों में दूरियां बढती जाती हैं। अंततः ऐसी दुःखद घटनाएं होती रहती हैं। यह तकरीबन सभी जाति-समुदायों में हो रहा है, लेकिन हम मीणा समुदाय के लोग अभी विकासमान दौर से गुजर रहे हैं। अतः हम स्वतंत्रता और अर्जित संसाधनों के साथ आधुनिक माहौल को सामाजिक माहौल के अनुसार समुचित रूप से व्यवस्थित करना नहीं सीख पा रहे हैं। जिसका भी यह साइड इफैक्ट है।

देखने में आता है कि अनेक बार सम्पूर्ण रूप से निर्दोष पति और उसके परिवार के लोगों को दहेज उत्पीड़न के मामले में बुरी तरह से फंसा दिया जाता है। ऐसे मामलों में पुलिस की भूमिका महत्वपूर्ण और निर्णायक हो सकती है। यदि पुलिस बिना प्रलोभन के निष्पक्षता से अनुसंधान करे तो निर्दोष लोगों को फंसाने से बचाया जा सकता है और दोषियों या आत्महत्या के असल कारणों को सामने लाया जा सकता है। यद्यपि ऐसी घटना घटित होने पर स्थानीय प्रभावशाली लोग भी पुलिस को दबाने या प्रभावित करने में पीछे नहीं रहते हैं।

अंत में मेरी राय में पूरी सतर्कता के साथ वास्तविक अपराधियों को कानूनी सजा की कार्यवाही करने के साथ-साथ, ऐसी घटनाओं के घटित होने के बाद मृतक के छोटे बच्चों, दोनों परिवारों और मृतक के जीवन साथी की मनोदशाओं पर भी गौर फरमाना चाहिये। समाज के प्रबुद्ध एवं निष्पक्ष लोगों को उन हालातों का भी पता लगाना चाहिये, जो ऐसी अनहोनी के लिये वास्तविक रूप से जिम्मेदार होते हैं। जिससे कि उनका सही समाधान किया जा सके। अन्यथा दहेज का नाम लेकर, आत्महत्या के असल कारणों को दबाया जाना, सामाजिक विस्फोट का कारण बन सकता है।

डॉ. पुरुषोत्तम लाल मीणा
दाम्पत्य विवाद सलाहकार
Jaipur, Rajasthan
8561955619, 22.05.2019

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