मार्शल अर्जन सिंह की अंतिम यात्रा शुरू

मार्शल अर्जन सिंह की अंतिम यात्रा शुरू
मार्शल अर्जन सिंह की अंतिम यात्रा शुरू

`भारतीय वायु सेना के मार्शल अर्जन सिंह की अंतिम यात्रा आज उनके आवास से शुरू हुई। मार्शल के पार्थिव शरीर को बख्तरबंद गाड़ी में बरार चौक ले जाया गया जहां पूर्ण राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा।

भारत के महानतम सैनिकों में से एक सिंह ने 1965 में भारत-पाकिस्तान युद्ध में नवगठित भारतीय वायुसेना की कमान संभाली थी। 98 वर्षीय अर्जन सिंह का शनिवार को सेना के रिसर्च एवं रेफरल अस्पताल में निधन हो गया।

तीनों सेनाओं के वरिष्ठ अधिकारियों और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह तथा भाजपा को वयोवृद्ध नेता लाल कृष्ण आडवाणी सहित तमाम लोग मार्शल को अंतिम विदा देने के लिए बरार चौक पर मौजूद हैं।

सिंह के शव को बख्तरबंद वाहन से बरार चौक स्थित शमशान ले जाया जा रहा है।

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण के अलावा एयर चीफ मार्शल बिरेन्द्र सिंह धनोआ, नौसेना प्रमुख एडमिरल सुनील लाम्बा और थलसेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत सहित अन्य गणमान्य लोगों ने कल मार्शल अर्जन सिंह के आवास पर उन्हें पुष्पांजलि अर्पित की थी।

राष्ट्रपति कार्यालय ने अपने आधिकारिक टि्वटर हैंडल पर लिखा था, ‘‘भारतीय वायुसेना के मार्शल अर्जन सिंह के निधन से राष्ट्र शोक संतप्त। राष्ट्रपति कोविंद ने उनके निवास पर श्रद्धा सुमन अर्पित किये।’’ उन्होंने लिखा है, ‘‘अर्जन सिंह जी वायु सेना के ‘नभःस्पृशं दीप्तम’ के आदर्श को जिये। ऋणी देश अपने वीर सपूत को सदा याद रखेगा।’’ मार्शल अर्जन सिंह को कल पुष्पांजलि अर्पित करने के बाद मोदी ने उनके आवास पर संवेदना पुस्तिका में गुजराती में लिखा, ‘‘बहादुर सैनिक को मेरी श्रद्धांजलि जिनमें योद्धा का शौर्य और शिष्टाचार था। उनका जीवन भारत माता को समर्पित था।’’ रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने उन्हें पुष्पांजलि देने के बाद कल कहा कि सिंह का अंतिम संस्कार राजकीय सम्मान के साथ किया जाएगा और अगर मौसम ने साथ दिया तो सेना का विमान उन्हें फ्लाई पास्ट देगा। उन्होंने कहा कि सिंह ने भारतीय वायु सेना का कायाकल्प दुनिया की अग्रणी वायु सेना में करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

सीतारमण ने कहा कि राष्ट्रीय राजधानी के नारायणा के निकट बरार स्क्वायर पर सुबह साढ़े नौ बजे राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार होगा। तीनों सेनाओं के प्रमुख और सरकार के कई शीर्ष पदाधिकारियों के सिंह के अंतिम संस्कार के दौरान उपस्थित रहने की उम्मीद है।

जब वह महज 44 साल के थे तब उन्हें वायुसेना की अगुवाई करने की जिम्मेदारी दी गयी थी और उन्होंने बड़े उत्साह से यह कार्य किया। सिंह ने 1965 में भारत-पाक युद्ध के दौरान भारतीय वायुसेना का नेतृत्व किया था।

साठ से अधिक प्रकार के विमानों को उड़ा चुके सिंह ने वायुसेना को विश्व में सबसे ताकतवर वायुसेनाओं में से एक तथा दुनिया की चौथी सबसे बड़ी वायुसेना बनाया । वह न केवल निडर लड़ाकू पायलट थे बल्कि उन्हें वायुसेना की शक्ति के बारे में गहरी जानकारी भी थी। उन्हें देश के दूसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था।

अविभाजित भारत के पंजाब प्रांत के लायलपुर में 15 अप्रैल 1919 को जन्मे अर्जन सिंह के पिता, दादा और परदादा ने सेना के घुड़सवार दस्ते में सेवा दी थी।

उन्होंने मांटगुमरी, ब्रिटिश भारत (अब पाकिस्तान) से अपनी शिक्षा अर्जित की थी। वह 1938 में रायल एअरफोर्स (आरएएफ), क्रैनवेल में एम्पायर पायलट ट्रेनिंग के लिए चुने गये । तब वह कॉलेज में पढ़ ही रहे थे और महज 19 साल के थे।

वर्ष 1944 में स्क्वाड्रन लीडर के रैंक पर पदोन्नत होने के बाद सिंह ने अहम इंफाल अभियान के दौरान कुछ सहयोग मिशन में विमान उड़ाए और बाद में मित्र सेनाओं को यांगून की तरफ आगे बढ़ने में सहयोग पहुंचाया। इस लड़ाई में स्क्वाड्रन का सफलतापूर्वक नेतृत्व करने पर उन्हें उस साल विशिष्ट फ्लाइंग क्रॉस (डीएफसी) से नवाजा गया था।

पंद्रह अगस्त 1947 को उन्हें दिल्ली में लाल किले के उपर वायुसेना के सौ से अधिक विमानों के फ्लाईपोस्ट की अगुवाई करने का भी सम्मान मिला।

वर्ष 1949 में एयर कमोडोर के रैंक पर पदोन्नति के उपरांत सिंह ने एयर आफिसर कमांडिंग ऑफ ऑपरेशनल कमान का पदभार ग्रहण किया। यह कमान बाद में पश्चिमी कमान बनी।

एयर वाइस मार्शल के रैंक पर पदोन्नत सिंह ऑपरेशन कमान में एओसी इन सी थे।

1962 में भारत चीन लड़ाई के समापन के समय उन्हें वायुसेना का डिप्टी चीफ बनाया गया और अगले ही साल वह वायुसेना के वाइस चीफ बने। उन्होंने एक अगस्त 1964 को एयर मार्शल रैंक पर वायुसेना प्रमुख की कमान संभाली। वह 15 जुलाई 1969 तक भारतीय वायुसेना के प्रमुख रहे। वह पहले वायुसेना प्रमुख थे जिन्होंने वायुसेना प्रमुख रैंक तक अपनी उड़ान श्रेणी बनाए रखी।

परीक्षा की घड़ी सितंबर, 1965 में आयी जब पाकिस्तान ने ऑपरेशन ग्रैंड स्लैम शुरू किया जिसमें उसने जम्मू कश्मीर के महत्वपूर्ण शहर अखनूर को निशाना बनाया। तब उन्हें रक्षा मंत्री ने वायु सहयोग के अनुरोध के साथ अपने कार्यालय में बुलाया। उनसे पूछा गया कि वायुसेना ऑपरेशन के लिए कितनी जल्दी तैयार हो जाएगी, उन्होंने कहा, ‘‘…. एक घंटे में।’’ और उनके शब्द पर कायम रहते हुए वायुसेना ने एक घंटे में पाकिस्तान पर जवाबी प्रहार किया। सिंह ने साहस, प्रतिबद्धता और पेशेवर दक्षता के साथ भारतीय वायु सेना का नेतृत्व किया।

सिंह को 1965 की लड़ाई में उनके नेतृत्व को लेकर पद्म विभूषण दिया गया। बाद में उनका सीएएस का पद बढ़ाकर एयर चीफ मार्शल कर दिया गया। वह भारतीय वायुसेना के पहले एयर चीफ मार्शल बने। जुलाई, 1969 में सेवानिवृत्ति के बाद उन्होंने स्विट्जरलैंड में भारत के राजदूत के रूप में कार्य किया। वह 1974 में केन्या में उच्चायुक्त भी रहे।

वह राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के सदस्य तथा दिल्ली के उपराज्यपाल भी रहे। उन्हें जनवरी 2002 में वायुसेना का मार्शल बनाया गया था।

पिछले साल उनके जन्मदिन पर उनके सम्मान में पश्चिम बंगाल के पानागढ़ स्थित लड़ाकू विमान प्रतिष्ठान का नाम उनके नाम पर रखा गया था।

वर्ष 2016 में वायुसेना स्टेशन पानागढ़ का नाम बदलकर वायुसेना स्टेशन अर्जन सिंह कर दिया गया।

थलसेना के फील्ड मार्शल सैम मानेकशा और केएम करिअप्पा दो अन्य अधिकारी थे जिन्हें पांच सितारा पदोन्नति मिली।

( Source – PTI )

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