दिल्ली की लेखक एवं कलाकार कोटा नीलिमा ने कहा कि अयोध्या में पूजा के लिए ठोस ढांचों की गैरमौजूदगी इसे किसी विशेष धर्म तक सीमित नहीं करती और इसे सभी लोगों के लिए उपलब्ध बनाती है।
अपने एकल शो ‘रिमेन्स ऑफ अयोध्या: प्लेसेस ऑफ वर्कशीप’ में नीलिमा ने इस स्थान को एक विषय के तौर पर इस्तेमाल कर, इसे पा्रकृतिक तत्वों के माध्यम से दर्शाया है।
नीलिमा ने कहा, ‘‘ अयोध्या के बारे में जो बात सबसे पहले मेरे दिमाग में आती है वह वहां ठोस ढांचों की गैरमौजूदगी है। ठोस ढ़ाचों की गैरमौजूदगी इसके द्वार सभी के लिए खोल देती है। यह किसी खास धर्म के लिए सीमित नहीं है। ’’ उन्होंने कहा ‘‘ मुझे लगता है कि हमारे चारों ओर अराधना के स्थल हैं। हमें भगवान की खोज के लिए किसी ढांचे की आवश्यकता नहीं है। प्राकृतिक तत्वों की भी पूजा की जा सकती है। भगवान सर्वत्र हैं। ’’ अपनी पंेटिंग के जरिए उन्होंने मूल भारतीय आस्था को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया है जिसके लिए उन्होंने कहा कि वह धर्म की तुलना में अधिक आध्यात्मिक है।
नीलिमा ने कहा ‘‘ भारतीय सोच बहुत आध्यात्मिक है और धार्मिक बेड़ियों से आजाद है। हमें वह सोच पुनर्जीवित करनी चाहिए। मेरी पेंटिंग उसी आजाद भारत की छवि को प्रदर्शित करती है जिसके लिए वह पहचाना जाता है। ’’
( Source – PTI )