मुरली मनोहर जोशी
पटनाः सीएए और एनआरसी के खिलाफ बिहार बंद का आयोजन किया गया। वाम दलों के साथ जाप जहां सड़क पर दिखी वहीं महागठबंधन के सभी कदावर नेता इस बंद से दूर नजर आए। इस बंद में पप्पू यादव, मुकेश सहनी और वाम नेताओं की फिल्ड में उपस्थिति बनी रही वहीं इन महागठबंधन के अन्य नेताओं के समर्थन के बाद भी नहीं दिखना एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। इस बंद में सभी बड़े नेताओं के नहीं आने के पीछे राजद के भय का भी हवाला दिया जा रहा है। बंद के एक दिन पहले तक राजद को छोडकर सभी सहयोगी दलों ने एक स्वर में बिहार बंद को सफल बनाने का आह्वान किया था, लेकिन रात के अंधेरे में किए गए वादे के बाद दिन के उजाले में किसी बड़े नेता के नहीं दिखने से महागठबंधन के यूनिटी पर ही अंगुली उठने लगी है। साथ ही महागठबंधन में राजद के राजकुमार तेजस्वी यादव की धमक का कहीं न कहीं इनके सहयोगियों को भय सता रहा है इसीलिए कोई नामचीन नेता सामने नहीं आए। कल तक जो नेता नागरिकता संशोधन कानून को देश के लिए खतरा बता रहे थे वही बंदी के सीन गायब पाए गए। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि नेताओं ने अपने समर्थकों को सड़कों पर उतार कर खुद को बिहार बंद से पूरी तरह से अलग कर लिया है।
इस बंद में रालोसपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा दिल्ली चले गए हैं। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष मदन मोहन झा दरभंगा चले गए हैं तो हम नेता जीतनराम मांझी भी राजद की खौफ से बंद में नजर नहीं आए। लेकिन पप्पू यादव अपने तरीके से राजनीति करते हैं तो इस बंद में उनका जलवा देखने को मिला। श्री यादव अपने कार्यकर्ताओं के साथ खुद ही सड़क पर उतर गए थे। इनके अलावे
मुकेश सहनी भी सुबह में राजेन्द्र नगर में रेल का पहिया जाम कर अपना विरोध तो जताया ही वाम दलों के बंद का भी भरपुर समर्थन किया। वामदलों की तरफ से कन्हैया कुमार अपने समर्थकों के साथ पटना के डाकबंगला चौराहा पर बंदी को सफल बनाने में पूरी तरह से जुटे रहे।
आगामी 21 दिसंबर को राजद की तरफ से आयोजित बंद में महागठबंधन के सभी नेताओं के शामिल होना तय माना जा रहा है। नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में विपक्षी पार्टियों ने बिहार बंद का आह्वान किया है। वाम दलों ने 19 दिसंबर तो राजद ने 21 दिसंबर को बिहार बंद का आह्वान किया है। वहीं बाकि के विपक्षी दलों ने दोनों दिन के बंद का समर्थन किया है। लेकिन सबसे चौंकाने वाली बात ये है कि महागठबंधन के नेता दोनों दिन के बंद को सफल बनाने का आह्वान तो किया लेकिन बिहार बंद से बड़े नेता अपने आप को अलग कर लिया। इस तरह से इसका राजनीतिक एंगल से देखी जाए तो आगामी चुनाव को देखते हुए ही आगे सधे कदम को महागठबंधन चलना चाहती है, क्योंकि अगर ये असंगठित तरीके से अलग-थलग पड़े तो इसका फायदा एनडीए उठाने से बाज नहीं आएगी। अब ऐसे में देखना यह दिलचस्प होगा कि 21 दिसंबर होने वाली बंद में राजद के साथ वाम दल आती है या नहीं। अगर नहीं आती तो यह भी कहा जा सकता है कि महागठबंधन में दरार पड़ने लगी है।