बंबई उच्च न्यायालय ने ‘आदर्श हाउसिंग सोसाइटी’ घोटाला मामले में पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अशोक चव्हाण के खिलाफ मुकदमा चलाने की महाराष्ट्र के राज्यपाल सी. विद्यासागर राव से सीबीआई को 2016 में मिली इजाजत आज रद्द कर दी। न्यायमूर्ति रंजीत मोरे और न्यायमूर्ति साधना जाधव की खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा कि राज्यपाल की इजाजत कायम नहीं रह सकती क्योंकि यह सीबीआई द्वारा पेश किसी ताजा विषय वस्तु पर आधारित नहीं है, जिस पर मुकदमे के दौरान अदालतों में स्वीकार्य साक्ष्य के तौर पर विचार किया जा सके।
पीठ ने कहा कि मौजूदा मामले में माननीय राज्यपाल (राव) के लिए यह मुनासिब था कि वह मंजूरी नहीं देने के अपने पूर्ववर्ती राज्यपाल के. शंकरनारायण के फैसले की समीक्षा , या उस पर पुनर्विचार करते। हालांकि, सीबीआई ने दावा किया था कि शुरूआती मंजूरी से इनकार किए जाने के बाद कुछ ताजा साक्ष्य सामने आए हैं। पीठ ने कहा कि सीबीआई ऐसा कोई ताजा साक्ष्य पेश करने में नाकाम रही, जो मुकदमे की सुनवाई के दौरान कायम रह सके। इसलिए ताजा साक्ष्य के अभाव में मुकदमा चलाने की इजाजत कायम नहीं रह सकती और इसे निरस्त किया जाता है।
गौरतलब है कि अदालत चव्हाण की उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमे राज्यपाल राव के फैसले को चुनौती दी गई थी। राव ने सीबीआई को आदर्श हाउसिंग सोसाइटी मामले में उनके खिलाफ मुकदमा चलाने की इजाजत दी थी। घोटाले में आरोपी बनाए गए 14 सेवानिवृत्त रक्षा कर्मी, नौकरशाह और नेताओं में चव्हाण भी शामिल हैं।
सीबीआई का आरोप था कि चव्हाण ने आने मुख्यमंत्री कार्यकाल के दौरान पॉश दक्षिण मुंबई में आदर्श सोसाइटी के लिए अतिरिक्त फ्लोर स्पेस इंडेक्स को मंजूरी दी और इसके एवज में अपने रिश्तेदारों के लिए दो फ्लैट लिए। वह बतौर राजस्व मंत्री 40 फीसदी फ्लैट असैन्य लोगों को आवंटन किए जाने को अवैध मंजूरी देने के भी आरोपी हैं जबकि यह सोसाइटी रक्षाकर्मियों के लिए है।
( Source – PTI )