अखिल भारतीय किसान सभा, आदिवासी अधिकार राष्ट्रीय मंच और भूमि व वन अधिकार आंदोलन के साझा देशव्यापी आह्वान पर छत्तीसगढ़ किसान सभा और आदिवासी एकता महासभा छत्तीसगढ़ में भी वन भूमि से बेदखली, लाभकारी समर्थन मूल्य और केंद्रीय बजट में कृषि क्षेत्र में सब्सिडी में कटौती के खिलाफ आंदोलन करेगी। 
आज यहां जारी एक बयान में छग किसान सभा के अध्यक्ष संजय पराते और महासचिव बयान में  ऋषि गुप्ता ने बताया कि वन भूमि से आदिवासियों को बेदखल करने के स्थगित आदेश पर 24 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होने जा रही है। इससे पहले 22 जुलाई को पूरे देश मे किसान और आदिवासी संगठन मिलकर विरोध दिवस मनाएंगे और शीर्षस्थ अदालत का ध्यान आदिवासियों के साथ किये जा रहे अन्याय की ओर खीचेंगे, क्योंकि बेदखली के आदेश पर अमल से छत्तीसगढ़ में 25 लाख और पूरे देश में दो कतोड़ आदिवासियों को वन भूमि से विस्थापित होना पड़ेगा।
उन्होंने कहा कि आज जहां-जहां आदिवासी हैं, केवल वहीं पर जैव-विविधता और पर्यावरण सुरक्षित है। यह केवल कॉर्पोरेट विकास का मॉडल है, जो आदिवासियों को वन, वन्य प्राणियों और पर्यावरण का  दुश्मन बताता है। इस दिन वनों में रहने वाले लोग घोषणा करेंगे कि जंगल उनके हैं और वे इसे किसी भी कीमत पर नहीं छोड़ेंगे।
किसान सभा नेताओं ने कहा कि पूर्ववर्ती भाजपा सरकार द्वारा उद्योग लगाने के नाम पर हजारों किसानों की हजारों एकड़ भूमि अधिग्रहित कर ली गई है। आज तक इस भूमि पर उद्योग लगे नहीं और भूमि अधिग्रहण कानून के अनुसार यह भूमि किसानों को लौटाई जानी चाहिए। लेकिन अब कांग्रेस सरकार भी इससे इंकार कर रही है। छत्तीसगढ़ में आंदोलन का यह भी एक मुद्दा होगा।
उन्होंने कहा कि स्वामीनाथन आयोग के सी-2 फार्मूले के अनुसार मोदी सरकार द्वारा खरीफ फसलों के घोषित समर्थन मूल्य वास्तविक लागत मूल्य से भी काफी नीच हैं। किसान सभा ने धान का लाभकारी समर्थन मूल्य 3150 रुपये प्रति क्विंटल देने की मांग की है। इसी प्रकार, केंद्र सरकार द्वारा पेश बजट में कृषि क्षेत्र और मनरेगा मेंजो कटौती की गई है और पैट्रोल-डीजल की कीमतों को बढाया गया है, उससे चौतरफा महंगाई में वृद्धि होगी और गांव, गरीब और किसानों का जीवन दूभर हो जाएगा।आंदोलन के माध्यम से इस किसानविरोधी बजट का भी विरोध किया जाएगा।
संजय पराते, अध्यक्ष, (मो) 094242-31650ऋषि गुप्ता, महासचिव, (मो) 094062-21661

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