आजादी के बाद देश की न्याय पालिका के अनेक निर्णय न केवल अभिनंदनीय रहे है वरन् ऐतिहासिक भी पर देश की सर्वोच्च अदालत यानी सुप्रीम कोर्ट के गंभीर मुद्दों पर आंखे मूंद लेने से व हिन्दू मुस्लिम के मामलों में अलग-अलग नजरिया अपनाने से लोगों में भारी निराशा देखने को मिली है।
पूरे देश ने देखा कि कोरोना महामारी के चलते सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड में प्रतिवर्ष होने वाली कांवड़ यात्रा के मामले का स्वयं संज्ञान लिया। शीर्ष अदालत ने साफ -साफ  कहा था कि दोनो राज्यों की सरकारें कांवड़ यात्रा निकालने की अनुमति न दें। इस पर उत्तराखण्ड सरकार ने तो तत्काल कांवड़ यात्रा पर प्रतिबंध  लगा दिया पर उत्तर प्रदेश सरकार ने कुछ शर्तो/प्रतिबंधों के साथ सांकेतिक कांवड़ यात्रा निकालने की अनुमति देने की बात कही। पर इस पर भी शीर्ष अदालत राजी नहीं हुई तो उत्तर प्रदेश सरकार ने कांवड़ संघों से बात करके कांवड़ यात्रा पर प्रतिबंध लगा दिया।
सुप्रीम कोर्ट के आचरण पर तब लोगों को भारी निराशा हुई जब केरल सरकार द्वारा बकरीद पर राज्य में लॉकडाउन में तीन दिन १८-१९-२० जुलाई को छूट देने के विरूद्ध दाखिल याचिका पर तत्काल सुनवाई न करके छूट के आखिरी दिन की और केरल सरकार के फ ैसले को गैर जरूरी बताते हुये कहा कि लोगों की सेहत से खिलवाड़ करने की इजाजत किसी को भी नहीं दी जा सकती। शीर्षस्थ अदालत ने केरल सरकार को चेताया कि बकरीद पर दी गई छूट के बाद अगर कोरोना संक्रमण फ ैलने का मामला कोर्ट के संज्ञान में लाया जाता है तो इसके लिये जिम्मेदार लोगों के खिलाफ  कार्यवाही की जायेगी।
इससे लोगों में साफ  संदेश गया कि सुप्रीम कोर्ट जिस तत्परता से हिन्दुओं के मामलों में हस्तक्षेप करता है उस तत्परता से मुस्लिमों के मामले में नहीं करता।
इसके पूर्व भी पूरा देश सुप्रीम कोर्ट का यही रवैया शाहीन बाग में सीएए के विरूद्ध मुस्लिम जमात के लम्बे चले धरने में देख चुका है। शाहीन बाग आंदोलन के दौरान लोगों ने सड़कों पर कब्जा कर लिया था और लोगों को अर्से तक या तो नौकरी, कारोबार से तौबा करनी पड़ी थी या फि र उन्हे भारी चक्कर लगाकर अपने कार्यस्थलों पर पहुंचना पड़ता था।
लोग तब दंग रह गये थे कि जब सुप्रीम कोर्ट ने शाहीन बाग के गैर कानूनी धरने को तत्काल समाप्त करने का आदेश देने की धरने को समाप्त करने के लिये मध्यस्थ भेज दिये थे। उसका क्या परिणाम निकला था उसे भी पूरे देश ने देखा था।
यही नहीं यह सवाल भी बेहद तार्किक है कि जब सुप्रीम कोर्ट ने कांवड़ यात्रा के मामले में स्वत: संज्ञान लेकर कार्यवाही की थी तो उसने केरल सरकार द्वारा बकरीद के त्यौहार पर लॉकडाउन में दी जाने वाली छूट का स्वयं संज्ञान क्यों नहीं लिया था और जब याचिका दायर हुई तो भी उसे तत्काल निपटाने की बजाय तीसरे दिन तब निपटाई गई जब केरल सरकार का उद्ेश्य पूरा हो चुका था। ऐसा ही रवैया उसने शाहीन बाग आंदोलन में भी दिखाया था और अब ऐसा ही रवैया किसान आंदोलन के मामले में भी दिख रहा है। कोई ७ महीने से किसान आंदोलन के नाम पर दिल्ली के बार्डरों को घेर कर रखा गया है अथवा बामुश्किल लोगों को आने-जाने की छूट है फि र भी सुप्रीम कोर्ट हस्तक्षेप करने को तैयार नहीं दीखता जबकि उसे भी मालूम है कि यह आंदोलन अब राजनीतिक बन चुका है और इसके पीछे मजबूत ताकतें लगी हुई हैं।
कहने का तात्पर्य सिफ र् इतना है कि सुप्रीम कोर्ट को देश के हित के हर मसले पर बिना किसी भेदभाव के तत्काल स्वत: संज्ञान लेकर फ ैसला करना ही चाहिये। उससे उसकी साख में और चार-चांद तो लगेगें ही, देश के हितों की भी रक्षा हो सकेगी। 

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