‘‘निजी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता के स्तर के अनुकूल हो फीस का दायरा’’

‘‘निजी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता के स्तर के अनुकूल हो फीस का दायरा’’
‘‘निजी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता के स्तर के अनुकूल हो फीस का दायरा’’

देश में दिनोंदिन महंगी होती स्कूली शिक्षा, दाखिला प्रक्रिया पर हर साल होने वाले विवाद और शिक्षा की गुणवत्ता के गिरते मापदंडों के बीच जाने माने शिक्षाविद् अशोक के पांडेय का कहना है कि स्कूलों की फीस वहां प्रदान की जाने वाली शिक्षा की गुणवत्ता के अनुरूप तय होनी चाहिए।

पांडेय अपनी हाल ही में प्रकाशित किताब ‘‘ए पैडगोजिकल लाइफ’’ में शिक्षा से जुड़े कुछ ऐसे ही तमाम पहलुओं पर प्रकाश डालते हैं । वह कहते हैं कि स्कूली शिक्षा की जब भी बात आती है तो भारत में अभिभावकों के बीच एक प्रकार की निराशा दिखाई देती है ।

कुछ समय पहले कई निजी स्कूलों द्वारा फीस में बढ़ोतरी के लिए अदालत का रूख अपनाए जाने और शिक्षण संस्थानों में शैक्षणिक स्तर में गिरावट काफी बहस का मुद्दा रही थी। इस परिदृश्य में यह अपने आप में रोचक है कि शिक्षण व्यवस्था से जुड़े सभी पक्ष यानी शिक्षक, माता पिता और छात्र मौजूदा व्यवस्था के प्रति तटस्थ नजर आते हैं ।

नेशनल प्रोग्रेसिव स्कूल्स कांफ्रेंस के अध्यक्ष अशोक पांडेय अपनी इस किताब के माध्यम से एक सुझाव पेश करने का प्रयास करते दिखते हैं कि एक बच्चे की पहुंच बेहतर शिक्षा तक सुनिश्चित करने के लिए समाज और नीति निर्माताओं को क्या कदम उठाने होंगे ।

किताब को विभिन्न हिस्सों में बांटा गया है और शिक्षण जगत में तीन दशकों से अधिक का अनुभव रखने वाले अशोक पांडेय कहते हैं कि बेहतर शिक्षा उपलब्ध करवाने के लिए सबसे पहला मापदंड शिक्षकों को तैयार करना है । इसके लिए उन्हें न केवल उच्च स्तरीय शिक्षण कौशल विधियों से खुद को लैस करना पड़ेगा बल्कि छात्रों और पर्यावरण के प्रति भी बेहद संवेदनशील रूख अपनाना होगा।

( Source – PTI )

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