राष्ट्रीय हरित अधिकरण :एनजीटी: ने जीवीके ग्रुप फर्म अलकनंदा हाइड्रो पावर कंपनी की इस दलील को खारिज कर दिया कि उत्तराखंड में 2013 में बादल फटने और बाढ़ आने की घटना ‘‘दैवीय प्रकोप’’ है। एनजीटी ने कंपनी को आपदा प्रभावित लोगों को 9 . 26 करोड़ रूपये का मुआवजा देने का निर्देश दिया।
एनजीटी ने कंपनी को एक निर्माण परियोजना के मलबे का निस्तारण सही ढंग से नहीं करने के लिए जिम्मेदार ठहराया जिसके कारण जून 2013 में पौड़ी गढ़वाल जिले के श्रीनगर कस्बे में बाढ़ के दौरान सामान बह गया।
एनजीटी ने अलकनंदा हाइड्रो पावर को 30 दिन के अंदर नौ करोड़ 26 लाख 42 हजार 795 रूपये मुआवजे के रूप में आपातकालीन राहत कोष प्राधिकरण में जमा कराने का निर्देश दिया जो आपदा पीड़ितांे को दिया जाना है।
न्यायमूर्ति यूडी साल्वी की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि दैवीय प्रकोप तब तक कोई बहाना नहीं है जब तक कि इसकी संभावना नहीं हो कि कोई ता*++++++++++++++++++++++++++++र्*क व्यक्ति उस समय और जगह की स्थिति को ध्यान में रखते हुए घटना होने का अनुमान नहीं लगा सके। इसलिए हम प्रतिवादी संख्या एक के इस अनुरोध को खारिज करते हैं कि आवासीय क्षेत्र को नुकसान ‘दैवीय प्रकोप’ के परिणामस्वरूप हुआ।
वर्ष 2011 राष्ट्रीय हरित अधिकरण नियमों के प्रावधानों के तहत एनजीटी के रजिस्ट्रार को राशि का एक प्रतिशत जमा किया जाना है जबकि बाकी की राशि दावों के सत्यापन के बाद पौड़ी के जिला मजिस्ट्रेट द्वारा वितरित होनी है।
पीठ ने कहा कि गाद और मलबे के कारण मानवीय बस्ती प्रभावित हुई। भूरासायनिक विश्लेषण करने पर, पाया गया मलबा करीब 30 प्रतिशत है। यह निश्चित रूप से घटना में प्रतिवादी संख्या एक :कंपनी: की संलिप्तता को दर्शाता है जिसके कारण नुकसान हुआ।
( Source – पीटीआई-भाषा )