वर्धा, दि.23 अगस्‍त 2019: गांधी जी अपने जीवन में निरंतर संशोधन करते थे। उनके समस्‍त जीवन दर्शन का सही और व्‍यापक मूल्‍यांकन होना अभी भी बाकी है। उनका जीवन आधुनिकता का दस्‍तावेज है। समाज के आखरी व्‍यक्ति के विकास के वे पक्षधर रहे। वे सर्वोदय के सिद्धांत के प्रतिपादक है। उनके विचार आज भी प्रासंगिक है और वे आने वाले भारत का यथा‍र्थ बने रहेंगे। उक्‍त विचार महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय के कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्‍ल ने व्‍यक्‍त किये।  विश्‍वविद्यालय में ‘गांधी और उनकी समसामायिक प्रासंगिकता : समाज,संस्‍कृति और स्‍वराज’ विषय पर आयोजित त्रि दिवसीय (20-22) राष्‍ट्रीय परिसंवाद का समापन गुरुवार 22 अगस्‍त को विश्‍वविद्यालय के कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्‍ल की अध्‍यक्षता में गालिब सभागार में किया गया।

समापन समारोह में मंच पर स्‍वामी सहजानंद सरस्‍वती संग्रहालय,वाराणसी के निदेशक राघव शरण शर्मा,पूर्व केंद्रीय राज्‍य मंत्री,दलित विमर्श के अध्‍येता संजय पासवान,भारत सरकार द्वारा नेशनल रिसर्च प्रोफेसर के रूप में नामित प्रो. अशोक मोडक,भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद,नई दिल्ली के सदस्‍य सचिव प्रो. कुमार रतनम् उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन डॉ. ओमजी उपाध्‍याय ने किया तथा आभार डॉ. मनोज कुमार राय ने माना।

कुलपति प्रो. शुक्‍ल ने महात्‍मा गांधी द्वारा लिखित हिंदी स्‍वराज का उल्‍लेख करते हुए आगे कहा कि गांधी के सपनों का भारत हिंदी स्‍वराज में दिखता है। यह आधुनिकता का दस्‍तावेज है जिसने देश में वैचारिक आंदोलन को खड़ा किया। उन्‍होंने कहा कि गांधी,लोहिया,अंबेडकर और दीन दयाल उपाध्‍याय भारतीयता के सनातन पथ के प्रभावी प्रदर्शक हैं जिनके विचारों से हम आनंदित भारत बना सकते हैं। उन्‍होंने गांधी के सर्वोदय सिद्धांत,आसुरी सभ्‍यता,सम्‍यक विचार,गोस्‍वामी तुलसीदास आदि का संदर्भ दते हुए कहा कि संपूर्ण सभ्‍यता के परिप्रेक्ष्‍य में गांधी के विचार और दर्शन को देखना होगा।

पूर्व केंद्रीय राज्‍य मंत्री संजय पासवान ने कहा कि महात्‍मा गांधी ने स्‍थापित मूल्‍यों को संपादित कर सत,रज,तम आदि गुणों का संतुलन बिठाया। उन्‍होंने अंग्रेजी जीएलएडी शब्‍द को व्‍याख्‍यायित करते हुए कहा कि गांधी,लोहिया,अंबेडकर और दीन दयाल उपाध्‍याय के विचारों से ही आनंदित भारत की संकल्‍पना साकार हो सकेगी। प्रो. अशोक मोडक ने कहा कि गांधी विचार शाश्‍वत, प्रासंगिक और समसामायिक है। उन्‍होंने कहा कि गांधी और अंबेडकर के भारतीय समाज पर अनन्‍य उपकार है। इस संबंध में उन्‍होंने पुना पैक्‍ट का उदाहरण दिया। प्रो. राघव शरण शर्मा ने कहा कि बिना विज्ञान के राष्‍ट्र नहीं बन सकता। स्‍वतंत्रता किससे और किस लिए इसपर भी उन्‍होंने विचार रखे। प्रो. कुमार रतनम् ने परिसंवाद के सफल आयोजन के लिए विश्‍वविद्यालय के प्रति आभार प्रकट किया। इस अवसर पर देश भर से आए विद्वान,शोधार्थी एवं विद्यार्थी बड़ी संख्‍या में उपस्थित थे।

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