चाणक्य वार्ता द्वारा प्रतिवर्ष आयोजित होने वाले त्रिदिवसीय पूर्वोत्तर परिसंवाद की इस वर्ष की थीम पूर्वोत्तर की जनजातीय संस्कृति में राम कथा और कृष्ण कथा रखी गई है, जिसके प्रथम सत्र का उद्घाटन 29 नवम्बर को असम सत्र के साथ हुआ। उद्घाटन सत्र में मुख्य अतिथि के रूप में असम एवं नागालैंड के राज्यपाल प्रो. जगदीश मुखी ने भाग लिया जबकि सत्र की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार श्री लक्ष्मीनारायण भाला ने की। सर्वप्रथम पूर्वोत्तर परिसंवाद के संयोजक डॉ अमित जैन ने विषय प्रवर्तन और अतिथियों का स्वागत किया। इसके बाद मरिधल महाविद्यालय, घेमाजी, असम की एसोसिएट प्रोफेसर डा. जोनाली बरुआ, लखीमपुर कॉमर्स कॉलेज, असम की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. मोंजुमोनी सैकिया ने अपना शोधपूर्ण वक्तव्य दिया।
पूर्वोत्तर परिसंवाद 2021 के मुख्य अतिथि प्रो. जगदीश मुखी ने अपने सारगर्भित संबोधन में कहा कि चाणक्य वार्ता द्वारा प्रतिवर्ष आयोजित किए जाने वाले पूर्वोत्तर परिसंवाद के अंतर्गत आयोजित उद्घाटन सत्र एवं असम राज्य के सांस्कृतिक संदर्भ पर आयोजित परिचर्चा में ऑनलाइन जुड़े हुए पूर्वोत्तर राज्यों के सभी वरिष्ठजनों एवं देश-विदेश से इस आयोजन में भाग ले रहे सभी श्रोताओं का मैं हार्दिक अभिनंदन करता हूं। राज्यपाल ने कहा कि मुझे इस बात की अत्यंत प्रसन्नता है कि चाणक्य वार्ता ने 2016 से लेकर लगातार प्रतिवर्ष पूर्वोत्तर परिसंवाद का यह आयोजन सफलतापूर्वक चलाया है, जिससे पूर्वोत्तर राज्यों के लोग तो एक दूसरे के निकट आ ही रहे हैं, बल्कि पूर्वोत्तर की विविधता और संस्कृति भी देश-विदेश में फ़ैल रही है। असम व नागालैंड के राज्यपाल ने कहा कि मुझे स्मरण है कि वर्ष 2019 में गुवाहाटी में आयोजित पूर्वोत्तर परिसंवाद के उद्घाटन एवं समापन समारोह में मैं मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुआ था। उन कार्यक्रमों में जाकर मैंने यह पाया कि चाणक्य वार्ता की टीम कितने बड़े स्तर पर हमारे माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सपनों को साकार कर रही है। असमिया भाषा को प्रोत्साहन देने के लिए भी राज्यपाल ने चाणक्य वार्ता के कार्यों की सराहना की।
राज्यपाल ने कहा कि पूर्वोत्तर परिसंवाद के इस वर्ष की थीम बहुत ही सार्थक और प्रासंगिक है। असम प्रांत में राम और कृष्ण की कथा अनेक आधारों के माध्यम से प्रचलित  रही है, जिसके मुख्य आधार लोकगीत हैं। आम जनता अपने हृदय के हर्ष- विषाद के गीतों के माध्यम से राम और कृष्ण का स्मरण करती है। उन्होंने कहा कि धर्म में एकशरणीया धर्म और धर्म ग्रंथों में भागवत और गीता की श्रेष्ठता का प्रतिपादन ही शंकरदेव के काव्य का प्रतिपाद्य हैं। जो उत्पीड़ित है, पर जीना चाहता है, उसके लिए ‘एकशरण’ अचूक जीवन मंत्र हैं।
प्रथम दिन के दूसरे सत्र मेघालय राज्य में अतिथियों का स्वागत मेघालय के  डा. सुनील कुमार ने किया। तदोपरांत पूर्वोत्तर पर्वतीय विश्वविद्यालय, शिलांग के हिन्दी विभाग के आचार्य प्रो. माधवेंद्र प्रसाद पाण्डेय, लेखिका एवं मार्टिन लूथर क्रिश्चियन विश्वविद्यालय, शिलांग की अतिथि प्रवक्ता डॉ. अनीता पंडा ने अपना विद्वतापूर्ण वक्तव्य दिया। समारोह के मुख्य अतिथि पूर्वाेत्तर पर्वतीय विश्वविद्यालय (नेहू) के कुलपति प्रो. प्रभा शंकर शुक्ल ने अपने संबोधन में पूर्वाेत्तर राज्यों के ऐतिहासिक परिदृश्य एवं भगवान राम और कृष्ण की उपस्थिति का प्रमाणिक उल्लेख करके सभी को मनमोहित किया। तीसरा और पहले दिन का अंतिम सत्र त्रिपुरा राज्य पर केन्द्रित था। त्रिपुरा सत्र में चाणक्य वार्ता के उत्तर क्षेत्र प्रभारी विशाल शर्मा ने सभी का स्वागत किया। इस सत्र में त्रिपुरा विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ. कालीचरण झा, दर्शन विभाग की सहायक आचार्य डॉ. सिन्धु पौडयाल ने अपने सारगर्भित विचार रखे।
प्रस्तुति: योगेश कुमार गोयल

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