काश ! श्यामाप्रसाद मुखर्जी हमारे बीच होते तो खुश होते

पारसमणि अग्रवाल

सूरज की किरणों के साथ आगाज होते आज के दिन ने इतिहास के स्वर्णिम अक्षरों में अपना नाम दर्ज करा लिया है। और यदि आज देश की एकता और अखण्डता को लेकर आन्दोलन चलाने वाले श्यामा मा प्रसाद मुखर्जी हमारे बीच होते तो वो भी आज बहुत खुश होते। तमाम बलिदानों के बाद अधूरे पड़े सपने ने आज साकार रूप ले लिया है। सदन में जब कश्मीर को लेकर चार ऐतिहासिक फैसले लिए गए उस समय भारत में तो जश्न का माहौल होना तो स्वाभाविक ही बात है लेकिन एक देश,एक संविधान और एक झण्डे का सपना संजोने वाले आजादी के नायक श्यामा प्रसाद मुखर्जी भी मौजूदा परिवेश में होते तो लम्बे समय से जीवंत होने को बेताब हो रहे सपने को साकार देखकर खुश हो रहे होते।

“तुम दूध मांगोगे तो हम खीर देगें तुम कश्मीर मांगोगे तो हम चीर देगें।“ यह नारा ही साफ जाहिर कर रहा है कि हिन्दुस्तानियों के दिलों में कश्मीर को लेकर कितनी मोहब्बत है। हर हिन्दुस्तानी के दिल में बसने वाले कश्मीर पर आज से पहले धारा अनुच्छेद 370 लागू था जिसके तहत तमाम ऐसे प्रावधान थे जो कहीं न कहीं हिन्दुस्तानियों के दिलों-दिमाग में खटक रहे थे। कश्मीर से 370 हटाने की मॉग देशवासियों द्वारा लम्बे फलांग से की जा रही थी। इस धारा के हटने के बाद से कश्मीर में दोहरी नागरिकता खत्म हो गई इसके साथ ही कोई भी भारतीय व्यक्ति जब वहां जमीन की खरीद कर सकता है। इसके अलावा केन्द्र सरकार ने जम्मू को लद्दाख से अलग कर केन्द्र शासित राज्य बना दिया है।

सरकार द्वारा राज्यसभा ने राज्य पुर्नगठन विधेयक भी पेश किया गया है। भारतीय राजनीति क्या गुल खिलायेगी ? और सियासी गलियारों की हवा कौन सा रूख अपनायेगी? महबूबा की राजनीति क्या गर्त में जाएगी? सवालों के बनते इस मकड़जाल को सुलझा पाना इतना आसान नहीं क्योंकि सियाशी ऊंट कब किस करवट बैठ जाए कुछ कहा नहीं जा सकता इसलिए इन सवालों का जवाब तो आगामी समय के कोख से ही मिलेगा। लेकिन आपको बता दें कि जम्मू-कश्मीर में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 के इस प्रस्ताव के जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी सख्त खिलाफ थे और उन्होंने धारा 370 हटाने के लिए आंदोलन भी चलाया था और वह इस आन्दोलन के लिए जम्मू कश्मीर रवाना हो गए थे। कश्मीरमें जनसंघ संस्थापक मुखर्जी को 11 मई 1953 को हिरासत में ले लिया गया  और 23 जून 1953 को जेल में उनकी रहस्यमयी तरीके से मौत हो गई। मुखर्जी ने एक देश में दो प्रधान नहीं चलेंगे नहीं चलेंगे जैसे नारों के साथ आन्दोलन को धार दी थी उनका सालों पुराना सपना अब सपना नहीं रहा।

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