सकारात्‍मक खबरें देकर पाठकों में विश्वास पैदा करे मीडिया

नई दिल्ली, 28 मई। “तन का कोरोना यदि तन से तन में फैला, तो मन का कोरोना भी मीडिया के एक वर्ग ने बड़ी तेजी से फैलाया। मीडिया को लोगों के सरोकारों का ध्‍यान रखना होगा, उनके प्रति संवेदनशीलता रखनी होगी। यदि सत्‍य दिखाना पत्रकारिता का दायित्‍व है, तो ढांढस देना, दिलासा देना, आशा देना, उम्‍मीद देना भी उसी का उत्‍तरदायित्‍व है। अमेरिका में 6 लाख मौते हुईं, लेकिन वहां हमारे चैनलों जैसे दृश्‍य नहीं दिखाए गए। 11 सितम्‍बर के आतंकवादी हमले के बाद भी पीड़ितों के दृश्‍य नहीं दिखाए गए थे। हमारे यहां कुछ वर्जनाएं हैं, जिन पर ध्‍यान देना होगा। सत्‍य दिखाएं , लेकिन कैसे दिखाएं, इस पर गौर करना जरूरी है। चाकू चोर की तरह चलाना है, या सर्जन की तरह यह तय करना होगा,” यह कहना है वरिष्ठ पत्रकार श्री उमेश उपाध्याय का। वे भारतीय जन संचार संस्थान द्वारा हिंदी पत्रकारिता दिवस के उपलक्ष्‍य में आयोजित ‘शुक्रवार संवाद’ में “कोरोना काल के बाद की पत्रकारिता’’ विषय पर मीडिया छात्रों को संबोधित कर रहे थे। इस अवसर पर ‘अमर उजाला’ डिजिटल के संपादक श्री जयदीप कर्णिक, ‘दैनिक ट्रिब्‍यून’ चंडीगढ़ के संपादक श्री राजकुमार सिंह और ‘हिंदुस्‍तान’ की कार्यकारी संपादक सुश्री जयंती रंगनाथन ने भी अपने विचार साझा किए।

इससे पहले भारतीय जन संचार संस्‍थान के महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी ने कहा कि समाज के अवसाद, चिंताएं कैसे दूर हों, इस पर चिंतन आवश्‍यक है। यह सामाजिक संवेदनाएं जगाने का समय है। सारे काम सरकार पर नहीं छोड़े जा सकते। विद्यार्थियों के लिए इस समय जमीन पर जाकर कर काम करना जरूरी है। वे अपने आसपास के लोगों को संबल दें। हमें ऐसी शिक्षा चाहिए, जो इंसान को इंसान बनाए।

श्री जयदीप कर्णिक ने कहा कि तकनीक की दृष्टि से कोरोना ने ‘फास्‍ट फारवर्ड’ का बटन दबा दिया है। यूं तो पहले से ही ‘डिजिटल इज़ फ्यूचर’ जुमला बन चुका था, लेकिन जो तकनीकी बदलाव 5 साल में होना था, वह अब पांच महीने में ही करना होगा। तकनीक के साथ चलना होगा, तभी कोई मीडिया घराने के रूप में स्‍थापित हो सकेगा। उन्होने कहा कि इस दौर में पत्रकारिता को भी अपने हित पर गौर करना होगा। कोरोना की पहली लहर में डिजिटल पर ट्रैफिक चार गुना बढ़ा था, जो दूसरी लहर में उससे भी कई गुना बढ़ गया। डिजिटल में यह जानने की सुविधा है कि पाठक क्‍या पढ़ना चाहता है और कितनी देर तक पढ़ना चाहता है। पत्रकार शुतुर्मुर्ग की तरह नहीं बन सकता, जरूरी है कि सत्‍य दिखाइए, पर इस तरह दिखाइए कि लोग अवसाद में न जाएं। हमें सलीके से सच दिखाना होगा।

श्री राजकुमार सिंह ने कहा कि कोरोना काल ने केवल पत्रकारिता को ही नहीं, बल्कि हमारी जीवन शैली और जीवन मूल्‍यों को भी झकझोर कर रख दिया। पत्रकारिता ने कई अनपेक्षित बदलाव देखे। उस पर कई तरफ से प्रहार हुआ। सबसे ज्‍यादा असर तो यह हुआ कि लोगों ने अखबार लेना बंद कर दिया। कोरोना की पहली लहर के बाद 40 से 50 प्रतिशत पाठक ही अखबारों की ओर लौट पाए। कोरोना काल में अपनी जान गँवाने वाले पत्रकारों का जिक्र करते हुए उन्होने कहा कि देश में ऐसा कोई आंकड़ा नहीं कि कितने पत्रकारों की जान गईं। यह आंकड़ा चिकित्‍सा जगत के लोगों की मौतों के आंकड़े से कहीं ज्‍यादा हो सकता है। पत्रकार भी ‘फ्रंटलाइन योद्धा’ हैं उनकी भी चिंता की जानी चाहिए।

सुश्री जयंती रंगनाथन ने कहा कि मीडिया को सकारात्‍मक खबरें देनी होंगी। उसे लोगों को बताना होगा कि पुराने दिन लौट कर आएंगे, लेकिन उसमें थोड़ा वक्‍त लगेगा। हमारा डीएनए पश्चिमी देशों से भिन्‍न है, जैसा वहां है, यहां ऐसा नहीं होगा। हमें भी अपने पाठकों की मदद करनी होगी। हमें लोगों के सरोकारों से जुड़ना होगा। सकारात्‍मक खबरों का दौर लौटेगा और प्रिंट मीडिया मजबूती से जमा रहेगा।

कार्यक्रम का संचालन “अपना रेडियो” और आईटी विभाग की विभागाध्‍यक्ष प्रोफेसर (डॉ.) संगीता प्रणवेंद्र ने किया। डीन (अकादमिक) प्रो. (डॉ.) गोविन्‍द सिंह ने धन्‍यवाद ज्ञापन किया।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *